खेती किसानी से जुड़े लाेग अच्छे से जानते हैं कि इस व्यवसाय में जितनी मेहनत और लागत लगती है, उसके मुकाबले मुनाफा बेहद कम मिलता है। कभी किसी सीजन में तो स्थिति ऐसी होती है कि लाभ तो दूर लागत तक नहीं निकल पाती है। हालांकि हमारे किसान घाटे को भूल कर फिर अगली फसल की तैयारी में जुट जाते हैं। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं जो खेती छोड़कर आय के नए रास्ते तलाशने लगते हैं।
घाटा हुआ तो कुछ ऐसा ही इरादा बना लिया था मप्र के बड़वानी जिले के किसान यशवंत कुशवाहा ने। पारंपरिक खेती के कारण साल-दर-साल उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा था। आर्थिक स्थिति खराब होने लगी तो खेती छोड़कर आय के नए रास्ते तलाशने का मन बना लिया। हालांकि इस बीच उन्हें जैविक खेती के बारे में पता चला। बचपन से खेती से जुड़े थे, इसलिए एक और मौका खुद को देने का मन किया। यही उनकी लाइफ का टर्निंग पाइंट था। घाटे की खेती लाभ का ऐसा धंधा बनी कि अब वे जिले के अग्रणी किसानों की कतार में शामिल हैं। उनसे दूसरे किसान खेती के गुर सीख रहे हैं।
बड़वानी जिले के किसान यशवंत कुशवाह ने अपने 5 एकड़ खेत में से 3 एकड़ में कपास की फसल लगाई है, जबकि 2 एकड़ में मक्का लगाया है।
किसान की समृद्धि की कहानी…
किसान की समृद्धि की कहानी जानने के लिए बड़वानी जिला मुख्यालय से 3 किमी दूर कुक्षी बायपास पर पहुंची। यहां एक खेत में कुछ मजदूर काम करते दिखे। उनसे यशवंत कुशवाह के खेत का पता पूछा। थोड़ा आगे गए तो यशवंत अपने खेत में काम करते मिल गए।
किसान यशवंत ने बातचीत के दौरान टीम से अपने अनुभव शेयर किए। उन्होंने बताया कि मैं पिछले कई सालों से पारंपरिक तरीके से खेती कर रहा था। पूरा परिवार जी तोड़ मेहनत करता था, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद लागत और मुनाफे का अंतर बढ़ता जा रहा था। कभी कोई साल ऐसा नहीं गया, जब जितनी लागत हमने लगाई उससे ज्यादा मुनाफा निकला हो।
परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी रुपए नहीं बचते थे। बार-बार कर्ज लेना पड़ रहा था। इससे तंग आकर मैंने मन बना लिया था कि अब आगे से खेती नहीं करूंगा। कुछ विकल्प की तलाश में जुटा था। करीब एक साल पहले कृषि विभाग के अफसरों से मुलाकात हुई। मैंने अपनी पीड़ा बताई और खेती से तौबा करने की बात भी कही।
उन्होंने मुझे जैविक खेती के लिए प्रेरित किया। यह भी बताया कि जैविक खेती से कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। उनकी बातें सुनकर मुझे लगा कि ऐसा अगर संभव है तो खेती करने में कोई बुराई नहीं है।
मौसम की अनिश्चितता, महंगे कीटनाशक का खर्च ही किसान की कमर तोड़ देता है। इसे कम किए बिना लाभ की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जैविक खेती असामान्य मौसम और प्राकृतिक प्रकोपों के कारण हर साल होने वाले नुकसान से बचाती है। यही कारण है कि अब मेरी तरह कई किसान पारंपरिक खेती को त्यागकर जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं।मक्का की फसल भी यशवंत ने जैविक पद्धति से की है। उनका कहना है कि वे अपने खेत में किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते हैं।
लागत आधी की, मुनाफा भी बढ़ा
पिछले डेढ़ साल से जैविक पद्धति से खेती कर रहा हूं, जिसमें फसल की लागत अन्य किसानों की अपेक्षा आधी रह गई है और उत्पादित माल की कीमत भी अच्छी मिल रही है। किसी प्रकार का रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करता। उसके स्थान पर वर्मी कंपोस्ट, गोबर खाद का उपयोग करता हूं, जिससे कीट व्याधि का प्रकोप बहुत कम होता है। साथ ही इसकी रोकथाम के लिए घर पर ही नीम की पत्ती, धतूरा, आंक, मट्ठा आदि से जैविक कीटनाशक बनाकर छिड़काव करता हूं।अपने साथी किसान संतोष काग के साथ कपास की फसल का निरीक्षण करते हुए यशवंत। कीट से बचाने के लिए उन्होंने फसल पर गोमुत्र का स्प्रे किया है।
गोमुत्र के स्प्रे से की यूरिया की पूर्ति
जैविक खेती अपनाने से आर्थिक फायदे तो बहुत हुए, लेकिन एक और फायदा हुआ। खाद के लिए लंबी लाइन में लगने से छुटकारा मिल गया है। रबी सीजन में सभी किसान यूरिया के लिए लाइन में लगते हैं, जबकि मैं फसल में गोमुत्र का स्प्रे करके यूरिया की पूर्ति करता हूं। ऐसे करने के बाद भी मेरी फसल अन्य पारंपरिक खेती वाले किसानों की तुलना में कमजोर नहीं रही, बल्कि लागत बहुत कम (आधी) रही और उत्पादन भी अच्छा हुआ।
जैविक खेती के लिए केंचुआ खाद सबसे अहम होती है। यह पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुए कीड़ों द्वारा वनस्पतियों और कचरे को विघटित करके तैयार किए जाते हैं।
5 एकड़ जमीन में 55 हजार लागत
मेरे पास 5 एकड़ जमीन है। दो एकड़ में मक्का, तीन एकड़ में कपास लगाया है। साल में दो फसलें लेता हूं। पिछले सीजन में गेहूं की फसल लगाई थी। तीन क्विंटल गेहूं बोए थे। लागत 55 से 60 हजार रुपए आई। आप मानेंगे नहीं कि मेरे खेत में 100 क्विंटल से ज्यादा गेहूं का उत्पादन हुआ, जिसे 2150 रुपए क्विंटल के भाव में मार्केट में बेचा था। यानी 2 लाख 35 हजार रुपए कुल आमदनी हुई। लागत निकाल दें तो 1 लाख 80 हजार रुपए का मुनाफा हुआ। इसी तरह कपास और मक्का की फसल से इतना ही लाभ प्राप्त होने का अनुमान है।केंचुआ खाद का उपयोग कर किसान ने पिछले साल 5 एकड़ में 100 क्विंटल से ज्यादा गेहूं का उत्पादन किया है। इससे 1 लाख 80 हजार रुपए का मुनाफा हुआ।
जैविक खेती से पशु पालन को भी मिला बढ़ावा
जैविक खेती का दूसरा फायदा पशुपालन के रूप में हुआ है। पशुओं को रसायन रहित हरा चारा, भूसा और खली प्राप्त हो रही है, जिससे शुद्ध दूध और घी मिल रहा है। यशवंत का कहना है कि आज उसके पास मक्का और कपास का उत्पादन पूर्णत: रसायन रहित है, जिसका उन्हें अच्छा दाम मिलने का अनुमान है। वर्तमान में 5 एकड़ खेत में पूर्ण रूप से जैविक पद्धति से खेती कर रहे हैं, जिससे कुल लागत अन्य किसानों की तुलना में आधी आ रही है।केंचुए को डालने के बाद उसके ऊपर गोबर और कचरे को डाला जाता है। तीन महीने में केंचुआ खाद तैयार हो जाती है।
3 महीने में तैयार होती है केंचुआ खाद
जैविक पद्धति से खेती करने में खाद का सबसे अहम योगदान है। केंचुआ खाद पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ कीड़ों द्वारा वनस्पतियों और कचरे को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है। मक्खी और मच्छर नहीं बढ़ते हैं। वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। केंचुए को डालने के बाद उसके ऊपर गोबर और कचरे को डाला जाता है। तीन महीने में केंचुआ खाद तैयार हो जाती है।
मक्का की फसल का जायजा लेते हुए किसान यशवंत कुशवाहा। जैविक पद्धति से उपजाई जा रही फसल को देखने क्षेत्र के किसान आते रहते हैं।
एक एकड़ में 12 बोरी खाद की जरूरत
किसान यशवंत ने बताया कि पिछले सीजन में मैने गेहूं की बुआई की थी। एक एकड़ में 12 बोरी जैविक खाद की जरूरत होती है। एक बोरी में 40 किलो खाद आती है। 5 एकड़ में 60 बोरी (2400 किलो) खाद लगी थी। जैविक खाद की बाजार में 10 रुपए प्रति किलो कीमत होती है। 5 एकड़ खेत में 24000 रुपए की खाद लगी। बुआई के लिए 3 क्विंटल लगी थी।