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गुजरात सरकार का झूठ- एक महीने में प्रदेश में कोरोना से 3,578 मौतें, जबकि हकीकत में अहमदाबाद में ही इस दौरान 3,416 मौतें

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अहमदाबाद

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अहमदाबाद समेत पूरे राज्य में शवों के ढेर लगे रहे। इस भयावहता को गुजरात सहित पूरे देश ने देखा, इसके बावजूद सरकारी आंकड़ों में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बहुत छोटा बताया गया है। गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद की ही बात करें तो यहां 1,200 बेड वाले सिविल कोविड अस्पताल में प्रतिदिन इतनी मौतें हुईं कि इसका आंकड़ा पूरे गुजरात में रोजाना होने वाली मौतों (सरकारी आंकड़ों के हिसाब से) से ज्यादा था।

गुजरात सरकार के झूठ का पर्दाफाश करने के लिए सिविल अस्पताल जाकर 10 अप्रैल से 9 मई तक रोजाना होने वाली मौतों के आंकड़े हासिल किए। इन आंकड़ों का कहीं और खुलासा नहीं किया गया है। दैनिक भास्कर को मिले डेटा के अनुसार, इस दौरान (10 अप्रैल से 9 मई) सिविल कोविड अस्पताल में 3,416 मौतें हुईं, जबकि सरकारी आंकड़ों में अहमदाबाद में सिर्फ 698 और पूरे गुजरात में 3,578 संख्या ही बताई गई।

हमारी टीम ने पूरे महीने की डिटेल बारीकी से खंगाली तो पता चला कि मृतकों की एक पूरी शीट थी, जिसमें मृतक का नाम, उसका फोन नंबर, एडमिशन की तारीख, मौत की तारीख और मौत का कारण लिखा गया था। यह शीट रोजाना सुबह 8 बजे से अगले दिन सुबह 8 बजे तक अपडेट की जाती थी। इसके बाद शीट में अगली तारीख डाल दी जाती थी।

30 में से 12 दिन सबसे ज्यादा मौतें हुईं
सिविल अस्पताल की शीट की जांच में हमें पता चला कि 10 अप्रैल से 9 मई के दौरान 11 दिन तो ऐसे थे, जब सिविल में रोजाना होने वाली मौतों का आंकड़ा पूरे राज्य में रोजाना हो रही आंकड़ों से ज्यादा था। इससे साफ है कि राज्य सरकार द्वारा मौतों के आंकड़ें छिपाए गए।

हाईकोर्ट में भी गलत आंकड़े पेश किए गए
गुजरात में कोरोना की भयावह स्थिति के चलते गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई थी। एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस भार्गव कारिया की पीठ ने सरकार से पूछा था कि राज्य में होने वाली मौतों का आंकड़ा छिपाया जा रहा है। उस दौरान भी इसे लेकर गुजरात सरकार द्वारा शपथ-पत्र पेश किया गया था, जिसमें भी यही आधिकारिक आंकड़ें दिखाए गए थे। इससे साफ है कि कोर्ट में भी सरकार द्वारा गलत आंकड़े पेश किए गए।

दैनिक भास्कर ने 100 मरीजों बात की
अपनी पड़ताल के दौरान भास्कर की टीम ने 10 अप्रैल से 9 मई के बीच मरने वाले 100 मरीजों के परिवार वालों से फोन पर बातचीत की। भास्कर के पास इन सभी बातचीत की रिकॉर्डिंग भी है। इनमें से अधिकतर मरीजों के परिजनों ने बताया कि उनके परिजनों को कोरोना के गंभीर संक्रमण के बाद सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यहां इनका कोरोना का ही इलाज हुआ, लेकिन मौत के बाद अस्पताल द्वारा मौत का कारण कोरोना नहीं बताया गया। वहीं, कई मरीज ऐसे थे, जिनकी मौत का कारण अन्य बीमारियां लिख दी गईं।

कोरोना पेशेंट को सस्पेक्टेड बताकर मौतों का आंकड़ा छिपाया गया
सिविलअस्पतालसे मिली शीट की जांच करने पर पता चला कि इसके आखिरी बॉक्स में मौत के कारण का जिक्र है, लेकिन 90 फीसदी से ज्यादा मौतों के मामले में इस शीट में कोई कारण ही नहीं लिखा गया था। इतना ही नहीं, शव सौंपे जाने पर मरीज के रिश्तेदार को दिए गए डेथ नोट में भी मौत के सही कारणों का खुलासा नहीं किया गया है। कुछ मामलों में, को-मर्बिडिटी लिखकर छोड़ दिया गया है। इसके अलावा कई मरीज ऐसे भी थे, जिनकी कोरोना के इलाज के दौरान ही मौत हुई, लेकिन अचानक उनकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव बताते हुए हार्ट-अटैक या किडनी फेल जैसे कारण लिख दिए गए हैं।

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