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प्रदेश के में 661 गांव के नक्शे, खसरे ही नहीं, कैसे हो सीमा तय

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प्रदेश में 42 साल बाद पुर्नगठन आयोग का गठन किया गया है। आयोग ने अपना काम शुरु यिका तो पता चला कि प्रदेश में 661 गांव हैं, जिनके नक्शे ही नहीं हैं। इसी तरह से 778 गांवों के खसरे भी नहीं है। इस स्थिति को देखते हुए अब आयोग के सामने इसकी नई समस्या खड़ी हो गई है। ऐसे में संबधित गांवों को किस प्रशासनिक इकाई से जोड़ा जाए और उसका क्षेत्रफल और अन्य तरह की वहां मौजूद प्राकृति संसाधनों को किस के हिस्से में रखा जाए। अहम बात यह है कि यह गांव न तो मैन्युअल तरीके से सीमांकन में दुरुस्त हैं और और न डिजिटल मैपिंग में भी सामने आए हैं। अब जब सरकार पूरे प्रदेश का नया नक्शा बना रही है, तो पहले ऐसे गांवों के रिकॉर्ड को दुरुस्त करने की कवायद करनी पड़ रही है। सैटेलाइट के जरिए मैपिंग का प्रयास किया जाना है और इन गांवों के खसरे से लेकर सीमांकन की सरहद तक का आंकलन किया जाना है। दरअसल, इसका पता जब चला जब मैन्युअल रिकार्ड को डिजिटल किया जा रहा था। बीते एक दशक से प्रदेश में जमीनों के रिकॉर्ड को डिजिटल करने का काम किया जा रहा है। इसके बाद भी करीब 661 गांवों के नक्शे नहीं बने हैं। वजह यह रही कि निकायों की सीमा बढऩे, पंचायतों की सीमा में फेरबदल के बाद गांवों के सीमांकन में लापरवाही की गई। इसके अलावा 778 गांवों के खसरे ही नहीं हैं। सरकार ने जिलों-संभागों व शहरों की सीमाओं का पुनर्गठन करने राज्य प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग बनाया है। इसके तहत जिले बढ़ाए जा सकते हैं। इस काम में भी पंचायतों की सीमाओं को लेकर गांवों के रिकॉर्ड दुरुस्त करना जरूरी हो गया है। हालांकि आयोग मुख्यत: आम आदमी की समस्याओं के समाधान को फोकस करके सीमाओं का पुर्ननिर्धारण करेगा।
बदेलगा जिलों से लेकर तहसीलों तक का नक्शा
भौगोलिक और प्रशासनिक दृष्टि से नया मध्यप्रदेश बनाने की प्रक्रिया राज्य सरकार प्रारंभ कर चुकी है। प्रदेश में नए संभागों, जिलों, तहसीलों के गठन के लिए पुनर्गठन आयोग बनाया गया है जिसने अपनी कवायद चालू कर दी है। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही प्रदेश के भौगोलिक और प्रशासनिक ढांचे में व्यापक परिवर्तन किया जाना है। मध्यप्रदेश में 42 साल बाद यह कवायद की जा रही है। राज्य सरकार ने पुनर्गठन आयोग की घोषणा कर सितंबर में पहले सदस्य की नियुक्ति कर दी थी। पुर्नगठन आयोग के लिए 9 सितम्बर को आदेश जारी कर रिटायर्ड आईएएस मनोज श्रीवास्तव को सदस्य नियुक्त किया। 18 अक्टूबर को रिटायर्ड आईएएस मुकेश शुक्ला को भी आयोग का सदस्य बना दिया गया था। इसके अलावा सामान्य प्रशासन विभाग जीएडी के अपर सचिव अक्षय कुमार सिंह को प्रशासनिक इकाई पुर्नगठन आयोग का सचिव बनाया गया है। इस संबंध में सरकार ने 12 नवम्बर को आदेश जारी कर अपर सचिव सिंह को आयोग के सचिव का अतिरिक्त प्रभार दिया है। बता दें कि प्रदेश के संभागों, जिलों और तहसीलों के पुर्नगठन की कवायद 42 साल बाद दोबारा शुरु हुई है। इससे पहले सन 1982 में यह काम किया गया था। पुर्नगठन आयोग के दो सदस्य बनाने के बाद राज्य सरकार द्वारा सचिव की नियुक्ति कर दिए जाने के बाद इसके काम में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है।
बन सकते हैं तीन नए जिले
प्रदेश में अब तीन जिले बनाने की मांग और तेज हो गई है। वहीं बीना को जिला बनाने की मांग लगभग 40 सालों से हो रही है, इसी को लेकर विधायक निर्मला सप्रे ने बीजेपी ज्वाइन की थी, लेकिन उनके बीजेपी ज्वाइन करने के बाद खुरई को जिला बनाने की लॉबिंग होने लगी। बीना को जिला बनाया जाता है तो खुरई, बीना, मालथौन कुरवाई, पठारी, बांदरी को इसमें शामिल किया जा सकता है। सिरोंज की विदिशा से दूरी लगभग 85 किलोमीटर दूर है, जिसके चलते वहां के लोगों को प्रशासनिक कार्यों के लिए विदिशा पहुंचने में काफी समय लग जाता है। सिरोंज को जिला बनाने से लटेरी तहसील और ग्राम पंचायत आनंदपुर को इसमें शामिल किया जा सकता है। लेकिन आनंदपुर को गुना जिले में शामिल करने का भी सुझाव दिया गया है। क्योंकि आनंदपुर से सिरोंज और गुना की दूरी बराबर है। नर्मदापुरम जिले से अलग कर पिपरिया को भी अलग जिला बनाया जा सकता है, नर्मदपुरम से पिपरिया की दूरी 70 किलोमीटर है। विधानसभा चुनाव के दौरान पिपरिया को जिला बनाने की मांग तेज हुई थी। इस जिला बनाने को लेकर धरना, प्रदर्शन और हड़ताल भी की गई थी।

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