भोपाल। प्रदेश में आईएएस अफसरों के पास कितनी अचल संपत्ति है और वह कहां से मिली है, ये जानकारी उन्हें हर हाल में देनी होगी। अगर किसी आईएएस ने नियमित तौर से अपनी अचल संपत्ति का खुलासा नहीं किया है, तो उसे अब 11 साल का ब्यौरा देना पड़ेगा। इसके लिए केंद्र सरकार ने समय सीमा भी निर्धारित की है। दूसरे शब्दों में इसे एकबारगी छूट कहा जा सकता है। जिस विंडो पर आईपीआर भरी जाती है, वह 14 सितंबर तक खुली रहेगी। डीओपीटी ने इस बाबत सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वे संबंधित अधिकारियों से तय समय सीमा में आईपीआर भरवाना सुनिश्चित करें। अब प्रदेश में सरकार से प्रॉपर्टी छिपाने वाले आईएएस अफसरों पर शिकंजा कस दिया गया है। बीते 11 वर्षों में कभी भी यदि किसी आईएएस अफसर ने किसी साल अपनी प्रॉपर्टी की जानकारी सरकार को नहीं दी है तो उसे अब देनी होगी। फिर भी यदि कोई अफसर जानकारी नहीं देता है तो उसे अगली वेतनवृद्धि नहीं मिलेगी। इसलिए ऐसे आईएएस अफसरों की खोजबीन शुरू कर दी गई है, जिन्होंने अचल संपत्ति की जानकारी नहीं दी है। प्रदेश में ऐसे आधा दर्जन से ज्यादा अधिकारी हैं, जिन्होंने बीते वर्षों में प्रॉपर्टी की जानकारी नहीं दी या देने में चूक गए। इसमें इस साल भी दो अफसर ऐसे हैं, जिन्होंने प्रॉपर्टी की डिटेल सरकार को नहीं दी है।
केंद्र के पत्र के बाद सख्ती
दरअसल, प्रदेश में प्रॉपर्टी छिपाने वाले आईएएस अफसरों की खोजबीन केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय की ओर से मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस से जानकारी मांगने के बाद शुरू हुई है। मंत्रालय ने 28 जून को मुख्य सचिव को पत्र लिखकर ऐसे अफसरों को संपत्ति की जानकारी बताने का एक और मौका देने के लिए कहा था। इसके बाद मुख्य सचिव ने जीएडी-कार्मिक को पत्र लिखकर जानकारी दी। अब जीएडी-कार्मिक ने खोजबीन शुरू की है। इस दायरे में आधा दर्जन से ज्यादा आईएएस आ रहे हैं। इनमें इस साल प्रॉपर्टी न बताने वाले संतोष वर्मा और रानी बंसल भी शामिल हैं।
तीन साल में 567 ने नहीं भरी आईपीआर
विभाग से संबंधित कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय पर संसदीय स्थायी समिति के चेयरमैन सुशील कुमार मोदी द्वारा यह रिपोर्ट संसद के पिछले सत्र में पेश की गई थी। इस कमेटी में लोकसभा व राज्यसभा के 31 सदस्य शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश के 567 आईएएस अधिकारियों ने 2018 से 2021 के दौरान आईपीआर जमा नहीं कराई। वहीं मप्र 343 आईएएस अफसरों की प्रॉपर्टी डिटेल सरकार के पास है। सूबे में करीब 400 आईएएस के पद हैं। दो आईएएस ने डिटेल नहीं दी है, जबकि बाकी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। आईएएस जो ब्योरा देते हैं, उनकी जांच का फुल प्रूफ सिस्टम नहीं है। कई बार जानकारी में प्रॉपर्टी की वास्तविक कीमत और ब्योरे में दिए मूल्य में अंतर रहता है। सिर्फ जीएडी की कार्मिक शाखा परीक्षण करती है। इसमें भी अलग से कोई विंग नहीं है। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव एससी बेहार का कहना है कि आईएएस, आईपीएस या आईएफएस अफसर की प्रॉपर्टी की जांच कराना खर्चीला और अनुपयोगी काम है। यह जरूर हो सकता है कि संदिग्ध अफसर की जांच हो। हर साल रेंडम 2-5 प्रतिशत की जांच की व्यवस्था कर सकते हैं। संदिग्ध की जांच की व्यवस्था को तो मजबूत करना चाहिए।
विजिलेंस क्लीयरेंस के लिए जरूरी है आईपीआर भरना
केंद्र सरकार ने आईएएस अधिकारियों के लिए (ए) प्रस्ताव सूची में शामिल करने के उद्देश्य से सतर्कता मंजूरी लेना अनिवार्य किया है। (बी) पैनल में या (सी) में कोई भी प्रतिनियुक्ति, जिसके लिए केंद्र सरकार की मंजूरी आवश्यक है, उस वक्त संबंधित अधिकारी की विजिलेंस क्लीयरेंस देखी जाती है। यदि कोई अधिकारी पिछले वर्ष की अपनी वार्षिक अचल संपत्ति रिटर्न अगले वर्ष की 31 जनवरी तक जमा करने में विफल रहता है, तो उसे सतर्कता मंजूरी से वंचित कर दिया जाएगा। वर्ष 2020 के लिए आईपीआर दाखिल नहीं करने वाले त्रुटिपूर्ण आईएएस अधिकारियों पर कार्रवाई के संबंध में, एआईएस (आचरण) नियम, 1968 के नियम 16 (2) के तहत कार्रवाई करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों को दोषी अधिकारियों की सूची अग्रेषित की गई थी। संबंधित वेतन नियमों में संशोधन के माध्यम से संबंधित एआईएस के अगले उच्च ग्रेड में पदोन्नति प्रदान करने के लिए भी आईपीआर समय पर जमा करना एक अनिवार्य शर्त है।