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यदि दवाएँ कारगर नहीं रहीं तो साधारण रोग भी हो जाएँगे घातक

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शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत

– सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

दवाओं के अनावश्यक उपयोग या A picture containing text, windowDescription automatically generatedदुरुपयोग के कारण, जो कीटाणु रोग जनते हैं, वह दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न कर लेते हैं, और नतीजतन यह दवाएँ उन कीटाणुओं पर कारगर नहीं रहतीं। साधारण से रोग जिनका पक्का इलाज मुमकिन है वह तक लाइलाज हो सकते हैं।

If medicines are not effective then even simple diseases will become fatal.  | Medicines Are Not Effective: यदि दवाएँ कारगर नहीं रहीं तो साधारण रोग भी  हो जाएँगे घातक

शांत महामारी या सक्रिय ज्वालामुखी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दवा-प्रतिरोधकता विभाग के निदेशक डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि बेक्टीरिया, वाइरस, फ़ंगस, या अन्य पैरासाइट – में जब आनुवंशिक परिवर्तन हो जाता है तब वह सामान्य दवाओं को बे-असर कर देता है। एंटीबाइओटिक हो या एंटी-फ़ंगल, एंटी-विरल हो या एंटी-पैरासाइट, वह बे-असर हो जाती हैं और रोग के उपचार के लिए या तो नयी दवा चाहिए, और यदि नई दवा नहीं है तो रोग लाइलाज तक हो सकता है। इसीलिए दवा प्रतिरोधकता के कारणवश, न केवल संक्रामक रोग का फैलाव ज़्यादा हो रहा है बल्कि रोगी, अत्यंत तीव्र रोग झेलता है और मृत्यु का ख़तरा भी अत्याधिक बढ़ जाता है।

संक्रामक रोग विशेषज्ञ और भारत में एचआईवी पॉज़िटिव लोगों की चिकित्सकीय देखभाल आरम्भ करने वाले सर्वप्रथम विशेषज्ञ डॉ ईश्वर गिलाडा ने कहा कि जब से दुनिया की पहली एंटीबाइओटिक की खोज ऐलेग्ज़ैंडर फ़्लेमिंग ने की है (पेनिसिलिन) तब से इन दवाओं ने अरबों लोगों की जीवन रक्षा की है। पर अब दवा प्रतिरोधकता के कारण ख़तरा मंडरा रहा है और गहरा रहा है कि अनेक दवाएँ कारगर ही न रहें और साधारण रोग तक लाइलाज हो जाएँ। एचआईवी पॉज़िटिव लोग यदि एंटीरेट्रोवाइरल दवा ले रहे हों और वाइरल लोड नगण्य रहे, तो वह सामान्य रूप से जीवनयापन कर सकते हैं। पर इन जीवनरक्षक एंटीरेट्रोविरल दवाओं से एचआईवी वाइरस दवा प्रतिरोधक हो रहा है जिसके कारण चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।

यदि दवाएँ कारगर नहीं रहीं तो साधारण रोग भी हो जाएँगे घातक – Legend News

हालाँकि दवा प्रतिरोधकता से होने वाली मृत्यु के आँकड़े संतोषजनक ढंग से एकत्रित नहीं किए गए हैं परंतु कम-से-कम 7 लाख लोग हर साल इसके कारण तो मरते ही हैं। टीबी रोग बेक्टेरिया से होता है, और यह बेक्टेरिया अक्सर दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न कर लेता है और सबसे प्रभावकारी दवाएँ, कारगर नहीं रहतीं। इसीलिए दवा प्रतिरोधक टीबी का इलाज बहुत लम्बा और महँगा हो जाता है जिसके परिणाम भी असंतोषजनक हैं। हालाँकि हर प्रकार की टीबी का इलाज सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नि:शुल्क है। इसी तरह मलेरिया उत्पन्न करने वाला पैरासाइट भी आर्टीमिसिनिन दवा (जो एकमात्र कारगर दवा है) से दवा-प्रतिरोधकता उत्पन्न कर रहा है जिसके कारण ग्रेटर-मीकांग क्षेत्र में दवा प्रतिरोधक मलेरिया एक चुनौती बन गयी है। अफ़्रीका के रवांडा में भी दवा प्रतिरोधक मलेरिया रिपोर्ट हुई है।

दवा प्रतिरोधक फ़ंगल संक्रामक रोग (फफूंदीय रोग) भी बढ़ोतरी पर हैं। डॉ ईश्वर गिलाडा जो ऑर्गनायज़्ड मेडिसिन ऐकडेमिक गिल्ड के सचिव हैं और एड्स सॉसाययटी ओफ़ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ने बताया कि सिपरोफलोकसेसिन दवा जो निमोनिया, और पेशाब की नली में होने वाले संक्रमण, के इलाज में उपयोग होती है उसके प्रति अक्सर कीटाणु दवा प्रतिरोधक हो रहे हैं, जो एक बड़ी चुनौती प्रस्तुत कर रहा है।

मानव-जनित त्रासदी है दवा प्रतिरोधकता

हालाँकि समय के साथ सामान्य रूप से भी दवा प्रतिरोधकता उत्पन्न होती है परंतु अनेक ऐसे मानव-जनित कारण हैं जो दवा प्रतिरोधकता के फैलाव में ख़तरनाक अत्याधिक तेज़ी ले आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉ गेटाहुन ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा केंद्रों, पशु स्वास्थ्य सेवा केंद्रों और खाद्य-सम्बन्धी स्थानों पर हर स्तर पर असंतोषजनक संक्रमण नियंत्रण, और साफ पानी और पर्याप्त स्वच्छता के न होने के कारण भी दवा प्रतिरोधकता बढ़ोतरी पर है।

डॉ गेटाहुन ने बताया कि मानव स्वास्थ्य हो या पशु-पालन या कृषि, गुणात्मक दृष्टि से असंतोषजनक दवाओं, और दवाओं के अनुचित इस्तेमाल से भी दवा प्रतिरोधकता तीव्रता के साथ भीषण चुनौती प्रस्तुत कर रही है। उदाहरण के तौर पर, कोविड महामारी के नियंत्रण में एक शोध के अनुसार, सिर्फ़ 6.9% कोविड से संक्रमित लोगों को बेक्टेरिया के कारण संक्रमण था, पर 72% को एंटी-बेक्टेरीयल दवा दी गयी। अनावश्यक दवा देने के कारण भी दवा प्रतिरोधकता बढ़ोतरी पर है जिसका विभत्स परिणाम भविष्य में भी देखने को मिलेगा।

दवा प्रतिरोधकता, मानव स्वास्थ्य, पशुपालन, और कृषि

मानव स्वास्थ्य हो या कृषि या पशुपालन आदि, इन क्षेत्रों में दवाओं के अनुचित या अनावश्यक उपयोग के लिए ज़िम्मेदार तो इंसान ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की डॉ एलिज़ाबेथ टेलर ने कहा कि पशुपालन और कृषि में कम समय में अधिक उत्पाद के लिए अक्सर दवाएँ उपयोग होती हैं जो अक्सर गुणात्मक दृष्टि से असंतोषजनक रहती हैं या अनावश्यक या अनुचित। डॉ टेलर ने उदाहरण दिया कि ‘सिटरस’ (संतरे आदि) की खेती में एंटीबायआटिक दवाओं (जैसे कि स्ट्रेपटोमाइसिन और टेट्रासाइक्लीन) का छिड़काव होता है, या पुष्पों की खेती में एंटीफ़ंगल दवाओं का उपयोग होता है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि प्रतिरोधकता विकसित की हुई दवाएँ अक्सर पर्यावरण में रिस कर पहुँच जाती हैं। कृषि या अस्पताल में अत्याधिक दवाओं के उपयोग के कारणवश वहाँ से निकलने वाले कचरे आदि मे, अक्सर चिंताजनक मात्रा में दवाएँ पायी गयी हैं – जो अंतत: नदी में पहुँच सकती हैं जहां जनमानस नहाने, पीने, घरेलू इस्तेमाल आदि के लिए पानी लाते हैं। इससे दवा प्रतिरोधक रोग होने का ख़तरा भी बढ़ता है।

डॉ गेटाहुन ने सही कहा है कि एक ओर बेहतर दवाओं के लिए शोध तेज होना चाहिए पर दूसरी ओर, हमें यह सर्वाधिक ध्यान देना चाहिए कि जो दवाएँ हमारे पास हैं वह बे-असर न हो जाएँ।

डॉ टेलर का आह्वान है कि खाद्य, पशुपालन और पशु-स्वास्थ्य, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण से सम्बंधित सभी लोगों, संस्थाओं और विभागों को एकजुट हो कर दवा प्रतिरोधकता पर विराम लगाना होगा। यह न केवल मानव स्वास्थ्य सुरक्षा के हित में है बल्कि पशु स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।

शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत – सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)

(शोभा शुक्ला और बॉबी रमाकांत, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) और आशा परिवार से जुड़े हैं। 

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