मध्यप्रदेश के मालवा इलाके के इंदौर, रतलाम, उज्जैन, नीमच इलाकों में पानी को लेकर अभी से स्थिति चिंताजनक बताई जा रही है. कहा जा रहा है कि भू-जल के अधिक दोहन से आने वाले समय में पानी का संकट पैदा हो सकता है. इन हालातों को देखते हुए सरकार ने बिना अनुमति बोरिंग कराने वालों पर 2 साल की सजा का प्रावधान रखा है.
मध्यप्रदेश के मालवा के बारे में कहावत प्रचलित रही है कि पग-पग रोटी, पग-पग नील, लेकिन इस इलाके में नीर की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है. केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश के मालवा इलाके के इंदौर, रतलाम, उज्जैन, नीमच इलाकों में भू-जल के अत्यधिक दोहन से आने वाले समय में पानी का गंभीर संकट पैदा हो सकता है. सिंचाई और पीने के पानी के लिए अंधाधुंध तरीके से हो रहे बोर और खींचे जा रहे पानी से ग्राउंड वॉटर की उपलब्धता लगातार कम होती जा रही है. उधर पानी के दोहन को देखते हुए राज्य सरकार ने बिना अनुमति बोरिंग कराए जाने पर 2 साल तक की सजा का प्रावधान कर दिया है.
प्रदेश के इन जिलों में हालत चिंताजनक: केन्द्रीय भू-जल बोर्ड की डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स ऑफ इंडिया 2022 की रिपोर्ट मध्यप्रदेश के मालवांचल इलाके के लिए चेताने वाली है. रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के मालवांचल इलाके में भू-जल का बेतहाशा दोहन हो रहा है. बोर्ड द्वारा यह रिपोर्ट दो साल के अंतराल पर जारी की जाती है. ताजा रिपोर्ट में मध्यप्रदेश के इंदौर, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर और उज्जैन को ओवर एक्स्प्लाइट श्रेणी में शामिल किया गया है. यानी इन इलाकों में बोरिंग के जरिए भूजल का उपयोग खेती, उद्योगों और घरेलू उपयोग में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा किया जा रहा है. रिपोर्ट में चेताया गया है कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले सालों में इन इलाकों में पेयजल का भी भारी संकट खड़ा हो सकता है.
एमपी के इस अंचल में पानी का संकट
इसलिए बन रहे चिंताजनक हालात: मालवांचल में यह हालात इसलिए चिंताजनक बन रहे हैं क्योंकि इन इलाकों में जरूरत से कहीं ज्यादा भू-जल का उपयोग किया जा रहा है. साल भर में जितना पानी जमीन में रीचार्ज नहीं हो रहा, उससे कहीं ज्यादा पानी खींचा जा रहा है.
- रतलाम जिले में 136.41 फीसदी पानी खींचा गया, जिसमें सिंचाई, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए 103784 करोड़ लीटर पानी खींचा गया, जबकि ग्राउंड वॉटर निकाला जा सकता था 76080 करोड़ लीटर पानी.
- शाजापुर जिले में 106 फीसदी भू जल निकाला जा रहा है. इसमें सिंचाई, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए 54991 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है, जबकि ग्राउंड वॉटर रीचार्ज 51495 करोड़ लीटर पानी हो रहा है.
- उज्जैन जिले में 108 फीसदी भू जल निकाला जा रहा है. इसमें सिंचाई, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए 99361 करोड़ लीटर पानी निकाला जा रहा है, जबकि ग्राउंड वॉटर रिचार्ज 91601 करोड़ लीटर पानी रिचार्ज हुआ.
- मंदसौर जिले में 103 फीसदी भू जल निकाजा रहा है. इसमें सिंचाई, घरेलू और अन्य उपयोग के लिए 67169 करोड़ लीटर पानी जा रहा है, जबकि ग्राउंड वॉटर रिचार्ज हो रहा है 65121 करोड़ लीटर पानी.
- इंदौर में ग्राउंड वॉटर 120 फीसदी निकाला गया. यहां सिंचाई, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए 63753 करोड़ लीटर पानी निकाला गया, जबकि ग्राउंड वॉटर रिचार्ज होने के बाद निकाला जा सकता था 52999 करोड़ लीटर पानी.
बेतहाशा होने वाली बोरिंग पर लगे रोक: उधर इसको लेकर पर्यावरणविद् भी चिंतित हैं. पर्यावरणविद् सुभाष पांडे के मुताबिक पीने के पानी का सिंचाई और उद्योगों में जमकर उपयोग किया जा रहा है, जो चिंताजनक है. केन्द्रीय भू जल बोर्ड की रिपोर्ट चिंताजनक है. यदि लोग इतने ही बेपरवाह होकर भू-जल को निकालते रहे तो इसका खामियाजा आने वाले समय में भुगतना पड़ सकता है. लोगों को इसको लेकर जागरूक करने की जरूरत है. भू-जल की भी अपनी सीमा है, इसे लोगों को समझना चाहिए. साथ ही शहरों में वॉटर रिचार्ज को लेकर सख्ती से लागू कराया जाना चाहिए. बेहतर होगा कि हम सरफेस वॉटर का ज्यादा उपयोग करें और रिचार्ज जोन बनाएं.
उधर सरकार ने सख्त किए नियम: उधर राज्य सरकार ने बिना अनुमति बोरिंग और पेयजल का दूसरे कामों में उपयोग करने को लेकर नियम सख्त कर दिए हैं. इसके लिए राज्य सरकार ने पेय जल परिरक्षण संशोधन अधिनियम 2022 में नियम को और सख्त कर दिया है. इस अधिनियम की धारा 9 में प्रावधान किया गया है कि पेयजल का उपयोग किसी दूसरे कामों में करने की शिकायत मिलने पर पहली बार 5 हजार का जुर्माना, इसके बाद फिर ऐसा करने पर 10 हजार रुपए का जुर्माना या दो साल तक की सजा दी जाएगी.
धूल फांक रही कई नल-जल योजनाएं
मध्य प्रदेश के कई इलाकों में ज्यादा मुसीबत पानी की कमी बनी हुई है. खास तौर पर ग्रामीण इलाकों में लोगों को पीने के पानी के लिए भटकना पड़ रहा है. कई नगरीय निकायों में 2 से 3 दिन छोड़कर पानी लोगों को मिल रहा है. ग्रामीण इलाकों की हालत तो और भी ज्यादा खराब है. गर्मी बढ़ने के साथ ही प्रदेश भर से पानी की कमी की शिकायतें आने लगी हैं. हालांकि पीएचई ने कई शिकायतों का निपटारा किया है, लेकिन इस भीषण गर्मी में ये नाकाफी साबित हो रहा है.
करोड़ों खर्च फिर भी प्यासा है एमपी
मध्यप्रदेश में सरकार पिछले 15 सालों में करीब 35 हजार करोड़ रुपए पीने का पानी जुटाने में खर्च कर चुकी है, फिर भी प्रदेश की मात्र 12 फीसदी ग्रामीण आबादी को ही पेयजल मिल पा रहा है. वहीं 56 नगरीय निकायों में 1 दिन छोड़कर पानी मिल रहा है, जबकि कई जिलों में 3 से 4 दिनों में पानी मिलता है.
बंद पड़ी नल-जल योजनाएं
सरकारों के भारी भरकम खर्चे के बाद भी प्रदेश में 1358 नल जल योजना हैं. वहीं 596 नल-जल योजनाओं के जल स्रोत सूख गए हैं, जबकि 176 नल-जल योजनाओं के जल स्रोत की पाइप लाइन टूट गई है. वहीं प्रदेश में 19,314 हैंडपंप अब भी बंद पड़े हैं. प्रदेश में कुल 16,263 नल जल योजनाएं संचालित हो रही हैं, जिनके लिए सरकार व्यय कर रही है, फिर भी पानी की कमी बनी हुई है.
इन जिलों में बढ़ी शिकायतें
प्रदेश में भले ही कई इलाकों में पानी गिरने लगा हो पर सूरज का तापमान अपने शबाब पर है, जिस कारण जल स्त्रोत लगातार सूख रहे हैं. इसी कारण प्रदेश भर से पीएचई में शिकायतों का अंबार लगने लगा है. अभी तक दर्ज शिकायतों में छतरपुर से 82, टीकमगढ़ से 50, दमोह से 111, मंडला से 24, कटनी से 112, अनूपपुर से 99, नरसिंहपुर से 68 शिकायतें शामिल हैं. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि वाकई में प्रदेश में पानी को लेकर सरकार के प्रयास नाकाफी हैं. राज्य के बुंदेलखंड अचंल में भी भीषण जलसंकट गहराया हुआ है.
प्रचंड गर्मी में कैसे हुआ शिकायतों का निपटारा
लगातार बढ़ रही शिकायतों के बाद पीएचई विभाग ने प्रदेश में 523 नए हैंडपंप लगाए हैं, जबकि 6,186 हैंडपंप में पाइप बढ़ाए गए हैं. वहीं 800 स्थानों पर सिंगल मोटर पंप लगाया गया, जिससे लोगों को पानी की किलल्त से निजात मिल सके, लेकिन इस भीषण गर्मी और पानी की कमी में सरकार के ये प्रयास कम साबित हो रहे हैं.
पानी उपलब्ध कराने में एमपी फिसड्डी
लोगों को पानी उपलब्ध करवाने के मामले में मध्यप्रदेश देश में सातवें स्थान पर है. प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन के तहत 13 जिले के 4022 गांव में 15 समूह नल जल योजना शुरू करने की बात कह रही है. अब देखना होगा कि आने वाले सालों में पानी के संकट से लोग कितना उबर पाते हैं.