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मनुष्य हो तो , मनुष्यता का परिचय भी दो

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      ~> पूजा ‘पूजा’

जब कभी आप अपने बारे में गहराई से सोचते हैं_ तो क्या आपको लगता है? :

    “किसी का बुरा सोचना भी मुझे पसंद नहीं। छल-कपट से दूर हूं। लेकिन मुझे कोई समझ नहीं पाया। सच्चे प्यार का तो एक कतरा भी मुझे नसीब नहीं।”

  ऐ़सा इसलिये लगता है, क्योंकि :

    “खुदगर्जों की महफिल है,

उनकी हसरतों का मेला है।

रिश्तों की भारी भीड में भी,

नेक इंसान अकेला है।।”

      ये सच हम हर पल जमाने में देखते हैं। मगर जब तक खुद भुक्तभोगी नहीं बनते तब तक “अपने’ मामले में इसे सच नहीं मानते। जिसे इस सच का अनुभव होता है, वह पाता है :

  “खुदगर्ज रिश्तों ने लूट लिया सब कुछ.

दिया जिन्दा लाश-सी जिन्दगी के सिवा कुछ नहीं.”

     तब इंसान इतना टूट जाता है कि उसे लगता है कि,ऐसी जिन्दगी में हर पल मरने से बेहतर वह एक बार मर जाए।

    ऐसा इंसान दिखे तो उसे संभालें। अपने मानव होने का, अपनी इंसानियत का परिचय दें।

   किसी वजह से ऐसा न कर पाएं तो उसे हमसे जोड़ दें। उसको नई और सफल जिन्दगी मुहैया कराई जाएगी। वह इंसान मेल हो, फीमेल हो, सीमेल हो, किन्नर हो, ट्रांसजेन्डर हो यानी कोई भी हो.

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