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तुममें-हममे-सबमें ययाति : जीतकर जीओ, वर्ना जन्मों तक मारता रहेगा 

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            अनामिका, प्रयागराज 

औपनिषदिक आख्यान है. कथा तथ्य न भी हो, तो भी सत्य है। बहुत बार जो तथ्य नहीं होते, वे भी सत्य होते हैं। बहुत बार जो तथ्य होते हैं, वे भी सत्य नहीं होते। यह ययाति की कथा तथ्य चाहे नहीं हो, लेकिन सत्य है। सत्य इसलिए कि उसका इंगित सत्य की ओर है। मनुष्य का मन ऐसा है कि ऐसा रोज ही होना चाहिए।

ययाति सौ वर्ष का हो गया, उसकी मृत्यु आ गई। सम्राट था। सुंदर पत्नियां थीं, धन था, यश था, कीर्ति थी, शक्ति थी, प्रतिष्ठा थी।

    मौत द्वार पर आकर दस्तक दी। ययाति ने कहा, अभी आ गई? अभी तो मैं कुछ भोग नहीं पाया। अभी तो कुछ शुरू भी नहीं हुआ था! यह तो थोड़ी जल्दी हो गई।

    सौ वर्ष मुझे और चाहिए। मृत्यु ने कहा, मैं मजबूर हूं। मुझे तो ले जाना ही पड़ेगा। ययाति ने कहा, कोई भी मार्ग खोज। मुझे सौ वर्ष और दे। क्योंकि मैंने तो अभी तक कोई सुख जाना ही नहीं।

   मृत्यु ने कहा, सौ वर्ष आप क्या करते थे? ययाति ने कहा, जिस सुख को जानता था, वही व्यर्थ हो जाता था। तब दूसरे सुख की खोज करता था। खोजा बहुत, पाया अब तक नहीं। सोचता था, कल की योजना बना रहा था। तेरे आगमन से तो कल का द्वार बंद हो जाएगा। अभी मुझे आशा है।

     मृत्यु ने कहा, सौ वर्ष में समझ नहीं आई। आशा अभी कायम है? अनुभव नहीं आया? तो आगे कैसे?

 ययाति ने कहा, कौन कह सकता है कि ऐसा कोई सुख न हो, जिससे मैं अपरिचित होऊं, जिसे पा लूं तो सुखी हो जाऊं! कौन कह सकता है? तू मौका तो दे.

   मृत्यु ने कहा, तो फिर एक उपाय है कि तुम्हारे बेटे हैं दस। एक बेटा अपना जीवन दे दे तुम्हारी जगह, तो उसकी उम्र तुम ले लो। मैं लौट जाऊं। पर मुझे एक को ले जाना ही पड़ेगा।

बाप थोड़ा डरा। डर स्वाभाविक था। क्योंकि बाप सौ वर्ष का होकर मरने को राजी न हो, तो कोई बेटा अभी बीस का था, कोई अभी पंद्रह का था, कोई अभी दस का था। अभी तो उन्होंने और भी कुछ भी नहीं जाना था। 

     बाप ने सोचा, शायद कोई उनमें राजी हो जाए। पूछा, बड़े बेटे तो राजी न हुए। उन्होंने कहा, आप कैसी बात करते हैं! आप सौ वर्ष के होकर जाने को तैयार नहीं। मेरी उम्र तो अभी चालीस वर्ष शेष है। अभी तो मैंने जिंदगी कुछ भी नहीं देखी। आप किस मुंह से मुझसे कहते हैं?

सबसे छोटा बेटा राजी हो गया। जब बाप से उसने कहा कि मैं राजी हूं, तो बाप भी हैरान हुआ। ययाति ने कहा, सब नौ बेटों ने इनकार कर दिया, तू राजी होता है। क्या तुझे यह खयाल नहीं आता कि मैं सौ वर्ष का होकर भी मरने को राजी नहीं, तेरी उम्र तो अभी बारह ही वर्ष है!

    उस बेटे ने कहा, यह सोचकर राजी होता हूं कि जब सौ वर्ष में भी तुमने कुछ न पाया, तो व्यर्थ की दौड़ में मैं क्यों पडूं! जब मरना ही है और सौ वर्ष के समय में भी मरकर ऐसी पीड़ा होती है, जैसी तुमको हो रही है, तो मैं बारह वर्ष में ही मर जाऊं। अभी कम से कम विषाद से तो बचा हूं। अभी मैंने दुख तो नहीं जाना। सुख नहीं जाना, दुख भी नहीं जाना। मैं जाता हूं। कम से कम तुम तो सुखी हो लो.

     फिर भी ययाति को बुद्धि न आई। मन का रस ऐसा है कि उसने भोग विलास के लिए कल की योजनाएं बना रखी थीं। बेटे को जाने दिया। ययाति और सौ वर्ष जीया।

 फिर मौत आ गई। ये सौ वर्ष कब बीत गए, पता नहीं। ययाति फिर भूल गया कि मौत आ रही है। कितनी ही बार मौत आ जाए, हम सदा भूल जाते हैं कि मौत आ रही है। हम सब बहुत बार मर चुके हैं। हम सब के द्वारों पर बहुत बार मौत दस्तक दे गई है।

    ययाति के द्वार पर दस्तक हुई। ययाति ने कहा, अभी! इतने जल्दी! क्या सौ वर्ष बीत गए? मौत ने कहा, इसे भी जल्दी कहते हैं आप! अब तो आपकी योजनाएं पूरी हो गई होंगी?

     ययाति ने कहा, मैं वहीं का वहीं खड़ा हूं। मौत ने कहा, कहते थे कि कल और मिल जाए, तो मैं सुख पा लूं!    

     ययाति ने कहा, मिला कल भी, लेकिन जिन सुखों को खोजा उनसे दुख ही पाया। अभी फिर योजनाएं मन में हैं। क्षमा कर, एक और मौका! पर मौत ने कहा, फिर वही करना पड़ेगा।

इन सौ वर्षों में ययाति के नए बेटे पैदा हो गए; पुराने बेटे तो मर चुके थे। फिर छोटा बेटा राजी हो गया। ऐसे दस बार घटना घटती है। मौत आती है, लौटती है। एक हजार साल ययाति जिंदा रहता है।

अगर हमको भी यह मौका मिले, तो हम इससे भिन्न न करेंगे। सोचें थोड़ा मन में कि मौत दरवाजे पर आए और कहे कि सौ वर्ष का मौका देते हैं, घर में कोई राजी है? तो आप किसी को राजी करने की कोशिश करेंगे कि नहीं करेंगे! जरूर करेंगे। 

   क्या दुबारा मौत आए, तो आप तब तक समझदार हो चुके होंगे? नहीं, जल्दी से मत कह लेना कि हम समझदार हैं। क्योंकि ययाति कम समझदार नहीं था।

     हजार वर्ष के बाद भी जब मौत ने दस्तक दी, तो ययाति वहीं था, जहां पहले सौ वर्ष के बाद था। मौत ने कहा, अब क्षमा करो! किसी चीज की सीमा भी होती है। अब मुझसे मत कहना। बहुत हो गया! 

    ययाति ने कहा, कितना ही हुआ हो, लेकिन मन मेरा वहीं है। कल अभी बाकी है, और सोचता हूं कि कोई सुख शायद अनजाना बचा हो, जिसे पा लूं तो सुखी हो जाऊं!

अनंत काल तक भी ऐसा ही होता रहता है। तो फिर वैराग्य पैदा नहीं होगा। अगर एक राग व्यर्थ होता है और आप तत्काल दूसरे राग की कामना करने लगते हैं, तो राग की धारा जारी रहेगी। एक राग का विषय टूटेगा, दूसरा राग का निर्मित हो जाएगा। दूसरा टूटेगा, तीसरा निर्मित हो जाएगा। ऐसा अनंत तक चल सकता है। ऐसा अनंत तक चलता है। वैराग्य कब होगा?

     वैराग्य उसे होता है, जो एक राग की व्यर्थता में समस्त रागों की व्यर्थता को देखने में समर्थ हो जाता है। जो एक सुख के गिरने में समस्त सुखों के गिरने को देख पाता है। जिसके लिए कोई भी फ्रस्ट्रेशन, कोई भी विषाद अल्टिमेट, आत्यंतिक हो जाता है। जो मन के इस राज को पकड़ लेता है जल्दी ही कि यह धोखा है। 

    क्यों? क्योंकि कल मैंने जिसे सुख कहा था, वह आज दुख हो गया। आज जिसे सुख कह रहा हूं, वह कल दुख हो जाएगा। कल जिसे सुख कहूंगा, वह परसों दुख हो जाएगा। जो इस सत्य को पहचानने में समर्थ हो जाता है, जो इतना इंटेंस देखने में समर्थ है, जो इतना गहरा देख पाता है जीवन में।

    अब दोबारा जब मन कोई राग का विषय बनाए, तो मन से पूछना कि तेरा अतीत अनुभव क्या है? अपने मन से कहना कि फिर तू एक नया उपद्रव निर्मित कर रहा है! अब बस.

     लेकिन यह बस तब होगा, जब आप खुद को तृप्त अथवा पूर्ण कर लेने का काम पहले कर लें. खुद को परमानंद का शिखर देना अगर आपकी प्रथम प्राथमिकता नहीं, तो आप यूँ ही जन्मों भटकते- सड़ते- मरते रहेंगें. अपनी इस मंज़िल के लिए आप मुझे मिलें. अपना तन- मन- धन नहीं, सिर्फ़ खुद को मुझे दें : वो भी मात्र चौबीस घंटे के लिए.

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