दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रो. जीएन साईबाबा के निधन के बाद देश-विदेश में श्रद्धांजलि अर्पित की जा रही है। उसी कड़ी में रविवार, 13 अक्टूबर को कनाडा के सरे के हॉलैंड पार्क में पूर्व प्रोफेसर की मौत पर अपनी संवेदना व्यक्त करने और साईबाबा को जेल में मिली अमानवीय यातनाओं के खिलाफ अपनी आवाज उठाने के लिए भारी संख्या में लोग एकत्र हुए।
इस दौरान वक्ताओं ने कहा कि जेल में अमानवीय यातनाओं से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याओं के कारण जीएन साईबाबा का निधन हो गया। मोदी सरकार ने साईबाबा को सलाखों के पीछे डालने से पहले उन्हें माओवादियों का हमदर्द बताया गया था। झूठे आरोपों में फंसाए जाने के बाद उन्हें दोषी ठहराया गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने वाले विद्वान साईबाबा शारीरिक रूप से विकलांग थे और कई बीमारियों से पीड़ित थे। संयुक्त राष्ट्र ने भी दया के आधार पर उनकी रिहाई की वकालत की थी। लेकिन भारत सरकार अड़ी रही और उन्हें रिहा करने से इनकार कर दिया।
उन्हें अपनी मां को उनकी मृत्युशैया पर देखने का मौका भी नहीं दिया गया। हालांकि उन्हें सात साल की सजा काटने के बाद कुछ महीने पहले ही बरी किया गया था। जेल में उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता रहा।
रविवार के कार्यक्रम का आयोजन वैकल्पिक राजनीति को कवर करने वाली ऑनलाइन पत्रिका रेडिकल देसी ने किया था। इसने पहले कनाडा सरकार से उनकी रिहाई के लिए हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए एक याचिका शुरू की थी।
वक्ताओं ने सर्वसम्मति से उनकी मौत के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया और सत्ता में बैठे लोगों पर उनकी “हत्या” का आरोप लगाया।
उन्होंने उनकी याद में मोमबत्तियां ज
लाईं और “साईंबाबा अमर रहें” लिखे हुए पोस्टर दिखाए। उन्होंने भारतीय अधिकारियों के खिलाफ नारे भी लगाए। शुरुआत में साईंबाबा के लिए एक मिनट का मौन रखा गया।
वक्ताओं में जेनिफर शेरिफ, एक स्वदेशी शिक्षिका जिन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत की और जॉन याजाला, बी.सी. में तेलुगु ईसाई समुदाय के नेता हैं। उल्लेखनीय है कि साईंबाबा भी तेलुगु समुदाय से थे।
इस अवसर पर सामुदायिक कार्यकर्ता साहिब सिंह थिंद, प्रमुख पंजाबी कवि अमृत दीवाना, प्रसिद्ध सिख कार्यकर्ता राज सिंह भंडाल, कुलविंदर सिंह, ज्ञान सिंह गिल और संग्राम सिंह, प्रख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता सुनील कुमार, प्रसिद्ध मीडिया हस्तियां गुरविंदर सिंह धालीवाल और भूपिंदर मलीह, महिला अधिकार कार्यकर्ता शबनम के अलावा रेडिकल देसी के सह-संस्थापक गुरप्रीत सिंह भी शामिल हुए।