इंदौर। मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी और आवासीय लिहाज से सबसे उपयुक्त माने जाने वाले इंदौर शहर का रियल एस्टेट कारोबार लगातार तीसरे साल भी चौपट होने की कगार पर है। सूत्रों की माने तो स्थिति यह है कि तमाम सरकारी और निजी निर्माण प्रोजेक्ट बंद पड़े हैं या कछुआ चाल पर चल रहे हैं। कोरोना की तीसरी लहर के चलते कई मजदूरों ने पलायान कर लिया है और निर्माण सामग्री के भाव दोगुने होने की वजह से रियल एस्टेट कारोबार करीब तीन हजार करोड़ के घाटे की चपेट में हैं। दरअसल कोरोना ने हर ओर तबाही मचाई है और इससे हर इंसान कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में प्रभावित हुआ है। कोरोना ने कारोबार की भी कमर तोड़ दी है।
अधूरे पड़े प्रोजेक्ट सबसे बड़ा उदाहरण :
शहर के व्यावसायिक क्षेत्रों से लेकर आवासीय क्षेत्रों में अधूरी बनी इमारतें और लंबित पड़े बड़े आवासीय प्रोजेक्ट इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं। कोराना काल में लॉकडाउन लगने के बाद कई प्रोजेक्ट में काम करने वाले मजदूर अपने अपने इलाकों में पलायन कर गए। इसके बाद जैसे तैसे लॉकडाउन खुला तो आधे श्रमिक भी शहर नहीं लौट सके, लिहाजा जैसे तैसे निर्माण प्रोजेक्ट शुरू भी हुए तो उनकी निर्माण गतिविधि पूर्व की तुलना में आधी ही रही। दो साल से कोरोना का प्रकोप देख रहे लोगों को नए साल से कुछ उम्मीदें थी लेकिन इस साल फिर कोरोना की तीसरी लहर के कारण शहर लॉकडाउन की ओर बढ़ता नजर आ रहा हैं।
कई बड़े प्रोजेक्ट या तो बंद पड़े हैं या धीमी गति से चल रहे :
जानकारों के अनुसार शहर के आगरा बॉम्बे रिंग रोड़, बायपास और पश्चिमी क्षेत्र के जितने भी बड़े आवासीय प्रोजेक्ट थे, उन सभी के काम या तो बंद पड़े हैं या फिर धीमी गति से चल रहे हैं। रियल एस्टेट कारोबारियों और निर्माण में जुटे ठेकेदार इसे फिर से शुरू होने में फिर एक साल का समय लगना बता रहे हैं। यह भी तब संभव है जब निर्माण श्रमिकों और कुशल कारीगरों की उपलब्धता निर्माण गतिविधियों के लिए सामान्य हो सके। इस बीच शहर के बिल्डर और संपत्ति व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों का मानना हैं कि कोरोना काल में शहर के रियल एस्टेट कारोबार को बहुत नुकसान हो चुका है।
अभी तक अधूरा है काम :
शहर के तालाब गहरीकरण प्रोजेक्ट के अलावा शहर की शासकीय इमारतों के जो ठेके शासन स्तर पर दिए गए थे, उनका भी काम अब तक अधूरा है। सूत्रों के अनुसार शासकीय ठेकों में समय सीमा निर्धारित होने के कारण कई कांट्रेक्टर और ठेकेदार ऐसे हैं, जो निर्धारित समय पर निर्माण प्रोजेक्ट पूरा नहीं कर पाए। लिहाजा कई निर्माण एजेंसियों ने सरकारी कामकाज से भी हाथ खींच लिए। इसकी वजह भी मजदूरों की कमी और सतत काम नहीं चल पाना सामने आया हैं।
महंगा मटेरियल भी है एक कारण :
कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण निर्माण गतिविधियां ठप होने के बावजूद रियल एस्टेट में उपयोग किए जाने वाला तरह-तरह का सामान काफी बढ़ गया है। सामान, परिवहन महंगा होने और पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने के कारण 30 से 40 गुना महंगाई हो चुकी है। रियल एस्टेट में उपयोग के लिए लोहा, सीमेंट, सरिया, रेत, गिट्टी और ईंट के अलावा इलेक्ट्रिक और प्लंबिंग की पूरी सामग्री लगभग दोगुनी दरों पर मिल रही हैं। यहीं स्थिति रियल एस्टेट सेक्टर में उपयोग होने वाले अन्य सामान की है। ऐसी स्थिति में आर्थिक भार निर्माण प्रोजेक्ट पर ही पड़ रहा है। इसके अलावा लेबर की दरें भी बढ़ जाने से छोटे से लेकर बड़े प्रोजेक्ट में भी काम पूरा कर पाना चुनौतीपूर्ण हो रहा है। इसके बावजूद यदि काम पूरा कराया भी जाए, तो भी प्रोजेक्ट को बेचकर या लीज पर देने की स्थिति में लागत की भरपाई हो सकेगी या नहीं इसको लेकर भी रियल एस्टेट कारोबारी आशंकित हैं। निर्माण गतिविधियां ठप होने की यह भी एक वजह मानी जा रही है। इस विषय पर क्रेडाई के सेके्रटरी संदीप श्रीवास्तव से दो बार संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने व्यस्तता के चलते कोई जवाब नहीं दिया।