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राजस्थान कांग्रेस में सब को खुश रखना मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं

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एस पी मित्तल, अजमेर

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जैसे तैसे पांच वर्ष तक अपनी सरकार चला तो ली, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में सभी को खुश रखना गहलोत के लिए आसान नहीं है। ताजा मामला प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का असंतोष है। गहलोत ने चुनाव जीतने के लिए एक निजी कंपनी से जो रणनीति बनाई उससे डोटासरा खुश नहीं है। डोटासरा का कहना है कि यदि किसी कंपनी की रणनीति से चुनाव जीता जाता हो तो ऐसी कंपनी खुद ही अपनी सरकार बना ले। चुनाव कार्यकर्ता की मेहनत से जीता जाता है। डोटासरा ने कहा कि मैं संगठन का मुखिया हूं, इसलिए मुझे यह जानने का हक है कि चुनाव में प्रचार की रणनीति कैसी होगी। इसीलिए विगत दिनों ही एक बैठक में मैंने डिजाइन बॉक्स्ड कंपनी के नरेश अरोड़ा से कुछ सवाल पूछे थे। डोटासरा का कहना है कि उन्होंने गहलोत सरकार की सबसे ज्यादा प्रशंसा की है और सरकार के हर कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। डोटासरा ने जिन बातों को सार्वजनिक किया है उनसे जाहिर होता है कि वे कुछ मामलों में मुख्यमंत्री के फैसलों से खुश नहीं है। हालांकि 29 सितंबर को स्वास्थ्य पूछने के बहाने सीएम गहलोत, डोटासरा के आवास पर भी गए, लेकिन इसके बाद भी डोटासरा ने अपना असंतोष जाहिर किया है। सब जानते हैं कि अगस्त 2020 में सचिन पायलट को बर्खास्त करवा कर गहलोत ने ही डोटासरा को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। तब अन्य कांग्रेसी नेताओं के मुकाबले डोटासरा बहुत जूनियर थे। लेकिन फिर भी गहलोत ने डोटासरा को प्राथमिकता दी। राजनीति में डोटासरा का कद बढ़ाने के लिए दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करवाई। प्रदेश भर में डोटासरा को हेलीकॉप्टर में भी घुमाया। लेकिन अब वही डोटासरा मुख्यमंत्री के कुछ फैसलों खास कर चुनाव की रणनीति से खुश नहीं है और प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते अपना अधिकार भी बता रहे हैं। इससे पहले कई मंत्री भी सीएम गहलोत को आंखें दिखा चुके हैं। असल में डोटासरा, मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, अशोक चांदना, शांति धारीवाल आदि को लगता है कि उन्हीं की वजह से गहलोत मुख्यमंत्री बने हुए हैं। ऐसे में सभी नेता और मंत्री अपना हक जमाते हैं। चुनाव के मौके पर अब गहलोत को सब नेताओं को खुश रखना आसान नहीं है। आखिर अकेले गहलोत कितने मोर्चे पर लड़े? इस बीच राहुल गांधी के नकारात्मक बयानों से भी गहलोत को मुकाबला करना पड़ता है। उम्मीदवारों के चयन के समय भी गहलोत को चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा? डोटासरा भी चाहेंगे कि उनके समर्थकों को उम्मीदवार बनाया जाए।

अब माकन की भी चुनौती होगी:

एक समय था, जब कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर भी गहलोत की चलती थी। लेकिन अब कांग्रेस हाईकमान और गांधी परिवार में गहलोत का प्रभाव खत्म हो गया है। इसका ताजा उदाहरण अजय माकन का कांग्रेस का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनना है। किसी भी पार्टी में कोषाध्यक्ष का पद बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि कांग्रेस हाईकमान में गहलोत का प्रभाव होता तो अजय माकन राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नहीं बनते। सब जानते हैं कि अशोक गहलोत, अजय माकन पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं। गहलोत का आरोप रहा कि हाईकमान को गुमराह कर माकन ने 26 सितंबर 2022 को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक की घोषणा करवाई थी। हालांकि तब गहलोत ने भी विधायकों की समानांतर बैठक कर खुली बगावत कर दी थी। इसके बाद अजय माकन को राजस्थान के प्रभारी के पद से हटना पड़ा, लेकिन अजय माकन और अशोक गहलोत में टकराव बना रहा। अब जब अजय माकन कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर और ताकतवर हो गए हैं, तब गहलोत के सामने विरोध की नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं।

शिष्टाचार संवाद भी नहीं:

2 अक्टूबर को गांधी जयंती पर जयपुर में कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में एक समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और अधिकांश मंत्री शामिल हुए। सभी ने गांधी जी की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि के समय सीएम गहलोत और डिप्टी सीएम पायलट का आमना सामना भी हुआ। लेकिन दोनों के बीच शिष्टाचार संवाद भी नहीं हुआ। गहलोत ने पायलट की तरफ देखा तक नहीं। पायलट ने गहलोत के बाद ही प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की। पुष्पांजलि के बाद हुए समारोह में सीएम गहलोत मुश्किल से पांच मिनट बैठे और फिर अचानक उठ कर चले गए। जाने से पहले गहलोत ने प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा के कान में कुछ कहा। जब गहलोत रवाना हो गए तो पास में बैठे पायलट ने डोटासरा से यह जानना चाहा कि मुख्यमंत्री ने क्या कहा। डोटासरा का जवाब सुनकर पायलट और रंधावा हंसे। पायलट ने कुछ कहा तो रंधावा ने पायलट का हाथ पकड़ लिया। इस दृश्य से प्रतीत हो रहा था कि गहलोत के अचानक चले जाने से वरिष्ठ नेता खुश नहीं थे। आमतौर पर गहलोत ऐसे अवसरों पर संबोधन भी देते हैं। बाहर निकलकर मीडिया  से संवाद भी करते हैं, लेकिन 2 अक्टूबर को गहलोत ने न तो संबोधन दिया और न ही मीडिया से कोई बात की। 

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