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जतारा में जिनागम राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न

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जतारा।  गणाचार्य विरागसागर के शिष्य श्रमणाचार्य विमर्श सागर मुनिराज के सान्निध्य जतारा नगर में आत्मोदया प्राकृत टीका पर त्रिदिवसीय जिनागम राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी सम्पन्न हुई।

टीकमगढ़ जिला के जतारा नगर में चातुर्मास कर रहे श्रमणचार्य विमर्श सागर मुनिराज ने आचार्य अमितगति द्वारा रचित योगसार प्राभृत ग्रंथ पर 500 पृष्ठीय ‘अप्पोदया’ नामक टीका प्राकृत में लिखी है। इस टीका के प्रथम भाग पर जिनागम राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
अशोक जैन पत्रकार जतारा ने डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि संगोष्ठी अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्रिपरिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन के संयोजकत्व में दिगम्बर जैन मंदिर जतारा जिला टीकमगढ़ में 6-7-8 अक्टूबर को सम्पन्न हुई। संगोष्ठी में जैन दर्शन के मूर्धन्य विद्वत् गौरव डॉ. शीतलचंद जैन, डॉ. श्रेयांस सिंघई, डॉ. अल्पना जैन, प्रतिष्ठाचार्य बा.ब्रह्मचारी जय निशांत, प्रतिष्ठाचार्य विनोद कुमार जैन, राजेन्द्र जैन ‘महावीर’, डॉ. सुशील जैन, प. उदयचंद जैन, पं. धन्यकुमार जैन पं. शैलेन्द्र जैन, कु. विदुषी जैन, पं ब्रजेश जैन आदि व संघस्थ साधु वृन्द ने सम्मिलित होकर ‘आत्मोदया’ टीका में वर्णित विषयों का विवेचन, विश्लेषण प्रस्तुत कर आचार्य श्री विमर्श सागर जी से उनकी शंकाओं का आगमोचित समाधान प्राप्त किया।

जिनागम में पंथवाद की कोई व्यवस्था नहीं- श्रमणाचार्य विमर्श सागर

सर्वाेदयी संत, प्रज्ञामनीषी, राष्ट्र गौरव, सोम्यमूर्ति सहित अनेक उपाधियों से विभूषित श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी महाराज ने कहा कि जिनागम की श्रमण संस्कृति वस्तु स्वरूप को मानने वाली संस्कृति है, जो किसी पंथ पर नहीं चलती है। पंथवाद को मानने से, संत-पंथवाद, जातिवाद को बढ़ावा देने से श्रमण संस्कृति का बहुत नुकसान हुआ है, हमें देव-शास्त्र-गुरु के प्रति श्रद्धा रखते हुए सबको समीचीन श्रद्धाभाव से देखना चाहिये। सच्चा संत, श्रेष्ठ श्रावक संत-पंथ-ग्रंथ में भेद नहीं रखता और आत्म कल्याण की ओर प्रवृत्ति रखता है।
उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री विराग सागर जी महाराज के परम शिष्य आचार्य श्री विमर्श सागर जी ने ‘जीवन है पानी की बूंद’ जैसे महाकाव्य की रचना कर प्रसिद्धि प्राप्त की हैं। आपने अनेकों काव्य प्रवचन साहित्य, गजल संग्रह, हाइकू काव्य, प्राकृत साहित्य विधान आदि अनेकों साहित्य का सृजनकर जैन साहित्य की अभिवृद्धि में अभूतपूर्व योगदान दिया हैं। अपने जीवन के पचास वर्ष पूर्ण कर पच्चीस वर्ष दिगम्बरत्व के पूर्ण कर अपना चातुर्मास गृहस्थावस्था की जन्मभूमि जतारा में हो रहा हैं। दिगम्बर जैन समाज जतारा द्वारा स्वर्णिम विमर्श उत्सव एवं रजत संयमोत्सव विभिन्न आयोजनों के साथ मनाया जा रहा है। स्थानीय जतारा जैन समाज के उपाध्यक्ष एवं संचालक अशोक जैन द्वारा सभी विद्वानों का सम्मान कराया गया। संगोष्ठी संयोजक डॉ श्रेयांस कुमार जैन ने सभी का आभार व्यक्त किया। अखिल भारतीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉ श्रेयांस कुमार जैन ने बताया कि जतारा नगरी में पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी व माताजी चिरौंजा बाई को लंबे समय तक रहने का सौभाग्य प्राप्त है।
संगोष्ठी में जैन समाज अध्यक्ष महेंद्र जैन, हरिश्चंद्र जैन, प्रकाश रोशन, पवन मोदी, राजेश माते, अरविंद चौधरी, मुकेश जैन सहित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे ।

डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
22/, रामगंज, जिंसी, इन्दौर
9826091247

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