पटना : बीजेपी संयुक्त मोर्चा राष्ट्रीय कार्यकरिणी की बैठक पटना में है। बीजेपी के बड़े नेता शामिल हो रहे हैं। जेपी नड्डा और अमित शाह 700 से ज्यादा नेताओं के साथ मंथन करेंगे। इसके जरिए बीजेपी अपने मिशन 2024 और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव की रणनीति पर विशेष फोकस करेगी। एक तरह से बिहार बीजेपी का शक्ति प्रदर्शन भी है। पहली बार राज्य में पार्टी के सबसे ज्यादा विधायक हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से ज्यादा विधायक बीजेपी के हैं। मगर सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी में संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी क्या मतलब होता है? आखिर टॉप लीडरशिप के लिए वो इतना अहम क्यों है?
बीजेपी संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी का मतलब
भारतीय जनता पार्टी के संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी समझने से पहले पार्टी के स्ट्रक्चर को समझना होगा। आखिर पार्टी काम कैसे करती है? चुनाव जीतने की रणनीति कैसे बनती है? समाज के अलग-अलग वर्गों तक उसे कैसे पहुंचाया जाता है? वो कौन लोग हैं जो इसके लिए दिन-रात मिशन में जुटे रहते हैं? आखिर उनको निर्देश और फैसले कहां से मिलता है? भारतीय जनता पार्टी में संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी इतनी पावरफुल क्यों है? पटना की मीटिंग को संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी की बैठक क्यों कहा जा रहा है? दरअसल, बीजेपी नेतृत्व को सरकार और पार्टी के फैसले को अपने मोर्चे को बताना होता है, जो निचले स्तर पर गांव-गांव तक उसे ले जाते हैं। चूंकि इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में इकलौता सच्चाई जीत है तो वोटरों तक पार्टी और सरकार के फैसलों को पहुंचाना जरूरी हो जाता है। ऐसे में संगठन की ओर से ये काम भारतीय जनता पार्टी के सात मोर्चे करते हैं। इन मोर्चों की पकड़ गांव-गांव तक हर तबके तक होती है। ये अपनी बात कम खर्च और कम संसाधन में वोटरों तक पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। लिहाजा अगर मिशन 2024 और आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों को और बेहतर करना है तो मोर्चों को अपनी बात बतानी, लीडरशिप के लिए जरूरी हो जाता है।
बीजेपी के सात मोर्चे, जिन्हें संयुक्त कार्यकारिणी कहा गया
भारतीय जनता पार्टी में वैसे तो फैसले लेने के कई तरीके हैं। मगर फैसले को लोगों तक या यूं कहें कि अपने कैडर तक पहुंचाने का एक ही तरीका है और वो है मोर्चा। बाद में यही कैडर सरकार और पार्टी की नीति/फैसले को आमलोगों तक पहुंचाते हैं। जो आगे चलकर वोट में तब्दील हो जाता है। पूरी रणनीति को सात मोर्चों को जरिए अंजाम दिया जाता है। इनमें :-
1. किसान मोर्चा : ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश की करीब 65 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और ज्यादातर किसान हैं। चुनावी राजनीति में इसका महत्व ज्यादा है। लिहाजा इस मोर्चे को पार्टी में खासी अहमियत हासिल है। किसानों से जुड़े फैसलों और नीतियों को आमलोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी का होता है। वर्तमान में इसके अध्यक्ष राजकुमार चाहर हैं।
2. महिला मोर्चा : कहा जाता है कि आधी आबादी के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में इनका महत्व और ज्यादा है। चूंकि भारत में ज्यादातर महिलाएं घरेलू कामकाजी होती हैं तो घर-परिवार की चिंता भी इन्हें ज्यादा होती है। सरकार के फैसलों पर काफी बारीक नजर इनकी होती है। लिहाजा इन्हें रिझाने की कोशिश हर पार्टी करती है। इस मोर्चे की जिम्मेदारी फिलहाल वनाथी श्रीनिवासन के पास है।
3. युवा मोर्चा : भारत में नौजवानों की संख्या अच्छी-खासी है। घर के फैसलों में उनकी दखल होती है। वो ऐक्टिव भी रहते हैं। वोट देने में भी उनकी भागीदारी ठीक-ठाक होती है। सरकार और पार्टियों की कोशिश होती है कि उनके फैसलों में नौजवानों को शामिल किया जाए। उनकी नाराजगी कोई भी पार्टी झेलना नहीं चाहती है तो युवाओं से जुड़ी नीतियों को पहुंचाने की जिम्मेदारी, इस मोर्चे के जरिए आजकल तेजस्वी सूर्या संभाल रहे हैं।
4. अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) मोर्चा : भारत में अलग-अलग जातियों और समाज के लोग रहते हैं। लोकतंत्र में सरकार बनाने के लिए सभी का प्रतिनिधित्व जरूरी होता है। पिछड़ी जातियों की आबादी देश में ठीकठाक है। वोट की लिहाज से इनकी अहमियत बढ़ जाती है। चूंकि बात जब संख्याबल की होगी तो इस मोर्चे पर बीजेपी की ओर से जिम्मेदारियां ज्यादा बढ़ जाती है। फिलहाल इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष के. लक्ष्मण हैं।
5. अनुसूचित जाति (SC) मोर्चा : देश में समाज के निचले पायदान पर रहनेवालों की हितों की बातें राजनेता अक्सर करते रहते हैं। जनसंख्या और वोट के लिए लिहाजा से लोकतंत्र में इनका महत्व ज्यादा होता है। लिहाजा इनसे जुड़े फैसलों को अनुसूचित जातियों तक पहुंचाने का काम बीजेपी का अनुसूचित जाति मोर्चा करता है। इसके अध्यक्ष लाल सिंह आर्य हैं।
6. अनुसूचित जनजाति (ST) मोर्चा : समाज के हर तबके का ख्याल रखना सरकार और सत्ता की सबसे अहम जिम्मेदारी होती है। उनको अधिकारों के प्रति जागरूक करना और अधिकार दिलाने में सरकार का रोल अहम होता है। इसके बदले वो चाहती है कि वो लोग उनकी पार्टी को वोट करें। पार्टी अपनी बात को अनुसूचित जातियों तक पहुंचाने के लिए एसटी मोर्चे की मदद लेती है और इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव हैं।
7. अल्पसंख्यक मोर्चा : हिन्दुस्तान में अलग-अलग जाति के साथ-साथ अलग-अलग धर्मों के लोग भी रहते हैं। चुनाव जीतने के लिए समाज के सभी वर्गों का साथ मिलना जरूरी होता है। अल्पसंख्यकों तक अपनी बात पहुंचाने और उनकी समस्याओं को जानने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने अल्पसंख्यक मोर्चा बना रखा है। वर्तमान में इसकी जिम्मेदारी जमाल सिद्दीकी संभाल रहे हैं।
कुछ इस तरह फैसले लोगों तक पहुंचाती है पार्टी
इन सभी मोर्चों का भी अपना स्ट्रक्चर है। अपनी कार्यकारिणी है। इनके पदाधिकारी है। राज्य, जिला और प्रखंड स्तर तक पर इसके पदाधिकारी हैं। जो सरकार और पार्टी के फैसलों को कैडरों तक पहुंचाते हैं। फिर उनके जरिए आम वोटरों तक बातों को पहुंचाई जाती है। अलग-अलग मोर्चे समाज के अलग-अलग तबकों तक पार्टी की बात को पहुंचाते हैं। कार्यक्रमों को सफल कराने में इन मोर्चों की अहम भूमिका होती है। इन्हीं सात मोर्चों की एक साथ होनेवाली बैठक को संयुक्त मोर्चा कार्यकारिणी मीटिंग का नाम दिया गया है।