अग्नि आलोक

फासीवाद के मुकाबले के लिए संयुक्त संघर्ष जरुरी

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इंदौर। देश में फासीवाद तेज़ी से पैर पसार रहा है। संवैधानिक संस्थाएं घुटने टेकने पर विवश कर दी गई हैं। लोगों के खान- पान, रहन- सहन पर पहरा बिठाया जा रहा है। कोरोना महामारी ने मौजूदा व्यवस्थाओं, नीतियों और शासकों को बेनक़ाब कर दिया है। मगर वर्तमान समय की चुनौतियां हमारे विमर्श से ग़ायब है। कोरोना महामारी और राज्य प्रेरित तकलीफें, सड़कों पर सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर मज़दूर, बिना इलाज, दवाई, ऑक्सीजन के मरते लोग, गंगा में बह रही लाशें आज चुनाव में मुद्दा नहीं है। रोजगार और मंहगाई चुनाव में मुद्दा नही है। चुनाव ऐसे मुद्दों पर हो रहे हैं जिनपर राजनीति नहीं होनी चाहिये। ऐसे कठिन समय में सभी आपसी मतभेद को भुलाकर फासीवाद के प्रतिरोध के लिये एक व्यापक संयुक्त मोर्चा बनाने की जरूरत है। ये विचार “वर्तमान राजनीति परिदृश्य और लोकतंत्र की चुनौतियां” विषय पर आयोजित परिचर्चा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी राज्य सचिव मंडल सदस्य सत्यम पांडे ने व्यक्त किए। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं गांधीवादी विचारक अनिल त्रिवेदी ने इस कठिन दौर में मुख्यधारा के प्रिंट एवं दृश्य मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए।


परिचर्चा का आयोजन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी जिला परिषद द्वारा भाकपा के पूर्व ज़िला सचिव, प्रलेस के पूर्व ज़िला अध्यक्ष, अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन के पूर्व राज्य कोषाध्यक्ष , बीएसएनएल के वरिष्ठ श्रमिक नेता एस के दुबे की पहली बरसी पर स्मृति प्रसंग के रूप में किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता इंटक के राज्य अध्यक्ष श्याम सुंदर यादव एवं प्रलेस के राज्य सचिव शैलेंद्र शैली ने की।

शहर काजी इशरत अली, सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रामबाबू अग्रवाल , आम आदमी पार्टी के ज़िला अध्यक्ष डा. पीयूष जोशी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कैलाश लिम्बोदिया, शांति एवं एकजुटता संगठन के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी, भाकपा के ज़िला सचिव रुद्र पाल यादव , मनोहर लिम्बोदिया , माकपा के कैलाश लिम्बोदिया, संयुक्त किसान मोर्चा के रामस्वरूप मंत्री, एचएमएस के हरीओम् सूर्यवंशी सहित विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक, एवं श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधि नेताओं ने सार्वजनिक जीवन में श्री दुबे के योगदान को याद किया।


इस अवसर पर कामरेड एस के दुबे के लेखों, विचारों एवं उनके विषय मे उनके साथियों, परिजनों और मित्रों के विचारों को समेटे अशोक दुबे और अरविंद पोरवाल द्वारा संपादित पुस्तक “कॉमरेड होने के मायने” का विमोचन भी अतिथियों द्वारा किया गया।
संचालन कार्यक्रम संयोजक विवेक मेहता ने किया आभार माना दुबे के सुपुत्र विकास ने।

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