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*किसान सभा राज्य सम्मेलन संपन्न जवाहर सिंह कंवर अध्यक्ष, कपिल पैकरा सचिव निर्वाचित*

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सूरजपुर। छत्तीसगढ़ किसान सभा का 5वां राज्य सम्मेलन कल देर रात नई राज्य समिति के निर्वाचन के साथ संपन्न हो गया। 3 रिक्तियों के साथ 22 सदस्यीय राज्य समिति के जवाहर सिंह कंवर अध्यक्ष और कपिल पैकरा सचिव चुने गए। अन्य पदाधिकारी इस प्रकार हैं — उपाध्यक्ष : संजय पराते, ऋषि गुप्ता ; वित्त सचिव : वकील भारती ; संयुक्त सचिव : प्रशांत झा, बलबीर नागेश ; कार्यकारिणी सदस्य : दीपक साहू, सुमेंद्र सिंह कंवर, दामोदर श्याम (कोरबा), सी पी शुक्ला, दिलसाय नागेश, रामधनी सिंह (सरगुजा), माधो सिंह, वेदनाथ राजवाड़े, बसंतीदेवी विश्वकर्मा (सूरजपुर), बिफन नागेश (बलरामपुर), देवान सिंह मार्को (मरवाही), चंद्रशेखर सिंह (महासमुंद) ; तथा आमंत्रित सदस्य : वनमाली प्रधान (रायगढ़), बाल सिंह व सुरेंद्रलाल सिंह (आदिवासी एकता महासभा)। किसान सभा राज्य समिति में निर्वाचित तथा आमंत्रित 22 सदस्यों में से अध्यक्ष और सचिव सहित 14 सदस्य आदिवासी हैं, जो आदिवासी क्षेत्रों में किसान सभा के संगठन तथा आंदोलन के फैलाव का प्रतीक है। युवाओं के जोश और वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का मिश्रण भी राज्य समिति के गठन में झलकता है।

सम्मेलन की अध्यक्षता ऋषि गुप्ता, जवाहर सिंह कंवर, माधो सिंह तथा बसंती देवी विश्वकर्मा के अध्यक्षमंडल ने की। किसान सभा के निवर्तमान संयोजक संजय पराते ने सम्मेलन के समक्ष राजनैतिक-सांगठनिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने देश-दुनिया की राजनैतिक परिस्थितियों का जिक्र करते हुए मोदी सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संवैधानिक मूल्यों को कुचलने की उसकी मुहिम तथा उसके सांप्रदायिक-फासीवादी मंसूबों का विस्तार से जिक्र करते हुए आगामी लोकसभा चुनावों में उसे पराजित करने की जरूरत पर बल दिया। रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में हो रही किसान आत्महत्याओं के कारणों का विश्लेषण करते हुए प्रदेश में व्याप्त कृषि संकट को भी उन्होंने रेखांकित किया तथा इसके लिए किसान समुदाय की व्यापक लामबंदी पर जोर दिया। रिपोर्ट में मनरेगा मजदूरों, विस्थापन पीड़ितों, वनोपज संग्राहकों, दूध व सब्जी उत्पादकों तथा गन्ना किसानों को विशेष रूप से संगठित करने, ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं पर आंदोलन खड़ा करने पर जोर दिया गया है, ताकि “हर गांव में किसान सभा और किसान सभा में हर किसान” के नारे पर अमल की दिशा में बढ़ते हुए संगठन को मजबूत किया जा सके। उन्होंने संगठन और आंदोलन के विस्तार के लिए आगामी दिनों में उठाए जाने वाले कदमों की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। सम्मेलन में पूरे राज्य से निर्वाचित 200 प्रतिनिधियों ने चर्चा के बाद रिपोर्ट को सर्वसम्मति से पारित किया।

सम्मेलन के सांगठनिक सत्र को किसान सभा के राष्ट्रीय महासचिव विजू कृष्णन तथा संयुक्त सचिव बादल सरोज ने भी संबोधित किया तथा किसान सभा नेताओं का मार्गदर्शन किया। दोनों वक्ताओं ने संयुक्त किसान मोर्चा के गठन और आंदोलन में किसान सभा की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया और छत्तीसगढ़ में भी साझा मांगों पर किसानों, आदिवासियों और दलितों के लिए काम कर रहे सभी छोटे-बड़े संगठनों को एकजुट करके व्यापक और संयुक्त किसान आंदोलन विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने और उसे कॉर्पोरेटों के हवाले करने के लिए राज्य की भाजपा सरकार जिन नीतियों को लागू कर रही है, उसका मुकाबला वैकल्पिक नीतियों के आधार पर संयुक्त आंदोलनों के जरिए ही किया जा सकता है। 

सम्मेलन में 14 मार्च को दिल्ली में होने वाली किसान-मजदूर महापंचायत के लिए छत्तीसगढ़ से भी किसानों को लामबंद करने का निर्णय लिया गया और हसदेव जंगलों के विनाश के खिलाफ ; बस्तर में आदिवासियों पर हो रहे राज्य प्रायोजित हमले के खिलाफ ; मनरेगा, पेसा और वनाधिकार कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने ; भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों को रोजगार और पुनर्वास देने ; मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रूपये रोजी देने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रस्ताव भी पारित किये गये।

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