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ताजा समाचार -पीएम मोदी का अयोध्या में 30 को होगा रोड शो,एसबीआई और यूनियन बैंक देंगे अधिक ब्याज,

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मुख्य सचिवों का होने जा रहा तीसरा राष्ट्रीय सम्मेलन, पीएम मोदी करेंगे अध्यक्षता

आधिकारिक बयान के मुताबिक बुधवार को शुरू हुए सम्मेलन  में विकास के साझा एजेंडे के कार्यान्वयन पर जोर दिया जाएगा और राज्यों के साथ साझेदारी में एकजुट कार्रवाई का खाका तैयार किया जाएगा।देश में होने जा रहे तीसरे राष्ट्रीय सम्मेलन की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  मुख्य सचिवों की अध्यक्षता करेंगे। यह आयोजन राजधानी दिल्ली में 27 से 29 दिसंबर तक होना है, जिसका मुख्य विषय ‘जीवन की सुगमता’ यानी ‘ईज ऑफ लिविंग’ है।

आधिकारिक बयान के मुताबिक बुधवार को शुरू हुए सम्मेलन  में विकास के साझा एजेंडे के कार्यान्वयन पर जोर दिया जाएगा और राज्यों के साथ साझेदारी में एकजुट कार्रवाई का खाका तैयार किया जाएगा। यह इस तरह का तीसरा सम्मेलन है। पहला जून 2022 में धर्मशाला में और दूसरा जनवरी 2023 में दिल्ली में आयोजित किया गया था।

पीक ऑवर्स में बिजली आपूर्ति में पहले स्थान पर यूपी, दो दिन बाद शुरू हो जाएगी ओबरा यूनिट

उत्तर प्रदेश में उपभोक्ताओं को पीक आवर्स में बिजली देने के मामल में पहले स्थान पर है। अगले गर्मी सीजन में करीब 30 हजार मेगावाट आपूर्ति देने की तैयारी है। ओबरा की 660 मेगावाट की एक यूनिट का ट्रायल पूरा हो गया है। 

उत्तर प्रदेश में उपभोक्ताओं को पीक आवर्स में बिजली देने के मामल में पहले स्थान पर है। अगले गर्मी सीजन में करीब 30 हजार मेगावाट आपूर्ति देने की तैयारी है। ओबरा की 660 मेगावाट की एक यूनिट का ट्रायल पूरा हो गया है। यहां शुक्रवार के बाद पूरी क्षमता से उत्पादन होने लगेगा, जबकि 660 मेगावाट की जवाहरपुर की एक अन्य यूनिट जनवरी में शुरू हो जाएगी। ओबरा और जवाहरपुर की अन्य एक-एक यूनिट निर्माणाधीन हैं। इन्हें भी मई से पहले चलाने की तैयारी है।

अभी तक बिजली आपूर्ति के मामले में महाराष्ट्र नंबर एक पर रहा है। राज्यसभा में 19 दिसंबर को पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2023- 24 में अप्रैल से नवंबर 2023 तक पीक आवर्स में उत्तर प्रदेश ने यह रिकॉर्ड तोड़ दिया है। उत्तर प्रदेश में मांग 28704 मेगावाट थी, जिसके सापेक्ष 24 जुलाई को 28284 मेगावाट आपूर्ति की गई। इसी तरह महाराष्ट्र ने 31178 मेगावाट के सापेक्ष 27996 मेगावाट ही बिजली आपूर्ति कर पाया। अब नए सीजन के लिए पावर कारपोरेशन ने मांग का लक्ष्य 30 हजार से अधिक का बनाया है। इसके तहत प्रदेश में बिजली व्यवस्था की तैयारी शुरू हो गई है। 

ओबरा की 660 मेगावाट की नई यूनिट शुक्रवार के बाद पूरी क्षमता से उत्पादन देने लगेगी। इस इकाई को 765 केवी के अनपरा डी से उन्नाव पारेषण लाइन से जोड़कर परीक्षण किया गया है। अब इसे ग्रीड से जोड़ कर 72 घंटे पूरी क्षमता से चलाया जाएगा। इसी तरह जवाहरपुर की 660 मेगावाट की एक यूनिट का ट्रायल चल रहा है। इसे जनवरी के पहले सप्ताह में चलाने की तैयारी है। ओबरा और जवाहरपुर की 660-660 मेगावाट की एक-एक इकाई का निर्माण कार्य चल रहा है। पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष डा. आशीष कुमार गोयल ने बताया कि पीक सीजन के लिए 30 हजार से अधिक की मांग होने की उम्मीद को देखते हुए हर स्तर पर तैयारी की जा रही है। उत्पादन बढ़ाने के साथ ही बैकिंग से भी इंतजाम किया जाएगा। ताकि उपभोक्ताओं को किसी तरह की समस्या न हो।

यूपी बोर्ड में नए सत्र से सेमेस्टर प्रणाली होगी लागू, 9 से 12 तक कुल आठ सेमेस्टर में होगी पढ़ाई

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ जाता है। एक साथ उन्हें साल भर की पढ़ाई करनी होती है। छात्रों को पढ़ाई में सहूलियत मिले, इसके लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग अब खंड-खंड में बोर्ड की परीक्षा लेगा, ताकि परीक्षा के लिए छात्र बेहतर तैयारी कर सकें। 

माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से जुड़े छात्रों पर अब पढ़ाई का बोझ कम होगा। नए सत्र से नौवीं से 12वीं कक्षा तक कुल आठ सेमेस्टर में पढ़ाई और परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी। यही नहीं विज्ञान, कला व वाणिज्य वर्ग को समाप्त कर एक ही वर्ग का कोर्स चलाया जाएगा, जिनमें बोर्ड के सभी विषय शामिल होंगे। नई शिक्षा नीति के अनुसार उच्च शिक्षा की तरह अब माध्यमिक शिक्षा विभाग के पाठ्यक्रम में बदलाव की योजना बनाई जा रही है।

बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ जाता है। एक साथ उन्हें साल भर की पढ़ाई करनी होती है। छात्रों को पढ़ाई में सहूलियत मिले, इसके लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग अब खंड-खंड में बोर्ड की परीक्षा लेगा, ताकि परीक्षा के लिए छात्र बेहतर तैयारी कर सकें। शिक्षा विभाग के मुताबिक सेमेस्टर में 50 नंबर के सवाल प्रयोगात्मक होंगे। इनमें से 20 अंक के सवालों के जवाब ओएमआर शीट पर देने होंगे। वहीं 50 नंबर की लिखित परीक्षा होगी। लिखित परीक्षा में भी सवालों में विकल्प दिए जाएंगे। संबंधित विकल्प में से किन्हीं एक का जवाब परीक्षार्थी को देना होगा। 

यूक्रेन के लिए 250 मिलियन डॉलर के सैन्य सहायता पैकेज की घोषणा, अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने किया एलान

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह अंतिम सहायता पैकेज है, जो बाइडन प्रशासन बिना सांसदों की रजामंदी के यूक्रेन को दे सकता है। इसके बाद अब बिना कांग्रेस की इजाजत के अमेरिका यूक्रेन की मदद नहीं कर सकता।

अमेरिका के विदेश विभाग ने एक बार फिर यूक्रेन की मदद के लिए सैन्य सहायता पैकेज की घोषणा की है। विदेश विभाग ने 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता का एलान किया। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने सहायता पैकेज जारी करने की जानकारी दी। बिल्कंन ने कहा कि सहायता पैकेज यूक्रेन को 250 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक के हथियार और सैन्य उपकरण प्रदान करता है। इसमें गोला-बारूद सहित अन्य उपकरण शामिल हैं।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह अंतिम सहायता पैकेज है, जो बाइडन प्रशासन बिना सांसदों की रजामंदी के यूक्रेन को दे सकता है। इसके बाद अब बिना कांग्रेस की इजाजत के अमेरिका यूक्रेन की मदद नहीं कर सकता।

सहायता पैकेज के लिए इसी महीने अमेरिका गए थे जेलेंस्की
बता दें, इसी महीने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका के दौरे पर आए थे। उन्होंने व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने रूस के खिलाफ जारी युद्ध के बीच सहायता राशि की मांग की थी। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात की थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन के सहायता पैकेज का प्रस्ताव फिलहाल कांग्रेस में लंबित है। इसी पैकेज को पास करवाने के लिए जेलेंस्की ने बाइडन सहित विभिन्न अधिकारियों से मुलाकात की थी। जेलेंस्की ने कांग्रेस नेताओं ने अनुरोध किया है कि वे जल्द फंडिंग की अनुमति दे दें। 

बाइडन ने रूस पर भी साधा पर निशाना
जेलेंस्की के साथ बैठक के दौरान बाइडन ने कहा था कि कांग्रेस को छुट्टियों पर जाने से पहले यूक्रेन को लंबित राशि देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा था कि हमने देखा है कि जब तानाशाह मौत और विनाश की कीमत नहीं चुकाते तो क्या होते हैं। उन्हें बढ़ावा मिलता है और वह बढ़ते रहते हैं। 

रूस की आक्रमकता में आई कमी
एक मी़डिया रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने जब युद्ध शुरू किया था तो उसके पास 3,60,000 सैनिक थे लेकिन युद्ध के मैदान में देश ने अपने 3,15,000 जवानों को खो दिया। मॉस्को के अब तक 3500 में से 2,200 टैंक तबाह हो चुके हैं। इनके अलावा, 13,600 पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों और बख्तरबंद कर्मियों के वाहक में से 13,600 भी नष्ट हो गए है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि नवंबर के अंत तक रूस जमीनी बलों के हथियारों के अपने भंडार का एक चौथाई से अधिक खो चुका है। इतने बड़े नुकसान से कहीं न कहीं रूस की आक्रमता में कमी आई है, लेकिन फिर भी मॉस्को हार मानने को तैयार नहीं है। 

एसबीआई और यूनियन बैंक देंगे अधिक ब्याज, 27 दिसंबर से लागू हो गई हैं दोनों बैंकों की बढ़ीं दरें

एसबीआई ने बताया, सात दिन से लेकर 45 दिन की अवधि के एफडी पर 0.50 फीसदी ज्यादा यानी 3.50 फीसदी ब्याज मिलेगा। 46 से 179 दिन वाले एफडी पर 0.25% ज्यादा ब्याज मिलेगा, जो 4.75 फीसदी होगा।

एसबीआई और यूनियन बैंक ने दो करोड़ रुपये से कम के फिक्स्ड डिपॉजिट (एफडी) पर ब्याज दरों में 0.50 फीसदी तक इजाफा किया है। चुनिंदा अवधि के एफडी पर बढ़ाई गईं नई दरें 27 दिसंबर से लागू हो गई हैं। एसबीआई ने बताया, सात दिन से लेकर 45 दिन की अवधि के एफडी पर 0.50 फीसदी ज्यादा यानी 3.50 फीसदी ब्याज मिलेगा। 46 से 179 दिन वाले एफडी पर 0.25% ज्यादा ब्याज मिलेगा, जो 4.75 फीसदी होगा। दो से तीन साल की अवधि के एफडी पर सबसे ज्यादा सात फीसदी ब्याज मिलेगा। 

वरिष्ठ नागरिकों को अधिक रिटर्न
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने बताया कि उसने एफडी पर 0.25 फीसदी तक ब्याज बढ़ाया है। बैंक के मुताबिक, सात दिन से 14 दिन की अवधि के जमा पर अब तीन फीसदी ब्याज मिलेगा। वहीं, 121 दिन से लेकर 180 दिन के जमा पर 4.4 फीसदी और एक साल के जमा पर 6.30 फीसदी का ब्याज मिलेगा। बैंक के ग्राहकों को 399 दिन के जमा पर सात फीसदी जबकि पांच साल से 10 साल की अवधि वाले जमा पर 6.70 फीसदी ब्याज मिलेगा। एसबीआई और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने बताया कि दोनों वरिष्ठ नागरिकों को एफडी पर 0.50 फीसदी अधिक ब्याज देंगे।

सुपरवाइजर और ठेकेदार से डांट खाने के बाद घर पहुंची महिलकर्मी की मौत, कंपनी में तोड़फोड़

महिलाकर्मी की मौत की खबर सुनते ही बुधवार सुबह कर्मचारियों ने कंपनी में तोड़फोड़ कर दी। हंगामा कर रहे कर्मचारी मुआवजे की मांग कर रहे थे। 

 औद्योगिक सेक्टर साइट-5 स्थित गारमेंट्स कंपनी के सुपरवाइजर और ठेकेदार के डांटने के बाद घर पहुंची महिलकर्मी राजमती (42) की तबीयत बिगड़ गई। मंगलवार शाम उसे अस्पताल ले जाया गया जहां उसने दम तोड़ दिया। महिलाकर्मी की मौत की खबर सुनते ही बुधवार सुबह कर्मचारियों ने कंपनी में तोड़फोड़ कर दी। हंगामा कर रहे कर्मचारी मुआवजे की मांग कर रहे थे। 

पीएम मोदी के दौरे की तैयारियों को परखने के लिए सीएम आज जाएंगे अयोध्या, 30 को होगा रोड शो

:30 दिसंबर को प्रधानमंत्री लगभग 15 किलोमीटर तक रोड शो करेंगे। इस दौरान होने वाली बेहतर चिकित्सीय सेवाएं चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के चिकित्सकों का भी सहयोग मांगा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 30 दिसंबर को अयोध्या दौरे के मद्देनजर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 28-29 दिसंबर को अयोध्या जाएंगे। मुख्यमंत्री योगी गुरुवार को सुबह 11.30 बजे रामकथा पार्क में पहुंचेंगे। इससे पहले हनुमानगढ़ी में दर्शन-पूजन करेंगे, श्रीरामलला के दर्शन कर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के कार्यों का अवलोकन करेंगे। योगी प्रधानमंत्री के रोड शो, जनसभा सहित अन्य कार्यक्रमों की तैयारियों का जायजा भी लेंगे।

प्रधानमंत्री के रोड शो के दौरान निजी अस्पतालों को भी अलर्ट किया गया है। वहीं, ह्रदय रोग व न्यूरो संबंधी समस्या के लिए शहर के दो बड़े निजी अस्पताल की कैथ लैब व ओटी आरक्षित रहेगी। मंडल के अन्य जिलों से विशेषज्ञ चिकित्सक व उपकरणों से लैस आठ एएलएस (एडवांस लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस मांगी गई है। इन्हें विभिन्न स्थानों पर तैनात किया जाएगा।

30 दिसंबर को प्रधानमंत्री लगभग 15 किलोमीटर तक रोड शो करेंगे। इस दौरान होने वाली बेहतर चिकित्सीय सेवाएं चुनौतीपूर्ण हैं। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग ने निजी अस्पताल के चिकित्सकों का भी सहयोग मांगा है। रोड शो के मार्ग पर पड़ने वाले आधुनिक सुविधाओं से युक्त निजी अस्पतालों को अलर्ट किया गया है। यहां उपकरणों को दुरुस्त रखने व विशेषज्ञ चिकित्सकों को उपलब्ध रहने के लिए कहा गया है। शहर के हर्षण ह्रदय संस्थान की कैथलैब व नियांवा स्थित राज राजेश्वरी अस्पताल की ओटी आरक्षित रखने को कहा गया है।

इसके अलावा अंबेडकर नगर, सुल्तानपुर, अमेठी व बाराबंकी से दो-दो एएलएस एंबुलेंस मांगी गई है। प्रत्येक एंबुलेंस में एक-एक फिजीशियन, आर्थो सर्जन, जनरल सर्जन, निश्चेतक व पैथोलॉजिस्ट के अलावा फार्मासिस्ट, स्टाफ नर्स, वार्ड ब्वॉय, चालक व ईएमटी तैनात रहेंगे। सीएमओ डॉ. संजय जैन ने बताया कि पीएम के दौरे को लेकर तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

पांच स्थानों पर होगी कोरोना जांच
पीएम के दौरे के समय कोरोना जांच के भी इंतजाम रहेंगे। इसके लिए एयरपोर्ट के मुख्य द्वार, अयोध्या धाम रेलवे स्टेशन व पुलिस लाइन में एक-एक व एयरपोर्ट के बगल सभा स्थल पर दो बूथ लगेंगे। प्रत्येक पर एक-एक लैब टेक्नीशियन व लैब सहायक को तैनात किया गया है। एंटीजन किट से संदिग्ध मरीजों की कोरोना जांच होगी। रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर आरटीपीसीआर जांच कराई जाएगी।

श्रीराम और हिंदुओं को लेकर नाराजगी कांग्रेस की पुरानी एलर्जी, पित्रोदा के बयान पर बोले प्रधान

प्रधान ने कहा, यह समझ से परे है कि कांग्रेस भारत की आत्मा, मानस और मनोदशा से पूरी तरह से अलग क्यों है। उन्होंने कहा, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नुकसान, निराशा और भय की भावना पैदा कर रही है।केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बुधवार को कांग्रेस की आलोचना करते हुए दावा किया कि राम मंदिर और हिंदुओं के प्रति नाराजगी कांग्रेस की पुरानी एलर्जी को दर्शाती है। प्रधान ने कहा, यह समझ से परे है कि कांग्रेस भारत की आत्मा, मानस और मनोदशा से पूरी तरह से अलग क्यों है। उन्होंने कहा, राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नुकसान, निराशा और भय की भावना पैदा कर रही है।

प्रधान का यह बयान सैम पित्रोदा के राम मंदिर पर उठाए गए सवाल के बाद आया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पित्रोदा ने हाल ही में कहा था, क्या राम मंदिर असली मुद्दा है या बेरोजगारी और महंगाई? प्रधान ने पोस्ट में लिखा, प्राण प्रतिष्ठा की तारीख नजदीक आने से जहां पूरे देश में खुशी है, वहीं कांग्रेस में निराशा और भय है। ब्यूरो

कांग्रेस हार के कारण नहीं, बल्कि बहाने ढूंढ रही 
इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा के ईवीएम को लेकर दिए गए बयान पर पलटवार करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा, हाल में हुए विधानसभा चुनावों में मिली पराजय के बाद कांग्रेस हार का कारण ढूंढने के बजाय बहाने तलाश रही है। जब वे एक राज्य में जीत गए तो क्या वहां अलग ईवीएम है। अब तो जनता भी उन पर हंसती है। ये वही लोग हैं जो दावा करते थे कि उन्होंने कंप्यूटर खरीदा है और आज वे तकनीक का विरोध कर रहे हैं।

  राजनीति के ‘दूषित’ माहौल में वास्तविक अर्थ खोज रहे हैं शब्द

स्वतंत्रता, लोकतंत्र, फासिज्म सहित कई ऐसे शब्द हैं, जिनके प्रयोग ने उनका आशय ही बदल दिया है। जैसे यूक्रेन इस शताब्दी की सबसे बड़ी दबंगई से जूझ रहा है, तब पुतिन और उनके समर्थक, जेलेंस्की के पराक्रम को फासिज्म बताते हैं। इससे कोई मतलब नहीं कि इस संदर्भ में पुतिन के लिए फासिज्म शब्द ज्यादा उपयुक्त है।

आज के समय में, जब अपने राजनीतिक विश्वास के समर्थन में बातें कही जाती हैं, और जब सुनियोजित साजिश के तहत बातें उघाड़ी और छिपाई जाती हैं, तब ऑरवेल के सुनहरे दिनों में लौटना सुखद होगा, जिनका गद्य आज भी लेखन की कसौटी है। अपने एक बहुपठित लेख में, ऑरवेल ने बताया था कि राजनीति किस तरह शब्दों को दूषित करती है, वह लिखते हैं, ‘फासिज्म का अर्थ घटते-घटते अब सिर्फ एक ऐसा शब्द रह गया है, जिसका आशय है  अवांछित । लोकतंत्र, समाजवाद, स्वतंत्रता, देशभक्ति, आदि ऐसे शब्द हैं, जिनके कई-कई अर्थ है, लेकिन इन शब्दों को एक दूसरे की जगह पर नहीं रखा जा सकता।

अब लोकतंत्र शब्द को ही ले लीजिए-सिर्फ यही नहीं कि इसकी कोई सर्वस्वीकृत परिभाषा नहीं है, बल्कि इसकी कोई एक परिभाषा तय करते ही चारों तरफ से इसका विरोध शुरू हो जाएगा। हालांकि तमाम लोग यह मानते हैं कि किसी देश को लोकतांत्रिक बताना वस्तुत: उसकी प्रशंसा करना है : इसका नतीजा यह है कि कोई देश चाहे लोकतांत्रिक हो या नहीं, उसके समर्थक उसे लोकतंत्र ही बताते हैं। उन्हें इसका डर भी सताता है कि अगर लोकतंत्र का कोई एक अर्थ तय कर दिया गया, तब वह अपने देश के लिए लोकतंत्र शब्द का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। ऐसे शब्दों का इस्तेमाल जान-बूझकर बेईमानी के इरादे से किया जाता है।’

मैंने उनके लेख, पॉलिटिक्स ऐंड इंग्लिश लैंग्वेज से यह लंबा पैराग्राफ उद्धृत किया, क्योंकि उन्होंने फासिज्म के पतन और उदारवादी, लोकतांत्रिक विश्व व्यवस्था के उदय के दौरान वर्ष 1946 में जो कहा था, वह राजनीतिक वितंडावाद के मौजूदा दौर में भी गहरे तौर पर याद रखने लायक है। स्थिति यह है कि अपनी सच्चाई साबित करने के लिए आज शब्दों का नए सिरे से इस्तेमाल किया जाता है, और हमें ऐसा लगता है कि जो हम सुन रहे हैं, वह महज वास्तविकता नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व से जुड़ा विवाद है।

फासिज्म के उभार से संबंधित न सिर्फ बातें की जाती हैं, बल्कि यही हर दौर में विमर्श तय भी करता है। आज जब यूक्रेन इस शताब्दी की सबसे बड़ी दबंगई से जूझ रहा है, तब पुतिन और उनके समर्थक जेलेंस्की के पराक्रम को फासिज्म बताते हैं। इससे कोई मतलब नहीं कि इस संदर्भ में पुतिन के लिए फासिज्म शब्द ज्यादा उपयुक्त है, जिसका वास्तविक अर्थ है राष्ट्र की नियति पर ज्यादा जोर देना और इस प्रक्रिया में राष्ट्र को लगी चोट, उसका हुआ अपमान और राष्ट्र के गौरव की बात सुनियोजित ढंग से बार-बार उभारना। जब शब्द इतिहास की बाड़ेबंदी से बाहर निकलकर विभिन्न भूगोलों और विचारधाराओं में विचरण करते हैं, और फिर एक दूसरे समय की बाड़ेबंदी में रुककर गोला-बारूद की भूमिका निभाने लगते हैं, तब वे एक विवादास्पद वास्तविकता की बुनियाद बन जाते हैं। इन शब्दों से जो कहानियां बनती हैं, वे अच्छे और बुरे के बीच स्पष्ट विभाजक रेखा खींच राजनीति को नैतिक ड्रामा में बदल देती हैं।

ऑरवेल ने और जिन तीन शब्दों- लोकतंत्र, स्वतंत्रता और देशभक्ति-का जिक्र किया, उनका ही उदाहरण ले लीजिए। इन शब्दों की सुस्पष्ट परिभाषा के बिना पहचान और राष्ट्रीय नियति के बारे में आज कुछ कहा ही नहीं जा सकता। लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ वह नहीं है, जिस बारे में एक देश में रहने वाले लोग बताते हैं कि यह शासन की सर्वोत्तम प्रणाली है। लोकतंत्र के समर्थन में उनके बोलने के बावजूद इसकी सीमाओं और इसकी विशेषताओं के बारे में बहुत कुछ अनकहा रह जाता है। जब एक अधिनायकवादी अपने लोगों पर शासन करने को लोकतंत्र कहता है, तब वह झूठ बोलता है। विडंबना यह है कि अधिनायकवादी हमेशा ही यह झूठ बोलते हैं।

ऑरवेल द्वारा उद्धृत किए एक दूसरे शब्द स्वतंत्रता को आज भी लगातार लोकतंत्र के अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। जिन्होंने  स्वतंत्रता को संपूर्ण सत्य का दर्जा दिया हो, उस प्रगतिशील वर्ग की नैतिकता भी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और नस्लीय मुद्दों पर समझौते करती रही है। ताजातरीन सामाजिक तकनीकों ने अतीत की खुदाई के जरिये वर्तमान के पुनर्निर्माण को आसान कर दिया है; और समाज के प्रति व्यापक गुस्से की अनुमति देकर वे स्वतंत्रता को सशर्त बना देती हैं। जो तुम्हारे लिए स्वतंत्रता है, वह मेरे लिए गुलामी है।

दूसरे शब्द भी इतनी ही ताकत से विमर्श को गति देते और उन्हें विभाजित करते हैं। मसलन, देशभक्ति उदारता का लक्षण नहीं है। और यह सवाल पूछना, कि देशभक्ति शब्द ही उदारवादियों को सतर्क क्यों कर देता है, वस्तुत: उन लोकतांत्रिक देशों के प्रश्नाकुल दिमागों को चुनौती देने जैसा है, जो तेजी से दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर मुड़ रहे हैं। दक्षिणपंथी देशभक्ति को जितना जरूरी मानते हैं, उदारवादी उसका उतना ही विरोध करते हैं। प्रगतिशील राजनीति की सोच है कि राष्ट्रवाद की अत्यधिक खुराक वास्तविक आजादी को दबा देती है। क्या इसका मतलब यह है कि देशभक्ति को आधुनिकता-विरोधी मानकर खारिज करना राजनीति में तार्किकता को स्थान देना है? क्या इसका अर्थ यह है कि लोकप्रिय आवेग सांप्रदायिक होते हैं? यह ऐसा ही, जैसे प्रगतिशीलों की किताब में जो कुछ प्रतिबंधित है, दुनिया भर में फैले लोकतंत्रों में उसी को सबसे अधिक साझा किया जाता हो।

शब्द और उसके उतार-चढ़ाव ही राजनीति में विमर्श बनाने-बिगाड़ने का काम करते हैं। विमर्श रचने वालों की अगंभीरता के कारण उनके शब्द ऐतिहासिक संदर्भों और सांस्कृतिक अवरोधों को तोड़ते हैं, और चुनावी राजनीति को उस राष्ट्र का जनमत सर्वेक्षण बना डालते हैं। इसका नतीजा अच्छा भी होता है और बुरा भी। यह शब्द चुनने के आपके कौशल और उसका इच्छित अर्थ निकालने की आपकी क्षमता पर निर्भर करता है। आज वही विजयी है, जो आज के अनुरूप शब्द चुन सकता है।

बैंक पात्र आवेदकों को प्राथमिकता पर उपलब्ध करवाएं ऋण : संकल्प

जिला मुख्यालय केलांग में बुधवार को बैंकों की 51वीं त्रैमासिक बैठक हुई। 

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