एस पी मित्तल,अजमेर
एक साल पहले तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने वाले विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री निनित पटेल सहित एक दर्जन भाजपा नेताओं ने घोषणा की है कि अब वे विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे। माना जा रहा है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की समझाइश के बाद गुजरात के भाजपा नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया है। गुजरात में इसी माह चुनाव होने हैं। हालांकि यह निर्णय ऐन मौके पर लिया गया है, लेकिन फिर भी यह माना जा रहा है कि इससे भाजपा की स्थिति मजबूत होगी तथा नए और युवाओं को आगे आने का मौका मिलेगा। राजनीति में ऐसा बहुत कम होता है, जब कोई नेता स्वेच्छा से चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करे। गुजरात में भाजपा गत 27 वर्षों से सत्ता में है। सत्ता में बने रहने के लिए जो कुछ भी किया जाता है, वह किया जा रहा है। गुजरात के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्रतिष्ठा भी जुड़ी है। सवाल उठता है कि क्या राजस्थान के कुछ वरिष्ठ नेता भी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करेंगे? राजस्थान में ऐसे कई नेता है जो कई बार विधायक, मंत्री अथवा अन्य महत्वपूर्ण पदों पर हैं, लेकिन उनका विधायक और मंत्री बनने का लालच नहीं छूट रहा है। ऐसे नेता, कार्यकर्ता की वजह से चुनाव तो जीत जाते हैं, लेकिन कार्यकर्ता को विधायक मंत्री नहीं बनने देते। चार चार, पांच पांच बार विधायक रहने के बाद भी ऐसे नेता लाभ के पद से चिपके रहना चाहते हैं। ऐसे नेताओं की वजह से ही युवा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिल रहा है। राजस्थान में ऐसे अनेक विधायक हैं जो सिर्फ वसुंधरा राजे को ही मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। भाजपा का आला कमान माने या नहीं लेकिन राजस्थान में भाजपा दो भागों में बंटी हुई है। एक भाग वसुंधरा राजे का है और दूसरा संगठन का। हालांकि राजे ने कभी भी स्वयं को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया, लेकिन उनके समर्थक राजे को ही मुख्यमंत्री बनने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान के प्रभारी अरुण सिंह ने कहा भी है कि इस बार कमल के फूल और केंद्र सरकार की नीतियों पर ही चुनाव लड़ा जाएगा, लेकिन फिर भी भाजपा एकजुट नजर नहीं आ रही है। पिछले दिनों ही भाजपा नेताओं का एक शिष्टमंडल जब विधानसभा अध्यक्ष से मिला था तो उसमें वसुंधरा राजे शामिल नहीं थीं। कांग्रेस के 90 विधायकों के इस्तीफे से जुड़े इस मामले में यदि वसुंधरा राजे साथ होती तो विधानसभा अध्यक्ष पर और ज्यादा दबाव पड़ता। डॉ. सीपी जोशी इस्तीफे पर कब निर्णय लें, यह उनका विशेषाधिकार है। अलबत्ता गुजरात में भाजपा नेताओं ने जो पहल की है, उसका राजस्थान में इसलिए महत्व है कि यहां एक वर्ष बाद ही चुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि गुजरात चुनाव के परिणाम आते ही भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व का फोकस राजस्थान पर रहेगा। जो नेता राष्ट्रीय नेतृत्व का इशारा समझेगा, वह फायदे में रहेगा। गुजरात में जिन नेताओं ने चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की है, उन्होंने भी हाईकमान का इशारा ही समझा है। राजस्थान में वैसे भी इस बार भाजपा की बारी है। पिछले पांच बार प्रदेश की जनता एक बार भाजपा और एक बार कांग्रेस को सरकार बनाने का अवसर दे रही है। मौजूदा समय में अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार चल रही है। गंभीर बात यह है कि गहलोत सरकार के मंत्री खुद कह रहे हैं कि इस बार कांग्रेस की सरकार रिपीट नहीं होगी।