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जेलों की बदहाली पर फिर उठे कई सवाल,जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी

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भारतीय जेलों की बदहाली पर गृह मंत्रालय की संसदीय समिति की रिपोर्ट ने फिर दुखती रग पर हाथ रख दिया है। रिपोर्ट में चिंता जताई गई है कि देशभर की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी हैं। महिला कैदी असुरक्षा के माहौल में रहने को विवश हैं। उनके साथ बलात्कार होता है। उन्हें उन बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रखा जाता है, जो जेल नियमों के हिसाब से उन्हें मिलनी चाहिए। गर्भवती महिला कैदियों पर भी ध्यान नहीं दिया जाता, जबकि उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में कहा था कि जेल में प्रसव से पहले और प्रसव के बाद महिला कैदियों के साथ-साथ उनके बच्चों की देखभाल के लिए भी पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिए। यह पहला मौका नहीं है, जब जेल सुधार को लेकर किए जाने वाले दावों की असली तस्वीर सामने आई हो। पहले भी कई बार जेलों की बदहाली पर चिंता जताई जा चुकी है। समस्या जस की तस है।

जेलों के बद से बदतर होते हालात के पीछे शायद यह सोच काम कर रही है कि जहां समाज के अपराधी रहते हों, वहां माहौल में सुधार की क्या जरूरत है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जेलों का मकसद अपराधियों को सिर्फ सजा देना नहीं, उन्हें सुधार कर समाज की मुख्यधारा में शामिल करना भी है। अमानवीय हालात में रखकर उनमें सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, स्पेन, न्यूजीलैंड, स्कॉटलैंड, नॉर्वे जैसे देशों में जेलों की तस्वीर ही बदल दी गई है। इनमें से कुछ जेलों में कैदियों को फाइव स्टार होटल जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। भारत में अब भी ‘जेल में चक्की पीसने’ का मुहावरा चल रहा है। कैदियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंसकर रखा जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने 2018 में देशभर की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी होने पर चिंता जताते हुए सभी उच्च न्यायालयों को इस पर विचार करने के लिए कहा था। शीर्ष कोर्ट का कहना था कि जेलों में कैदियों को ठूंसकर रखना मानवाधिकार का उल्लंघन है।

जेलों के स्टाफ की भर्ती में भी राज्य सरकारें ज्यादा रुचि नहीं दिखा रही हैं। देश की 1,319 जेलों में 4,25,609 कैदियों की क्षमता के मुकाबले 5,54,034 कैदी हैं। विडम्बना यह है कि इनमें से 4,27,165 कैदी विचाराधीन हैं। यानी दोषी ठहराए जाने से पहले ही वे जेल में ‘सजा’ भुगत रहे हैं। जिन पर मामूली आरोप हैं और जो गरीबी के कारण जमानत नहीं ले पा रहे हैं, अगर अदालतों में उनके मामले प्राथमिकता से निपटाए जाएं तो समस्या हल हो सकती है। जेलों में मानव संसाधन को बेहतर बनाने के लिए नीति बनाना जरूरी हो गया है। जेलों में महिला कैदियों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और कैदियों के रहन-सहन का स्तर बेहतर होगा, तभी सही अर्थों में जेलों को सुधार केंद्रों में तब्दील किया जा सकेगा।

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