गोपाल राठी
पिपरिया के समीप खापरखेड़ा गाँव मे जन्मे और अपनी प्रारम्भिक पढ़ाई-लिखाई पिपरिया में करने वाले मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य पत्रकार, साहित्यकार, चिंतक स्व. मायाराम सुरजन का विगत 29 मार्च को जन्मदिन था. दैनिक देशबन्धु पत्र समूह के संस्थापक एवं संपादक श्री सुरजन को अपनी जन्म भूमि और परिजनो से गहरा लगाव था. 29 मार्च 1923 को खापरखेड़ा (पिपरिया) ग्राम में जन्मे श्री सुरजन ने 31 दिसंबर 1994 को भोपाल मे अंतिम सांस ली.
मायाराम सुरजन का जीवन दुर्धर्षपूर्ण, हमेशा चुनौतियों से जूझने में बीता. लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और अपने इन्हीं मूल्यों को पोषित करने की दृढ़ता के कारण बड़ी कीमतें चुकाईं. कई बार उन्हें आर्थिक तंगी और भावनात्मक स्तर पर भी गहरी चिंता का सामना भी करना पड़ा था, लेकिन इन सबके बावजूद अपने व्यक्तिगत अहसासों को उन्होंने कभी अपनी सृजनात्मक प्रतिबद्धता पर हावी होने नहीं दिया. वे ऐसे व्यक्ति के रूप में जिए, जिनमें किसी से दुश्मनी, कड़वाहट या बदला लेने की भावना नहीं थी.
पत्रकारिता जगत के मध्यप्रदेश राज्य के मार्गदर्शक के रूप में ख्यात श्री मायाराम सुरजन सही मायनों में स्वप्नदृष्टा और कर्मनिष्ठ तथा अपने बलबूते सिद्ध एक आदर्श पुरुष थे.
वे बहुपठित और जनप्रिय राजनैतिक टिप्पणीकार थे और अनेक कृतियों के लेखक भी. इन्ही जीवन घाटियो में, मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश के, अंतरंग, सबको सन्मति दे भगवान, धूप छांव के दिन आपकी प्रमुख प्रकाशित किताबे है. मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रगतिशील लेखक संघ सहित अनेकों संगठनो से आपका सक्रिय जुड़ाव जीवन पर्यंत बना रहा.
श्री मायाराम सुरजन जन्म शताब्दी वर्ष की शुरुआत उनके जन्म स्थान खापरखेड़ा में हुई. सुरजन परिवार के सभी कुटुम्बीजन और स्नेहीजन ग्राम के दाऊजी के मंदिर में एकत्रित हुए. शाम को पिपरिया के गीतांजलि सभागार में निर्गुण भजन का गायन हुआ. सारंग फगरे और साथियों की मनभावन प्रस्तुति ने सभी का मन मोह लिया.
मायाराम सुरजन फाउंडेशन के श्री राजेन्द्र चांडक ने बताया कि बाबूजी के जन्मशताब्दी वर्ष में मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में कई वैचारिक और सांस्कृतिक आयोजन प्रस्तावित है. इस वर्ष बाबूजी के साहित्य को पुनर्प्रकाशन की योजना है.
निर्गुण कबीर भजन संध्या से शुरू हुआ मायाराम जी सुरजन का शताब्दी वर्ष
आज आदरणीय बाबूजी का शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है. देश के सर्वाधिक सम्मानीय पत्रकारों में शुमार बाबूजी स्व. मायाराम जी सुरजन का जन्म 99 वर्ष पूर्व 29 मार्च 1923 को मध्यप्रदेश की पिपरिया तहसील के ग्राम खापरखेड़ा में बहुत ही सामान्य परिवार में हुआ था. मेघावी बाबूजी की प्राथमिक शिक्षा तो किसी तरह हो गई थी लेकिन माध्यमिक से लेकर स्नातक और लॉ की पढ़ाई विभिन्न ट्रस्टों से प्राप्त छात्रवृत्तियों के सहारे पिपरिया से सुदूर सेवाग्राम में संपन्न हो पाई थी. तब पिपरिया से सेवाग्राम तक का रेल किराया कुछ ‘आने’ ही लगा करता था, लेकिन उनका इंतजाम भी भारी पड़ता था.
सेवाग्राम कॉलेज से पढ़ाई खत्म होते ही बाबूजी को नागपुर के प्रमुख समाचार पत्र नवभारत के विज्ञापन विभाग में नौकरी मिल गई थी जहां उनकी प्रतिभा को जैसे पंख मिल गए थे. बाबूजी ने बहुत कम समय में ही अखबार प्रबंधन से लेकर संपादन तक हर डेस्क का काम सीख लिया था और इस तरह एक सम्पूर्ण पत्रकार ने उनके अंदर आकार लिया.
नागपुर से जल्दी ही उन्हें जबलपुर में नवभारत शुरू करने की महती जवाबदारी सौंपी गई. बाबूजी ने जगह तलाशने से लेकर नए अखबार की गुंजाइश देखने और प्रकाशन शुरू करने का पूरा दायित्व बखूबी निभाया.
जबलपुर में नवभारत जम ही पाया था कि उन्हें प्रदेश की नव निर्मित राजधानी भोपाल में वही सारे दायित्व निभाने भेजा गया. अब बाबूजी जबलपुर और भोपाल दो संस्करणों को एक साथ देख रहे थे. कुछ समय बाद भोपाल से ही राजधानी की जरूरतों को देखते हुए अंग्रेजी दैनिक एम पी क्रानिकल का प्रकाशन भी बाबूजी ने ही शुरू किया.
उस जमाने में बम्बई दिल्ली कलकत्ता मद्रास की विज्ञापन एजेंसियों से अंग्रेजी में वार्तालाप करना हो या पत्राचार, समाचार लेखन हो अथवा संपादकीय लिखना बाबूजी सिद्ध हस्त थे और समाचार पत्र की ऐसी कोई विधा नहीं थी जो उन्हें न आती हो. नवभारत को एक पत्र समूह बनाने का वास्तविक श्रेय दरअसल उन्हें ही जाता है हालांकि ऐसा कोई दावा उन्होंने कभी नहीं किया.
बाबूजी और नवभारत का यह साथ 1958 तक निर्बाध चलता रहा और फिर वहां से इस्तीफा देकर नई दुनिया इंदौर से टाइटल लीज पर लेकर बाबूजी ने अपना अखबार 17 अप्रैल 1959 को #नईदुनिया नाम से रायपुर से शुरू किया. इसके छः माह बाद ही जबलपुर से भी नईदुनिया एक उद्योगपति के साथ साझे में उन्होंने प्रारंभ किया. यद्यपि यह साझेदारी 4 वर्ष में ही काल कवलित हो गई और बाबूजी पर जबलपुर से फिर एक नए अखबार प्रकाशन का भार आ गया जिसे उन्होंने #जबलपुर_समाचार के रूप में पूरा किया. कालांतर में जबलपुर समाचार के साथ ही #सार_समाचार का प्रकाशन भी अप कंट्री प्रसार के लिए प्रारंभ किया. रायपुर में नईदुनिया नाम से 1971 तक प्रकाशन चलता रहा किंतु अपरिहार्य कारणों से उसका नाम #देशबन्धु करना पड़ा. जबलपुर के दोनों प्रकाशनों को भी आपस में मर्ज कर उनका नाम भी देशबन्धु कर दिया गया.
आज देशबन्धु के रायपुर जबलपुर के साथ साथ क्रमशः भोपाल, बिलासपुर, सतना, सागर और दिल्ली से संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं. सागर और दिल्ली संस्करण बाबूजी के निधन के बाद शुरू हुए पर समाचारों की विश्वसनीयता को लेकर जो परम्परा बाबूजी ने स्थापित की वह आज भी बदस्तूर जस की तस जारी है. तंगहाली में जैसे बाबूजी जन्मे थे लगभग ताजिंदगी वैसे ही रहे लेकिन स्वस्थ, स्वच्छ और निर्भीक पत्रकारिता के जो मानदंड उन्होंने स्थापित किए वे आज कई टेक्स्ट बुक्स में समाहित हैं. बाबूजी ने कई दशकों तक नियमित स्तंभ लिखे जो आज पुस्तकाकार उपलब्ध हैं. उन्होंने कई विश्व विद्यालयों के पत्रकारिता पाठ्यक्रम भी निर्धारित किए जिनसे मिले मानदेय और भत्तों से उन्होंने उन छात्रवृत्तियों की राशि लौटाई जो कभी उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्ति के लिए ली थीं.
देशबन्धु आज की आवारा पूंजी से प्रकाशित अखबारों से भले ही मुकाबला न कर पा रहा हो लेकिन बिना किसी समझौते के उनकी स्थापित पत्रकारीय नींव और लीक पर अविचलित चल रहा है.
बाबूजी आजीवन सर्वधर्म समभाव और सबको सन्मति दे भगवान की नीति पर चलते रहे लेकिन खापरखेड़ा के दाऊ जी के मंदिर से उन्हें विशेष अनुराग बचपन से ही था. उनके इसी आग्रह को दृष्टिगत रखते हुए उनकी जन्मशती के प्रारंभ में कल हम भाइयों ने मायाराम सुरजन फाउंडेशन के बैनर तले उनके जन्मस्थान खापरखेड़ा के लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने श्री दाऊ जी के मंदिर में अन्नकूट महोत्सव और फिर पिपरिया में कबीर की लिखी बंदिशों पर आधारित निर्गुण भक्ति संगीत संध्या का आयोजन किया जिसे गायक श्री सारंग फरके ने स्वर देकर श्रोताओं का मन मोह लिया. श्री सारंग फरके का सम्मान श्रीमती Maya Surjan ने किया जबकि उनके साथियों का सम्मान मुझ समेत अग्रज श्री दिनेश सुरजन और अनुज Deepak Surjan ने किया. कार्यक्रम संचालन अनुज Surjan Palash ने किया. कार्यक्रम में विस्तारित सुरजन परिवार के अलावा खापरखेड़ा और पिपरिया के गणमान्य जन उपस्थित थे लेकिन बड़े भैया स्व. श्री Lalit Surjan की कमी सभी ने काफी शिद्दत और नम आंखों से महसूस की.
पारिवारिक मित्र और निकट संबंधी श्री Gopal Rathi ने दोनों कार्यक्रमों को सफल बनाने अतुलनीय अविस्मरणीय सहयोग दिया. श्री #हरनारायण_भट्टर भैया के कुशल मार्गदर्शन में दोनों कार्यक्रम संपन्न हुए.
धन्यवाद ज्ञापन श्री #गिरिराज_चाचा ने किया.
जयंती दिवस पर पूज्य बाबूजी को शत शत प्रणाम और श्रद्धांजलि.