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बांध से हुई तबाही के विरोध में मेधा पाटकर का अनशन 7 वें दिन भी जारी, कई संगठनों ने किया समर्थन

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सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावितों द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर के नेतृत्व में शुरू किया गया। अनिश्चितकालीन अनशन 7 वें दिन भी जारी रहा। शहर से सटे धार जिले के चिखल्दा के खेड़ा में 15 जून से मेधा पाटकर सहित नर्मदा घाटी के लोग अनशन पर बैठे हैं। मेधा पाटकर डूब विस्थापितों को न्याय दिलाने को लेकर अनिश्चितकालीन उपवास पर है।

अनशन के पांचवें दिन उड़ीसा से पर्यावरणविद प्रफुल्ल समांतरा, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के समन्वयको में, पुणे महाराष्ट्र से सुनीति सु.र., उत्तरप्रदेश से अरूंधत्ति ध्रु और रिचा सिंग, भूतपूर्व विधायक एवं संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. सुनीलम अनशन स्थल पहुंच मेधा पाटकर को समर्थन दिया।

डॉ सुनीलम ने बातचीत करते हुए बताया कि कई राज्यों के साथी आज यहां पर पहुंचे हैं। मेधा पाटकर के स्वास्थ्य को लेकर चिंता है और इस बात का हम लोगों को बहुत दुख है और आक्रोश है, कि 39 साल होने के बावजूद भी अभी तक इस घाटी के अंदर 16 हजार ऐसे लोग हैं जिनका सम्पूर्ण पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ। हम यह चाहते हैं की मध्यप्रदेश में नए मुख्यमंत्री बने हैं। वो हस्तक्षेप करें हस्तक्षेप करके वो कमिश्नर और यहां के कलेक्टर को यहाँ भेजे और उन्हें यहां आना चाहिए ओर बातचीत करना चाहिए। उन्होंने बताया कि सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 122 मीटर पर ही रखना चाहिए। नर्मदा घाटी में सितंबर 2023 में बांध से निर्मित तबाही से बेघर हुए लोगों के संपूर्ण पुनर्वास को लेकर ये अनशन किया जा रहा है जिसका हम समर्थन करते है।

वहीं मेधा पाटकर ने कहा कि सरदार सरोवर से प्रभावित कई हजार परिवारों का आज तक संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है। सैकड़ों प्रभावितों को 2019 में जलभराव के बाद उनके घर न होने की वजह से अपने डूबे हुए घरों से निकालकर अस्थाई टीनशेड्स में रखा गया था, लेकिन आज तक उन परिवारों का निराकरण कर उन्हें पुनर्वास के लाभ नहीं दिए गए हैं। बीडब्ल्यूएल के बैकवाटर लेवल में हुई गड़बड़ी के चलते कई लोगों के साथ अन्याय हुआ है।

उन्होंने कहा कि बीडब्ल्यूएल में अवैध रूप से बदलाव किए जाने की वजह से ही पिछले साल सितंबर 2023 में हजारों मकान और हजारों एकड़ जमीन, जिन्हें डूब से अप्रभावित बताया गया था, वे सब जलमग्न हो गए और लोगों को बहुत नुकसान का सामना करना पड़ा है। उन लोगों को आज लगभग एक साल पूर्ण होने के बावजूद भी नुकसान की भरपाई नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि इन लोगों को पूर्व में सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित मानकर भू-अर्जन किया गया, लेकिन इन्हें पुनर्वास के लाभ से वंचित रखते हुए इनका पुनर्वास नहीं किया गया है। उन्होंने मांग की कि इन लोगों को डूब में मानते हुए इन्हें पुनर्वास के सभी लाभ दिए जाए। वहीं जब तक यह सभी पुनर्वास के कार्य पूर्ण नहीं होते, तब तक सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 122 मीटर पर ही रखा जाए।

मेधा पाटकर ने बताया कि कई डूब प्रभावितों का आज भी कानूनी पुनर्वास नहीं हुआ है। करीबन 39 साल से उनका अहिंसक जन आंदोलन चल रहा है, उसके बाद भी सरदार सरोवर जैसे महाकाय बांध से विस्थापन की बड़ी चुनौती सामने खड़ी है। सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक पहलुओं के साथ डूब प्रभावितों को कई तरह की पीड़ा भुगतना पड़ रही है। उन्होंने बिना पुनर्वास डूब को गैरकानूनी और अन्यायपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा पहाड़ी आदिवासियों के साथ ही निमाड़ी मैदानी किसान, मजदूर, मछुआरे, कुम्हार, केवट, पशुपालक, दुकानदार सबके हक के लिए अहिंसक सत्याग्रह की शुरुआत की गई थी, जो आज भी जारी है।

नबआं के अनुसार, करीबन 50 हजार परिवारों का तीनों राज्यों में पुनर्वास हो चुका है, लेकिन वहां कई तरह की समस्याएं हैं। जिन्हें भूमि आवंटित हुई है, उन्हें कई तरह के लाभों का भुगतान बाकी है। ऐसे तीनों राज्यों में आदिवासी, दलित और प्रकृति निर्भर तथा मेहनतकश परिवार पीड़ा भुगत रहे हैं। कई भूखे हैं तो कई बेघर हो गए हैं। कई ऑप्शनल भूमि का अधिकार, मकान के लिए भूखंड और अनुदान पाने से वंचित है। पुनर्वासस्थलों पर पानी, सड़क, नालियों जैसी सुविधाओं की त्रुटियां है, जो कि न्यायालयीन फैसलों का उल्लंघन है।

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