अग्नि आलोक

लोकतंत्र के चौथे खंबे मीडिया पर भी पूंजी पत्तियों का कब्जा, सत्ता के दलाल बन गए हैं मीडिया घराने

Share

मध्य प्रदेश के क्रांतिकारी पत्रकार स्वर्गीय कन्हैया लाल वेद्यजी की स्मृति में 39 वीं व्याख्यान माला का उज्जैन में हुआ आयोजन

राष्ट्रधर्म निर्वहन की विपरीत परिस्थितियों में भी श्री वेद्यजी ने कलम के साथ कोई समझौता ना कर अपना दायित्व बखूबी निभाया

                  जवाहर डोसी।उज्जैन। देश के तमाम मीडिया गानों पर आज कुछ पूंजी पतियों का कब्जा है जिसके चलते सच खबर भी छुपी जा रही है एक तरह से मीडिया घराने पूंजीपतियों सत्ता के दलाल बन गए हैं जिसके चलते सच खबर भी सामने नहीं आती है एनडीटीवी को अदानी द्वारा खरीदे जाने के बाद रवीश कुमार को उसे छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा और एनडीटीवी की विश्वसनीयता इतनी घट गई है कि 70% से अधिक उसके स्क्रबर काम हो गए हैं । दूसरी ओर रवीश कुमार की यूट्यूब चैनल के 5 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर है आज जरूरी है कि वर्तमान सत्ताधीशों द्वारा मीडिया पर जिस तरह से हमले हो रहे हैं और उन्हें खरीदने की अपनी बोली में बोलने के लिए मजबूर किया जा रहा है इसके खिलाफ हम सब एकजूट हो और सड़क पर संघर्ष करें। उपरोक्त विचार उज्जैन में आयोजित अपने जमाने के क्रांतिकारी पत्रकार कन्हैयालाल वैद्यजी की स्मृति में आयोजित व्याख्यान माला में मीडिया पर कॉर्पोरेट घरानों नों के कब्जे विषय पर बोलते हुए दैनिक अग्नि आलोक के संपादक और समाजवादी चिंतक रामस्वरूप मंत्री ने व्यक्त किये।

 आपने कहा कि कन्हैयालाल वैद्यजी बदलाव चाहने वाली पीढी के पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। गणेश शंकर विद्यार्थी,लोहियाजी के व्यक्तित्व की छाप उनके मन में थी।झाबुआ जिले के थांदला से उन्हें उनकी निष्पक्ष पत्रकारिता के कारण निकाला गया। आपने कहा कि मीडिया पर कॉर्पोरेट घरानों का कब्जा है और पत्रकार की त्कलम में लिखने की स्याही मालिक द्वारा दी जाती है। यदि पत्रकार द्वारा लिखी गई खबर मालिक के मन माफिक नहीं हुई तो पत्रकार को मालिक नौकरी से निकाल भी सकता है । आज का मिडिया विज्ञापनों पर अधिक आश्रित हैं।  लोकतंत्र के चार खंबे न्यायपालिका,कार्यपालिका,विधायिका, पत्रकारिता है,पत्रकारिता को गौण कर दिया गया है।सीआरपीसी में न अपील,न दलील,ना वकील।संसद में युवा कूदे क्योंकि उनकी कोई बात नहीं सुन रहा था। बेरोज़गारी के खिलाफ यह विरोध था इसे हमला बताया  गया।पूर्व में घोषित आपातकाल था अब अघोषित आपातकाल है। भगतसिंह,लोहिया, जयप्रकाश का देश है यह।वैद्यजी ने जैसी पत्रकारिता की उसकी आज बहुत जरूरत है। देश, पत्रकारिता और राजनीति की आज स्थिति बहुत खराब है।पत्रकार परिवर्तन की लड़ाई के लिए आगे आएं- यह कहना था रामस्वरूप मंत्री समाजवादी चिंतक का। 

वे मीडिया पर   कॉर्पोरेट घरानों का कब्जा-विषय पर बोल रहे थे। अवसर था कन्हैयालाल वैद्य स्मृति व्याख्यान माला  का जो प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,पूर्व सांसद,प्रखर पत्रकार कन्हैया लाल वेद्य की  49 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित की गई थी।

राजेन्द्र जैन सभागृह में आयोजित कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य अतिथि 98वर्षिय प्रेमनारायण नागर स्वतंत्रता सेनानी,वरिष्ठ पत्रकार,शिवपुरी; विशेष अतिथि मनोहर बैरागी प्रदेश उपाध्यक्ष मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी;अध्यक्षता कर रहे सत्यनारायण पवार पूर्व सांसद; रामस्वरूप सुनहरिया आदि ने कन्हैयालाल वेद्य की तस्वीर पर सूत की माला का अर्पण किया।साथ ही दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।स्वस्ति वाचन राजेंद्र व्यास ने किया।

वैद्यजी के जीवन पर सूर्यकांत शर्मा ने पीएचडी की जिसमें वेद्यजी के जीवन के बहुआयामी व्यक्तित्व पर शोध किया जिसकी एक प्रति उपस्थितों को अवलोकन करवाई।इस अवसर पर मनोहर बैरागी ने कहा कि महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी,पितृपुरुष 98 वर्षीय नागरजी की उपस्थित हमें बहुत प्रोत्साहित कर रही है।वैद्यजी ने अपने जीवन में विदेशी अंग्रेजी ताकत के प्रकरण बहुत झेले फिर भी अपने उसुलों से नहीं डिगे। क्रांतिकुमार वैद्य परिवार द्वारा महिदपुर के वरिष्ठ पत्रकार जवाहर डोसी पीयूष एवं वैद्यजी के साथ कर्मठता से काम करने वाले पत्रकार नरेश सोनी का पत्रकारिता में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मान किया गया।रामस्वरूप सुनहरिया ने कहा कि वैद्यजी हमारे समाज के वरिष्ठ पत्रकार थे।पिताजी के साथ मेरा उनसे परिचय हुआ। उनका व्यक्तित्व बहुत अच्छा था।शांतिलाल छजलानी ने कहा सन् 1956- 57 में राज्यसभा में वैद्यजी को देखा। आज के नेता को तो कार और ठप्पे होना चाहिए।इतने बड़े आंदोलन में भाग लिया उनकी सादगी कितनी?  टोकरी में से आम लिए और आपका भोजन हो गया। लोगों ने मांगा कि पीसीओ नहीं है।राज्यसभा सदस्य के रूप में तीन माह में पीसीओ कायम हो गया।नागेश्वर धतूरा के काव्य संग्रह व राज्यपाल महामहिम थावरचंद जी गहलोत द्वारा विमोचित शौर्य गाथा की प्रति भी भेंट की।सेनानियों के जीवन के हम गुणों को अंगीकार करें तो सार्थक होगा।डाॅ.रफीक नागौरी ने कहा कि हमको तो राह सच की दिखा कर चले गए और फल सादगी के खिलाकर चले गए।प्रेमनारायण पांडे का सम्मान भी हुआ।केसी यादव राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा महानियंत्रक ने कहा कि वैद्यजी जैसा कोई दूसरा नहीं हुआ।ऐसे व्यक्ति आज कहां मौजूद हैं?ऐसे संस्कार नहीं दे पाए।कार्पोरेट जगत की बलिहारी है।खुद ही संवाद बनाते,लिखते,छपवाते।सत्य की खोज करते थे।समर्पण भावना थी।आज वैद्य परिवार का कोई सदस्य चयन समिति में नहीं है।मामा बालेश्वरदयाल,शिव प्रतापसिंह के साथ पत्रकारिता उन्होंने अभाव में की थी। मोर्चा द्वारा  सम्मान शांतिलाल छजलानी,अर्जुनसिंह चंदेल,प्रेमनारायण नागर के हाथों वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी जवाहर डोसी पीयूष,अंग्रेजी अखबार के निरुक्त भार्गव, न्यूज़ 24 के अजय नीमा,शोधकर्ता ऋतु गुप्ता,ग्रामीण परिवेश से दीपांशु जैन,मनोज उपाध्याय थांदला,जितेंद्र गरासिया आदि का सम्मान किया।एक विशिष्ट तथ्य कि 98 वर्षीय नागर और कन्हैयालाल वैद्यजी ने आजीवन सरकारी सुविधा नहीं लेने का प्रण लिया किया था।नागरजी ने कहा मेरा उनसे संपर्क भोपाल से था।तब हम दोनों ने  तय किया था कि पेंशन नहीं लेंगे क्योंकि हमने कोई नौकरी नहीं की है।देश की हालत ठीक नहीं है।इस देश के नौजवान युवा शक्ति देश को संभाले।पत्रकारिता नहीं रही,व्यापार हो गया है।विकास प्राधिकरण का सभागृह एक करोड रुपए की लागत से तैयार हुआ है।थांदला में वेद्यजी की प्रतिमा मुख्यमंत्री मोहन यादव की उपस्थिति में लगा दी गई है।थांदला में महाविद्यालय का नामकरण भी वेद्यजी के नाम से करने की दिशा में कार्य होगा।धवल अरोड़ा थांदला ने पत्रकारिता में पीएचडी की है।संदीप कुलश्रेष्ठ का भी सम्मान हुआ।राधाकृष्ण गांधी के सुपुत्र आनंदीलाल गांधी ने कहा कि वैद्यजी गौरवर्ण, सादगी की प्रतिमूर्ति,महर्षि सम्मान,अनेकानेक गुणों से परिपूर्ण,त्यागी,कुशल वक्ता,लेखक,कर्मयोद्धा,दबंग पत्रकार होकर सटीक कई दैनिक साप्ताहिक, 40 अखबारों के माध्यम से सक्रिय कार्य किया।वकील भी थे मुफ्त पैरवी भी की।वहां के राजा ने राजद्रोही बताकर नगर जिला बदर कर दिया।किसी के सामने नहीं झुके, स्वाभिमान से जिए।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सत्यनारायण पंवार ने कहा कि आज के वातावरण और आजादी के समय के वातावरण में बहुत अंतर है।सत्ता हथियाना का काम हो गया है। पब्लिक से प्राइवेट सेक्टर में सब जा रहा है।मीडिया की भी अपनी मजबूरी है।युवा चिंतन कर घर बैठ जाते हैं बदलाव नहीं लाते।प्रजातंत्र खत्म होने की ओर है,एक छात्र राज्य आने वाला है।लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।तब सेनानियों संभाल पर अब क्या?सन् 1928 में झाबुआ रियासत में प्रथम पत्रकार रहे थे श्री वैद्यजी। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और शासन से पत्रकारिता सम्मान रु.1लाख की राशि से सम्मानित कैलाश सनोलिया और साहित्य शिरोमणी जैनेंद्र खेमसरा ने किया।आभार सुश्री कांति वैद्य ने माना।

Exit mobile version