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*सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की सज़ा रद्द कराने  की मांग को लेकर राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपे गए* 

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  सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को मानहानि के प्रकरण में साकेत के मेट्रोपॉलिटन कोर्ट द्वारा कल दी गई सजा को रद्द करने की मांग को लेकर जन संगठनों द्वारा राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपे गए।

  ग्वालियर में किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पूर्व विधायक डॉ सुनीलम, समाजवादी पार्टी के शहर अध्यक्ष  राजेश यादव, किसान संघर्ष समिति के ग्वालियर- चंबल संयोजक एड विश्वजीत रतौनिया, लोहिया वाहिनी के प्रदेश सचिव शत्रुघ्न यादव के नेतृत्व में, मुलताई में किसान संघर्ष समिति प्रदेश उपाध्यक्ष एड. आराधना भार्गव, जिला अध्यक्ष जगदीश दोड़के, जिला उपाध्यक्ष लक्ष्मण बोरबन, महामंत्री भागवत परिहार, सपा जिला अध्यक्ष कृपाल सिंह सिसोदिया, सिंगरौली में एड अशोक सिंह पैगाम, सीहोर में अखिल भारतीय किसान सभा के महामंत्री प्रहलाददास बैरागी, छिंदवाड़ा में किसान संघर्ष समिति के श्रीकांत वैष्णव, राजस्थान के नीम का थाना में जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय के संयोजक कैलाश मीणा द्वारा जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपे गए।

    महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी, कांग्रेस के पूर्व विधायक पारस सकलेचा, महाराष्ट्र में जय किसान आंदोलन के सुभाष लोमटे, सर्वहारा जन आंदोलन की उल्का महाजन एवं उड़ीसा में सपा प्रदेश अध्यक्ष रबी बेहेरा द्वारा ईमेल से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजा गया ।

    स्वराज इंडिया के संयोजक योगेंद्र यादव, मजदूर किसान शक्ति संगठन की ओर से अरुणा रॉय, निखिल डे एवं अन्य साथियों द्वारा मेधा पाटकर को सजा दिए जाने के खिलाफ बयान जारी किया गया।

  राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के नाम भेजे गए ज्ञापन पत्र में कहा गया कि  श्री वी के सक्सेना गुजरात के जे.के. सीमेंट और अडानी की संयुक्त परियोजना धोलेरा परियोजना के पदाधिकारी 1990 से बने थे। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने  जब 1991 से घाटी के हजारों आदिवासी, किसान, दलित, मजदूर, मछुआरे, व्यापारी सभी विस्थापितों के अधिकारों के लिए कानूनी और अहिंसक संघर्ष किया, तभी से सक्सेना जी ने आंदोलन की खिलाफत शुरू कर दी थी । आंदोलन विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास के लिए चला था, गुजरात की कंपनियों को पानी देने के विरोध में नही था अर्थात विस्थापितों के संपूर्ण पुनर्वास और उसके बिना किसी का घर, खेत डूबने न देने के कानून, नीति तथा न्यायालयीन फैसलों के पालन के पक्ष में आंदोलन चलाया गया था, जो तीन राज्यों के 244 गांव और एक नगर के  50 हजार से अधिक परिवारों के पुनर्वास के लिए जरूरी था। 

     अभी तक जो भी अधिकार विस्थापित परिवारों को मिल पाए हैं वह सत्याग्रह और संघर्ष के कारण ही संभव हो पाया है। सर्वोच्च न्यायालय ने तथ्यों, कानून के अधिकार और धरातल की सच्चाई जानकर बांध रोकने का आदेश दिया, तो भी सक्सेना जी ने आंदोलन को दोषी ठहराकर मेधा पाटकर पर गंभीर आरोप लगाए और टिप्पणियां की। जैसा की  “मेधा पाटकर को फांसी दो!”  “होलिका में मेधा पाटकर का दहन करो !” आदि वक्तव्य मीडिया में मेधा पाटकर को बदनाम करने की नीयत से छपवाए। यही नहीं, सक्सेना जी ने सर्वोच्च न्यायालय में नर्मदा बचाओ आंदोलन को विदेशी पैसों से चलने वाली संस्था बतलाकर पीआईएल दाखिल की, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2007 में  खारिज करते हुए यह कहा कि यह ‘पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’  नही,  ‘प्राइवेट इंटरेस्ट लिटिगेशन’ है। न्यायालय ने 5000 रूपये का जुर्माना भी लगाया।

      साबरमती आश्रम में गुजरात में दंगों के बाद शांति बैठक का निमंत्रण मिलने पर मेधा पाटकर जब आश्रम में पहुंची तब  उन पर  हमला किया गया जिसमें  वी के सक्सेना शामिल थे, जिसके कई गवाह है।  गुजरात शासन ने वी के सक्सेना एवं अन्य तीन राजनीतिक व्यक्तियों पर आपराधिक प्रकरण दर्ज किया। जिसमें 2002 से आज तक फैसला नही हो पाया है। लेफ्टिनेंट गवर्नर होने से उन्हें किसी अपराधी प्रकरण से छुटकारा नही मिल सकता है, यह निर्णय साकेत कोर्ट, दिल्ली और अहमदाबाद के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट दोनों ने संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर किया है। यह प्रकरण अहमदाबाद हाई कोर्ट में  लंबित है।

     सक्सेना जी ने मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन पर लाल भाई ग्रुप कंपनी के नाम फर्जी चेक  के मामले में, धन्यवाद का पत्र और रसीद लेकर इंडियन एक्सप्रेस में विज्ञापन देकर हवाला व्यवहार का झूठा आरोप लगाया था। इस मामले में मेधा पाटकर जी की ओर से मानहानि का प्रकरण 2000 से आज तक साकेत कोर्ट, दिल्ली में लंबित है ।

 एक फर्जी मेल के आधार पर सक्सेना जी ने मानहानि का प्रकरण 2001 में दर्ज किया, जिसमें मेधा पाटकर को 24 मई 2024 को साकेत कोर्ट के मेट्रो पॉलिटियन मजिस्ट्रेट द्वारा दोषी करार देकर 1 जुलाई को 5 महीने के कारावास तथा 10 लाख रुपए की  मुआवजा राशि- जुर्माना भरने की सजा सुनाई गई।

    यह सर्वविदित है कि मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन आदिवासीयों, किसानों, मजदूरों आदि सभी अन्यायग्रस्तों – विस्थापितों के साथ संघर्ष और निर्माण के कार्य में सक्रिय रहा है। विकास की अवधारणा विनाश, विषमतावादी नही, समता, न्याय और निरंतरता के मूल्य मानकर हो, ताकि ‘त्याग’ के नाम पर प्रकृति निर्भर और श्रमिक परिवारों को अत्याचार भुगतना न पड़े, यही उनकी मान्यता रही है। आज भारत और दुनिया जो जलवायु परिवर्तन भुगत रही है और देश में गत 76 वर्षों से विस्थापितों का सम्पूर्ण पुनर्वास नहीं किया गया है, तो क्या विकास संबंधी सवाल उठाना और संवाद करना न्यायसंगत नहीं है? 

     अहिंसा और सत्य के आधार पर चलते नर्मदा घाटी के कार्य को विकास विरोधी मानना क्या गलत नही है ? 

     ऐसा लगता है कि मेधा पाटकर जी पर झूठे आरोप लगाकर पहले वी के सक्सेना जी खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष बने बाद में दिल्ली के उप राज्यपाल बने।

 38 वर्षों से मेधा पाटकर ने नर्मदा घाटी में ही नही, देश के विभिन्न इलाकों के श्रमिकों, किसानों, मजदूरों, शहरी गरीबों और जल-जंगल-जमीन पर जीने वाले आदिवासियों के साथ कार्य किया है। आज भी नर्मदा घाटी में हजारों परिवारों के संपूर्ण पुनर्वास हेतु आंदोलन जारी है।

   इस परिपेक्ष में उन्हें सत्ता का इस्तेमाल कर झूठे आरोपों में सजा देना, व्यक्तिगत तौर पर प्रताड़ित करना, जनतंत्र,  संविधानिक मूल्यों के खिलाफ होने के साथ-साथ अन्यायपूर्ण एवं गैरकानूनी है ।

कल भी देश भर में ज्ञापन सौंपे 

जाएंगे।

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