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योगी राज में एनकाउंटर जस्टिस,10 हजार से ज्यादा एनकाउंटर

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6 मार्च की सुबह UP पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन टीम ने प्रयागराज के लालपुर गांव को चारों ओर से घेर लिया। सर्च ऑपरेशन चलाकर सुबह 5.30 बजे शूटर विजय चौधरी उर्फ उस्मान को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया। आरोप है कि उमेश पाल हत्याकांड में पहली गोली उसी ने ही चलाई थी। इससे पहले इसी केस के एक और आरोपी अरबाज को भी पुलिस ने इसी तरह मुठभेड़ में मार दिया था।

इस साल के शुरुआती 2 महीनों में ही उत्तर प्रदेश में 9 एनकाउंटर हो चुके हैं। इसी वजह से एक बार फिर से योगी राज में एनकाउंटर जस्टिस को लेकर चर्चा तेज हो गई है।

पिछले 6 साल में UP में कितने एनकाउंटर हुए? इनमें कितने लोग मारे गए? कितने जख्मी हुए और इन मुठभेड़ से बने माहौल से क्या अपराध कम हुए?

मार्च 2017 से मार्च 2023 तक UP में कितने एनकाउंटर हुए…

10,500 एनकाउंटर्स में और क्या-क्या हुआ…
इन एनकाउंटर्स में बदमाशों की गोली लगने से करीब 1400 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं। वहीं, इन मुठभेड़ों में 23 हजार से ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

इसी वजह से कहा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में क्राइम कंट्रोल करने के लिए पुलिस को खुली छूट दी है। इसके चलते सिर्फ 3 महीने में 25 मार्च 2022 से लेकर एक जुलाई 2022 तक कुल 525 एनकाउंटर हुए हैं।

अगले ग्राफिक्स में पढ़िए किस जोन में सबसे ज्यादा बदमाश मुठभेड़ में मारे गए हैं…

UP से ज्यादा छत्तीसगढ़ में दर्ज हुए एनकाउंटर में मौत के मामले
8 फरवरी 2022 को संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्र सरकार ने बताया कि जनवरी 2017 से जनवरी 2022 के बीच पुलिस एनकाउंटर में मौत के बाद सबसे ज्यादा 191 केस छत्तीसगढ़ में दर्ज हुए। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां कुल 117 केस दर्ज हुए हैं।

अब जानिए देश के किन 10 राज्यों में सबसे ज्यादा एनकाउंटर में मौत के केस दर्ज हुए हैं…

अब इस कथित एनकाउंटर न्याय की नीति का गंभीर अपराधों के आंकड़ों पर असर देखते हैं…

UP में IPC के तहत दर्ज होने वाले अपराध के मामले कम नहीं हो रहे
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक IPC के तहत दर्ज होने वाले ओवरऑल अपराध UP में घटने की बजाय बढ़ रहे हैं। 2019 में उत्तर प्रदेश में IPC की धाराओं के तहत 3,53,131 मामले दर्ज हुए। वहीं, 2020 में 3,55,110 और 2021 में 3,57,905 केस दर्ज हुए। हालांकि, कई बार ज्यादा केस दर्ज होने का मतलब ये भी होता है कि आम लोगों की पुलिस तक पहुंच आसान हुई है। इस वजह से पहले की तुलना में ज्यादा केस रजिस्टर हो रहे हैं।

अब एक्सपर्ट के जरिए जानते हैं कि प्रैक्टिकली और कानूनी तौर पर एनकाउंटर क्राइम कंट्रोल करने का कितना सही तरीका है…

कानून में एनकाउंटर जस्टिफाई और लीगलाइज नहीं है: विराग गुप्ता
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का कहना है कि भारत के किसी भी कानून में एनकाउंटर को जस्टिफाई या लीगलाइज नहीं किया गया है। अनुच्छेद 21 में जीवन जीने के अधिकार को एक फंडामेंटल राइट माना गया है। कानून में साफ है कि सरकार किसी इंसान से उसके जीवन जीने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ कानूनी तौर पर छीन सकती है। एनकाउंटर एक निगेटिव पहलू है।

संविधान में कानून के शासन की बात कही गई है। इसका मतलब है कि किसी आरोपी को कोर्ट के फैसले के बाद ही दोषी माना जाएगा। उसे कोर्ट से ही मौत की सजा सुनाई जा सकती है। जब तक कोर्ट में कोई दोषी साबित न हो जाए, उसे निर्दोष माने जाने की बात कही गई है।

विराग का कहना है कि जब कानूनी प्रक्रिया में देरी की वजह से फायदा उठाकर कोई अपराधी या माफिया बच निकलते हैं तो इससे दो गलत बातें होती हैं…

ये दोनों ही तरीके कानूनी तौर पर सही नहीं है और लॉन्ग टर्म में इसका परिणाम गलत हो सकता है। इसलिए समाज में क्राइम को रोकने का सही इलाज जल्द से जल्द न्याय और कानूनी प्रक्रिया में सुधार है।

प्रयागराज एनकाउंटर कानून की कसौटी पर सही: पूर्व DGP विक्रम सिंह
उत्तर प्रदेश के पूर्व DGP विक्रम सिंह ने कहा कि प्रयागराज के दोनों एनकाउंटर कानून की कसौटी पर एकदम सही हैं। दिन-दहाड़े इस तरह की घटना को अंजाम देने वाले अपराधियों का पुलिस एनकाउंटर में मारा जाना बाकी बदमाशों के लिए एक संदेश देता है। किसी भी एनकाउंटर के दो पहलू होते हैं…

पहला: पुलिस मुठभेड़ का कानूनी पहलू: IPC की धारा 96 से लेकर 104 तक में व्यक्तिगत सुरक्षा की बात कही गई है। इसमें जरूरत पड़ने पर अपनी या दूसरे की जान बचाने के लिए पुलिस न्यूनतम बल का इस्तेमाल कर सकती है।

दूसरा: एनकाउंटर का समाजिक पहलू: एनकाउंटर अगर कानून की कसौटी पर सही अपराधी का हुआ है तो इसका सकारात्मक प्रभाव समाज में जाता है। वहीं, अगर एनकाउंटर गलत मुजरिम का हो जाए जो अपराध में सक्रिय नहीं हो तो लोगों के बीच इससे गलत मैसेज जाता है। अगर कोई सरकार इस तरह के एनकाउंटर के लिए पुलिस पर दबाव बनाती है तो इससे पुलिस का भी मनोबल कमजोर होता है।

विक्रम सिंह का कहना है कि शातिर अपराधी जेल जाने से नहीं डरते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें पता होता है कि वो किसी न किसी तरह से जेल से बाहर आ जाऐंगे। वहीं, अगर उचित कानूनी तरीके से एनकाउंटर में किसी हिस्ट्रीशीटर की मौत होती है तो इससे अपराधियों के बीच डर का माहौल बन जाता है।

एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट के नियम
23 सितंबर 2014 को तब के मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने एक फैसले के दौरान एनकाउंटर का जिक्र किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत किसी भी तरह के एनकाउंटर में नियमों का पालन होना जरूरी है।

दरअसल, अनुच्छेद 141 सुप्रीम कोर्ट को कोई नियम या कानून बनाने की ताकत देता है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा था कि पुलिस एनकाउंटर के दौरान हुई मौत की निष्पक्ष, प्रभावी और स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए। एनकाउंटर को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 5 खास बातें ये हैं…

1. जब भी पुलिस को किसी तरह की आपराधिक गतिविधि की सूचना मिले तो उसे केस डायरी या फिर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में रिकॉर्ड किया जाए।

2. अगर पुलिस की तरफ से गोलीबारी में किसी की मृत्यु की सूचना मिले तो इस पर तुरंत प्रभाव से धारा 157 के तहत बिना किसी देरी के कोर्ट में FIR दर्ज होनी चाहिए।

3. इस पूरे घटनाक्रम की एक स्वतंत्र जांच CID से या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवानी जरूरी है, जिसकी निगरानी एक सीनियर पुलिस अधिकारी करेंगे। यह पुलिस अधिकारी उस एनकाउंटर में शामिल सबसे उच्च अधिकारी से एक रैंक ऊपर होना चाहिए।

4. धारा 176 के अंतर्गत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए। इसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजना जरूरी है।

5. जब तक स्वतंत्र जांच में किसी तरह का शक पैदा नहीं होता, तब तक NHRC को जांच में शामिल करना जरूरी नहीं है। हालांकि घटनाक्रम की पूरी जानकारी तुरंत NHRC या राज्य के मानवाधिकार आयोग के पास भेजना जरूरी है।

1997 में मानवाधिकार आयोग ने कहा- सिर्फ दो हालातों में एनकाउंटर अपराध नहीं
1997 में मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वेंकटचलैया ने कहा था कि हमारे कानून में पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी व्यक्ति को मार दे।

ऐसे में जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि उन्होंने कानून के अंतर्गत किसी को मारा है, तब तक वह हत्या मानी जाएगी। सिर्फ दो ही हालातों में इस तरह की मौतों को अपराध नहीं माना जा सकता।

पहला- अगर आत्मरक्षा की कोशिश में दूसरे व्यक्ति की मौत हो जाए। दूसरा– CrPC की धारा 46 पुलिस को बल प्रयोग करने का अधिकार देती है। ऐसे में जब गिरफ्तारी के दौरान मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा पाने वाला अपराधी भागने या मुठभेड़ करने की कोशिश में मारा जाता है।

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