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मुरैना की गजक;कूटा सबसे सस्ती; काजू जितनी महंगी है हलवा गजक

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मुरैना

पूरे देश में मुरैना 2 चीजों के लिए मशहूर हैं। पहली चंबल के डाकू, दूसरी गजक। इन दिनों दोनों चर्चा में हैं। डकैत गुड्डा गुर्जर को हाल ही में गिरफ्तार किया गया है। उधर, सर्दी आने से गजक की डिमांड बढ़ गई है। करीब 50 साल पहले वजूद में आई गजक यहां के लोक संस्कार की देन है। करीब 200 करोड़ रुपए सालाना का कारोबार होता है। अमेरिका, इंग्लैंड, दुबई, फ्रांस सहित कई पश्चिमी देशों में गजक के दीवाने हैं। यही कारण है कि पूरी दुनिया में इसका एक्सपोर्ट होता है।

मुरैना की पहचान उसकी गजक से है। कारण गजक की उत्पत्ति मुरैना से ही हुई है। मुरैना के गजक की बात ही अलग है। जो स्वाद यहां की गजक में आता है वह कहीं नहीं आता। यह बात हम नहीं कह रहे हैं, यह बात हर मुरैना वासी कहता है। यहां का पानी ही ऐसा है कि गजक का स्वाद निराला होता है। अगर यही गजक कहीं और बनाई जाए तो वह स्वाद नहीं मिलता है। हम आपको बताते हैं की मुरैना की गजक कैसे बनती है और इसके स्वाद के पीछे क्या कारण है?

लड्‌डू से गजक बनने का किस्सा
चंबल के लोग अतिथि प्रेमी हैं। पहले के समय में मेहमानों के लिए यहां की महिलाएं तिल के लड्डू बनाती थीं। फिर तिल पट्‌टी (चिक्की) बनाई जाने लगी। इसके बाद रेसिपी में इम्प्रूवमेंट और प्रयोग होते गए। तिल को भूनकर इसमें गुड़ मिलाते और फिर कूटकर खस्ता लड्‌डू बनाने लगे। यह खाने में सॉफ्ट था। आगे चलकर इसे चौकोर बनाया जाने लगा। यह गजक का पहला अवतार था, लेकिन इसका एक पीस आज की गजक के मुकाबले कई गुना बड़ा था। लोगों ने इसका व्यापार शुरू किया और कई परिवार बनाने लगे। उस समय इसे लोग टोकरी में रखकर बेचते थे। यूनीक टेस्ट होने के कारण इसकी प्रसिद्धि बढ़ती गई।

गर्म गजक में दिया जाता है आकार
गजक समोसा, गजक रोल, गजक गुजिया बनाने के लिए मिश्रण को गर्म अवस्था में कूटा जाता है। इसी समय इसे सांचे में रखकर समोसा, गुजिया व रोल आदि का आकार दे दिया जाता है। समोसा व गुजिया के अंदर मावा भी रखा जाता है। अगर गजक ठंडी हो गई तो फिर वह कड़क हो जाती है। आकार देने पर वह टूट जाती है।

गजक बनाने वाले कमल ने बताया, 5 से 10 मिनट तक कूटना पड़ता है। जितनी जरूरत होती है, उतना कूटा जाता है। ये कूटने वाले पर भी डिपेंड करता है कि वो कितने पावर से लकड़ी का हैमर मारता है। अगर धीमे हैमर मारता है तो टाइम बढ़ जाता है।

पूरी दुनिया में एक्सपोर्ट करते हैं
गजक के प्रमुख व्यवसायी कमलकांत दंडोतिया के अनुसार यहां लगभग हर गली-मोहल्ले में इन दिनों गजक बनाई जा रही है। नजदीकी शहरों आगरा, दिल्ली, ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर के अलावा, देश के अन्य राज्यों जैसे कर्नाटक और ओडिशा तक में गजक की सप्लाई की जाती है। विदेशों में एक्सपोर्ट किया जाता है।

सबसे सस्ती और सबसे महंगी गजक
सबसे सस्ती कही जाने वाली गजक को कूटा गजक कहते हैं। यह बेसिक गजक होती है। इसकी कीमत भी 200 से ढाई सौ रुपए प्रति किलो होती है। इसमें तिल व गुड़ के अलावा कुछ नहीं होता। जैसे-जैसे ड्राई फ्रूट्स और घी की मात्रा बढ़ती जाती है, गजक की कीमत बढ़ती जाती है। सबसे महंगी गजक के रूप में गजक हलवा है, जो कि बहुत ही पौष्टिक माना गया है। इसकी कीमत 800 से 900 रुपए प्रति किलो तक है। यानी इसकी कीमत लगभग काजू के बराबर है।

1 फैनी गजक : इसको फेंटकर बनाया जाता है। सबसे पहले तिल को घी में भूना जाता है। इसके बाद इसको दरदरा पीसा जाता है। पीसने के बाद इसे फिर घी में भूना जाता है। ड्राई फ्रूट्स मिलाए जाते हैं।
2. काजू पिस्ता पट्‌टी (पपड़ी) : जैसा कि इसका नाम है, इसमें भरपूर मात्रा में काजू और पिस्ता का उपयोग किया जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसे साबुत तिली से बनाया जाता है। इसमें साबुत काजू ही डाले जाते हैं।
3. रोल गजक : इसमें 50 प्रतिशत ड्राई फ्रूट्स शामिल रहते हैं। इसमें काजू, किशमिश, पिस्ता, इलायची, डौंडा का अधिक उपयोग किया जाता है। सबसे खास बात यह है कि इसको पहले घी में फ्राई किया जाता है। इसे बनाते समय रोल किया जाता है, जिससे यह रोल गजक कहलाती है।
4. गुजिया गजक : इसमें गुलकंद, मावा, क्रीम और खुरचन मिलाई जाती है, जिससे इसका स्वाद अन्य गजक से अलग हटकर होता है। इसको देखने में नहीं लगता है कि यह मिठाई है या गजक। इसको घी में भूना जाता है और लगभग सभी प्रकार के ड्राई फ्रूट्स डाले जाते हैं।
5. गजक हलवा : यह गजक कम हलवा अधिक है। इसमें तिल कम ड्राई फ्रूट्स ज्यादा डाले जाते हैं। यह बिल्कुल गाजर के हलवे की तरह होती है। यह दुकानों पर बहुत कम मिलता है और स्पेशल ऑर्डर देकर बनवाया जाता है। इसकी कीमत 800 से 900 रुपए किलो है।

इसलिए गजक खाने के बाद, तुरंत नहीं पीते पानी
गजक की तासीर गर्म रहती है, इसलिए इसे खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीते। अगर कोई पानी पीता है तो उसे खांसी हो जाती है। आमतौर पर गजक खाना खाने के बाद खाई जाती है, जिससे खाना भी हजम हो जाए।

रिश्तेदारों के यहां भेजने का रिवाज
मुरैना की गजक इतनी प्रसिद्ध है कि उसे यहां के लोग अपने रिश्तेदारों के यहां भेंट स्वरूप भेजते हैं। लोग अपनी बेटियों के ससुराल गजक भेजते हैं। यहां तक कि घर पर आने वाले मेहमानों का स्वागत भी गजक से किया जाता है। जाते समय उसे गजक का डिब्बा देकर उसका सम्मान रखा जाता है।

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