कीर्ति राणा
फिल्मी दुनिया में निर्माता-निर्देशक संजय भंसाली हैं जो अपनी मां लीला नाम साथ में न लगाएं तो उनका नाम अधूरा लगता है।प्रदेश भाजपा मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल भी दो साल पहले मां के निधन के बाद से मां उषा का नाम लगा रहे हैं।उनके पिता का निधन तो तब हो गया था जब आशीष 12 साल के थे। मां उषा बीमारी के चलते अस्पताल में इंफेक्शन पर इंफेक्शन का शिकार होती रहीं। 66 वर्ष में उनके निधन के बाद भी मां का आशीष सदैव साथ रहे, उन्होंने अपने साथ मां का नाम भी जोड़ लिया।
मुख्यमंत्री डॉ यादव एक तरफ जनता दरबार लगाने और लोगों की समस्या हाथोंहाथ हल करने का नवाचार कर रहे हैं, दूसरी तरफ उनके ही जिले के नागदा में एसडीएम ने जनसुनवाई में मीडिया का प्रवेश ही प्रतिबंधित कर दिया ।इसके विपरीत आयुक्त जनसंपर्क डॉ सुदाम खाड़े ने सभी जनसंपर्क अधिकारियों को निर्देश दे रखे हैं कि जनसुनवाई वाले मामलों का खूब प्रचार प्रसार हो ताकि लोगों में जागरुकता बढ़े। एसडीएम नागदा द्वारा मीडिया को जनसुनवाई कार्रवाई से बाहर करने पर जब हल्ला मचा और बात बिगड़ने लगी तो फोटोग्राफरों को प्रवेश के लिये राजी हुए।
महाकाल मंदिर में दर्शनार्थियों को ठगने-लूट मचाने वाले अन्य किसी धर्म के नहीं सनातन संस्कृति का गुणगान करने वाले ही हैं, ऐसे में बटेंगे तो कटेंगे नारा तो कम से कम यहां फिट नहीं बैठता। लूट भी हजार दस हजार की नहीं हर दिन लाखों की। मंदिर समिति ने दिसंबर महीने में श्रद्धालुओं के आगमन और होने वाली आय के जो आंकड़े जारी किये हैं वो चौंकाने वाले हैं कि कुछ दिन तो 18 लाख रु रोज की आय हुई फिर
दिसंबर के दूसरे पखवाड़े में घट कर 9 लाख हो गई, प्रशासक धाकड़ सहित बाकी लोगों की कारगुजारी सामने आई, गिरफ्तारी हुई तो आय बढ़ कर 30 से 35 लाख तक हो गई।
कलेक्टर-एसपी ने खुद आरोपियों से पूछताछ की थी।कुछ नाम और भी बताए थे लेकिन एडीएम को तो अस्थायी प्रभार दे दिया, बाकी भी चैन की सांस ले रहे हैं।धाकड़ को दूसरी बार प्रशासक बनवाने संघ से जुड़े वरिष्ठ सदस्य ने भी चुप्पी साध ली है।
मध्यप्रदेश में संभवतया यह पहला प्रकरण है जब घुघरी तहसील में पदस्थ 68 पटवारियों के में से 60 पटवारियों को एक साथ दो दिन का वेतन काटने का आदेश एसडीएम आसिफ खान के अनुमोदन पश्चात तहसीलदार ने जारी किया है।इस कार्रवाई के खिलाफ जिला पटवारी संघ ने तहसीलदार को एक ज्ञापन तो सौंपा ही, एसडीएम खान के खिलाफ हाय-हाय के नारे लगाने के साथ संघ ने जिला प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि यह हिटलरशाही फरमान वापिस नहीं लिया गया तो संगठन जिला स्तर पर हड़ताल करने के लिए विवश हो जाएगा।
अभी कोई बड़ा चुनाव तो है नहीं लेकिन मध्य प्रदेश में वर्षों से की जा रही पृथक बुंदेलखंड की मांग तेज हो गई है। बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा ने 26 विधानसभाओं में जनमत संग्रह करना शुरु कर दिया है।बुंदेलखंड राज्य की मांग को इस जनमत संग्रह से मजबूती ही मिलना है क्यों कि आंदोलन के अगले चरण में क्षेत्र के लोग और अधिक उत्साह दिखाएंगे।
हरदा जिले के कलेक्टर आदित्य सिंह (2014 बैच) उन आइएएस में से हैं जिनके एक नवाचार पूरे प्रदेश में उनकी तारीफ होने लगी है।मप्र में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को 10 साल पूरे होने को हैं।कलेक्टर हरदा ने जिले में रेवा शक्ति योजना शुरू की है।इस योजना में एक और 2 बेटियों वाले परिवारों के लिए कीर्ति कार्ड बनाए जाएंगे।ऐसे 638 परिवारों को चिन्हित किया गया है और इन परिवारों का डॉटर्स क्लब बनाया गया है ।इनमें हरदा शहर में 338, हरदा ग्रामीण में 43, टिमरनी तहसील में 132 और खिरकिया तहसील में 125 परिवार अब तक चिन्हित किए हैं । ऐसे परिवारों को समाजसेवी संस्थाओं की मदद से निजी अस्पताल में इलाज, बस के किराए, होटल रेस्टोरेंट में भोजन, प्राइवेट स्कूल में दाखिले, स्टेशनरी और किराना खरीदी में रियायत दिलाई जाएगी।आदित्य सिंह को तीन साल पहले कलेक्टर बन जाना था लेकिन तत्कालीन मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस उन्हें नजरअंदाज करते रहे।
इंदौर को शर्मसार करने वाले भाजपा पार्षद जीतू जाटव पर देरी से सख्ती के लिए भाजपा से लेकर पुलिस प्रशासन सब की ढिलाई रही है । अब गेंद कलेक्टर आशीष सिंह के पाले में हैं उनकी तत्परता है कि पुलिस महकमे से मिली जानकारी के बाद जिलाबदर की फाइल तैयार हो रही है । उनका बस चले तो उसके मकान पर भी बुलडोजर चलवा दें लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के कारण हाथ बंध गए हैं।इस कांड के बाद अब जीतू जाटव के अपराधों के किस्से भी सार्वजनिक होते जा रहे हैं।
मप्र साहित्य अकादमी के संचालक डॉ विकास दवे के कार्यकाल में वृद्धि मप्र के साहित्य जगत के लिए तो हर्ष की बात है।अकादमी संचालक रहते डॉ दवे ने चार साल में ही आठ साल जितने सम्मान दे दिये हैं।इस अवधि में बाल साहित्यकारों, पत्रकारों पर भी खूब स्नेह बरसाया है। इंदौर, उज्जैन सहित मालवा क्षेत्र के साहित्यकारों की उपलब्धियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनके रचनाकर्म को सम्मानित करने का काम अभी ही हुआ है । पहले के संचालक की ऐसी उदारता महाकौशल क्षेत्र में सतना, रीवां, मंडला पर ऐसी रही कि मात्र एक किताब के लेखक पर भी आंख मूंद कर कृपा बरसती रही थी।
नर्मदा इंदौर लाने का आंदोलन तो 1970 में 5 जुलाई से अगस्त तक चला, सफलता का ही परिणाम रहा कि तीन चरणों में नर्मदा जल प्यास बुझाता रहा।शहर को कभी याद ही नहीं रहा कि एक मूर्ति नर्मदा की भी होना चाहिए। चौथे चरण की शुररुआत के साथ ही महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने नर्मदा की प्रतिमा स्थापित करने का पुण्य कार्य नार्मदीय ब्राह्मण समागम के दौरान कर लिया है।उस आंदोलन की तरह इस प्रतिमा स्थापना को भी याद रखा जाएगा।
उज्जैन में जिस तरह महाकाल होने से अन्य किसी देवता को उतनी प्रमुखता नहीं मिलती वही हाल राज्य सरकार की व्यवस्था का है। जब खुद मुख्यमंत्री ही उज्जैन के हों तो उज्जैन के प्रभारी मंत्री गौतम टेटवाल तो बस नाम के ही प्रभारी मंत्री रहेंगे। एक साल से अधिक हो गया, प्रभारी मंत्री टेटवाल कितने कार्यक्रमों में आए, उज्जैन के लिये क्या कुछ किया, खुद उन्हें भी याद नहीं होगा।