कोयले की अब तक अरबों रुपये की उधारी चुकानी है सरकार को
भोपाल। प्रदेश सरकार की बिजली कंपनियां आर्थिक तंगहाली से गुजर रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह बिजली की सब्सिडी बताई जा रही है। वहीं मध्यप्रदेश में बिजली खरीदी महंगी साबित हो रही है। दरअसल राज्य सरकार ने 25-25 साल के कई एमओयू कर रखे हैं। जिनके तहत बिजली खरीदी की जाए अथवा नहीं की जाए लेकिन भुगतान करना ही पड़ता है। बिजली खरीदी में लगभग साढ़े तीन सौ अरब रूपए हर महीने भुगतान होता है। यह सरकार पर भारी पड़ रहा है। यही नहीं वर्ष भर का हिसाब लगाएं तो यह राशि करीब 42 हजार करोड़ से ज्यादा हो जाती है। वहीं बिजली की सब्सिडी के लिए इक्कीस हजार करोड़ रुपए की जरूरत है, जबकि अब तक सिर्फ दो हजार करोड़ ही मिले हैं। यही नहीं बजट में भी सिर्फ नौ हजार करोड़ का ही प्रावधान किया गया है। दूसरी ओर सरकार कोयले की उधारी भी नहीं चुका पा रही है। यह लगातार बढ़ रही है। मौजूदा स्थिति में सरकार को कोयले के लिए सात सौ करोड़ रुपए से अधिक देना है।
उपभोक्ताओं पर बढ़ सकता है भार
उल्लेखनीय है कि बिजली कंपनियों का भार अंततोगत्वा उपभोक्ताओं पर ही पड़ने वाला है। हालांकि वर्तमान कोरोना संक्रमण की विकट स्थिति में सरकार के लिए राजस्व जुटा पाना मुश्किल हो रहा है। यही वजह है कि उपभोक्ताओं की जेब पर ही यह बोझ पड़ने वाला है हालांकि बिजली कंपनियों के अधिकारियों की मानें तो अभी कोरोना महामारी की वजह से कुछ परेशानी जरूर है लेकिन इसे दूर कर लिया जाएगा। राशि का इंतजाम किया जा रहा है। लोगों की सब्सिडी पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
परेशानी का सबब बनी सस्ती बिजली
दरअसल प्रदेश सरकार के लिए सस्ती बिजली परेशानी का सबब बनी हुई है। एक ओर जहां सरकार को पिछले वित्तीय सत्र तक सब्सिडी के रूप में करीब अट्ठारह हजाए करोड़ बिजली कंपनियों को देना था। वहीं अब इस साल में यह राशि बढ़कर इक्कीस हजार करोड़ से अधिक की है। इसमें सबसे ज्यादा सब्सिडी किसानों को दी जाने वाली सस्ती बिजली की है। इसके अलावा 100 रु. प्रति यूनिट और उद्योगों को विभिन्न प्रकार की छूट भी इसमें शामिल है।
अरबों की हुई कोयला उधारी
प्रदेश सरकार को कोयला खरीदी के बदले में अरबों रुपए की उधारी चुकानी है। पिछले साल ही कोरोना काल में सरकार के ऊपर कोयले की 850 करोड रुपए की उधारी हो गई थी। वहीं इस साल भी 700 करोड़ की उधारी हो चुकी है। यह राशि कोयला खरीदने के बदले में दी जाना है।