मित्र’। सब ठीक तो है न? कोई उलझन तो नही? आप नजर तो आ रहे हो…पर ‘नज़ारे’ नदारद है। जो आपकी आमद पर दिखाए, सजाए ओर जँचाये गए थे। इतनी गहरी चुप्पी? क्या हुआ। समझ से परे है शहर के। आपका तो काम ही ‘बोल वचन’ का रहा है, फिर इतना गहरा-लम्बा मौन? वो भी ‘ स्मार्ट सिटी ‘ में। ‘छक्का’ मारने वाले शहर में आप की बल्लेबाजी ‘ सिंगल रन ‘ चुराने तक क्यो सिमट गई? क्या चल रहा है आपके मानस में, आपके निगम में? क्या ‘सबका साथ-सबका विकास” का नारा बुलंद करने वालो का साथ नही मिल रहा है या और कोई बात? आपकी विद्वता, कार्यशैली और संगठन में निभाई भूमिका को देख आपका नया मिजाज शहर को हजम नही हो रहा। क्या आप भी अब तक ‘भोपाल’ को हजम नही हो पा रहे? क्या आपको लेकर” कॉकस ” की कसमसाहट कम नही हुई या हो पा रही है? या आपको नाकारा साबित करने का कोई अंदरखाने खेल तो नही चल रहा? बाले-बाले हो रहे बड़े फैसले क्या वाकई आपके संज्ञान में थे? नीलू पंजवानी, एमपीसीए ओर अब साइन बोर्ड पर टैक्स…!! सब आपकी रजामंदी ओर सलाह मशविरा से ही हो रहा है न? कि अब तक ‘ ब्यूरोक्रेसी ‘ की आंख में खटक ही रहे हो?
ये सारे सवाल रह रहकर शहर में गूंजने लगे है। कारण बन रहा है नगर निगम का ही कामकाज। सूत्र बता रहे है कि आपको ‘ मेडम ‘ का वैसा सहयोग नही मिल रहा, जैसा पूर्ववर्ती महापोर को ‘ साहब ‘ का मिला था। नीलू पंजवानी के जरिये भले ही शिकार प्रदेश की राजनीति के बड़े किरदार थे लेकिन कही आप भी तो निशाने पर नही थे? पुख़्ता खबर तो ये ही है कि आपको भी शहर में शोर मचा तब पता चला कि इंडस्ट्री हाउस के सामने निगम का बुलडोजर चल रहा है। वो भी एक ऐसे निर्माण पर जो मुकम्मल होने तक सबकी नजरों में था। निगम के अफ़सरो के ओर जिला प्रशासन के भी। कई नामचीन कम्पनियों ने ऑफ़िस भी बस खुलने वाले ही थे। वो कम्पनियां जिन्हें आप मोटा खर्च कर सम्मेलनों के जरिये मान मनुहार कर शहर में बुलाते हो। ” हिस्सा ” नही मिला तो तोड़ दिया मॉल का अगला हिस्सा। फिर किस्सा खत्म। अब न नीलू को लेकर कोई लाल पीला नीला हो रहा है न अब नीलू पर काली “स्याही” खर्च हो रही। आपने तो कर ली मन की लेकिन कारपोरेट जगत सहित सब तरफ एक दम गलत संदेश गया कि स्मार्ट सिटी इंदौर में ऐसा भी होता है। इस ‘ कृत्य ” के बाद सब आपकी तरफ देख रहे थे कि कुछ बोलेंगे कि आखिर ये कार्रवाई क्यो हुई?…पर आप मौन।
क्रिकेट का मसला तो ओर भी गम्भीर रहा। ऐसा तो हिंदुस्तान के किसी शहर में नही होता कि अंतरराष्ट्रीय मैच के पहले सम्बंधित राज्य के क्रिकेट एसोसिएशन से वसूली के तगादे लगे। और वो भी इन तरह। मैच शुरू होने के चंद घण्टे पहले। सदलबल। छापामार स्टाइल में। जोर जबरिया तरीके से। बगेर शहर की इज्ज़त ओर क्रिकेट की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए। इसकी खबर थी क्या आपको? एमपीसीए को ‘सबक’ सिखाने का ‘ भागीरथी’ फैसला आपका था क्या? आपको जानने और समझने वालों का कहना है कि इस तरह की कार्यशैली न तो आपकी है और न ऐसी कार्यपद्वति के पक्षधर रहते है। तो फिर वसूली वाली मेडम के तो इतने कलेजे हो नही सकते कि वो एमपीसीए जैसी संस्था के दफ्तर की कुर्सी पर जाकर जम जाए कि लेकर ही जाएंगे बकाया। ऐसी संस्था जिससे शहर के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय और मोदीजी के प्रिय ज्योतिरादित्य सिंधिया जुड़े हो। दोनो नेताओ की तो प्रतिष्ठा जुड़ी है इस संस्था से ओर फिर शहर की भी तो प्रतिष्ठा थी इस मैच को लेकर देशभर में। फिर भी ‘ ‘कांड’ हो गया। ….और आप मौन।
हम तो ये भी देख रहे है कि आप प्रोटोकॉल से भी परे किये जा रहे है। हालिया पंतप्रधान का दौरा तो इसका साक्षत गवाह बना। राज्य शासन की तरफ से जरूर नरोत्तम जी अहम थे लेकिन स्थानीय स्तर पर तो महापौर ही प्रोटोकॉल का तहत अहम रहते है। पर आपसे पहले तो शहर के एक हारे हुए विधायक ने मोदी जी से मुलाकात कर ली। फिर एक दो वरिष्ठ नेताओ ने। फिर आपकी बारी आई। ऐसा क्यो ओर कैसे हो गया? आपके साथ हम भी समझ नही पाये। वरिष्ठ नेता अगर है भी तो वो आपके संगठन या पार्टी के हिसाब से। सरकार और प्रोटोकॉल के हिसाब तो किसी भी शहर का महापौर ही अगुवाकर होता है। चाहे प्रधानमंत्री आये या राष्ट्रपति।
ये ही नही, विभिन्न मंचो पर तो आप धीरे धीरे पिछली कतार में खिसकते जा रहे है। फोटो बताते है कि सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी आप किसी चिंतन मन्थन में लगे है। सफाईकर्मियों वाला जो आयोजन केलाशजी के सोलह आने सच बोलवचन से चर्चा में आया, वो भी आपका आयोजन था। लेक़िन आपकी गर्मजोशी नदारद थी। रही सही कसर कैलाश विजयवर्गीय की साफगोई ने पूरी कर दी जो इंदौर से लेकर भोपाल तक हजम नही हुई। सच को पचा नही पा सकने का “राजधानी” का “अजीर्ण” ही तो कही इन सब परेशानियों का कारण तो नही न? जहा आप ‘ वेट एंड वाच ‘ है।
…या फिर आप भी अभी ‘ वेट एंड वाच’ की नीति पर रणनीतिक रूप से काम कर रहे है। जितना हम आपको जानते है, उस हिसाब से आप इतनी आसानी से ‘शिकार’ नही हो सकते। भले ही आपका कोई बड़ा राजनीतिक गॉडफादर नही लेकिन संगठन के ” शीर्ष ” के तो आप परम शिष्य है। इसलिए या तो आप भी अभी सबको देख भांप रहे है। सारे ‘ घल्लूघारे’ को समझ रहे है। नगर निगम की कारगुजारियों ओर कारस्तानियों को जान समझ रहे है। बाहरी ‘ इशारों ‘ से अब तक चल रहे निगम को नोटिस में ले रहे है। हालांकि आप निगम के हर ‘काले-पीले” को जानते है लेकिन ‘भौपाल-इंदौर’ के मन के काले को भी समझ रहे है क्या? कैसे समझेंगे? या समझ गए है इसलिए रफ़्तार को गति देने की बजाय न्यूट्रल कर लिया है। इसलिए अभी एक एक रन लेकर स्कोर बोर्ड को गतिमान बना रहे है ओर ‘ पिच’ को ठोक बजाकर खेल रहे है। अनुकूल स्थिति के बाद फिर चौके छक्के से बड़ा स्कोर बनाएंगे। हम सब तो ये आखरी पैरे को ही उम्मीद मानकर आपके भरोसे बेठे हुए है क्योकि शहर ने ‘मित्र’ मानकर ‘ पुष्यमित्र’ का चयन किया है। इसलिए ही…ये एक पाती… शहर हित मे..। आप तो कुछ बोलेंगे नही…!!