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राजस्थान:चुनाव के दो महीने पहले प्रत्याशी घोषित करने की नई रणनीति

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राजस्थान में कांग्रेस काफ़ी एग्रेसिव चल रही है। यही हाल रहा तो हर पाँच साल में सत्ता बदलने की राजस्थानी परम्परा के बावजूद भाजपा को काफ़ी परेशानी हो सकती है। अगर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगे नहीं किया गया तो शायद भाजपा की यह परेशानी दुगनी हो सकती है।

इस बार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कुछ ऐसा करने जा रहे हैं जो कांग्रेस के इतिहास में कभी नहीं हुआ। उन्होंने आलाकमान से साफ़ कह दिया है कि इस बार राजस्थान में चुनाव के दो महीने पहले कम से कम सौ प्रत्याशी घोषित कर देने चाहिए। घोषित न भी करें तो कम से कम ये तो कर ही लें कि इन सौ प्रत्याशियों को कह दिया जाए कि चुनाव आपको ही लड़ना है ताकि वे अपने क्षेत्रों में जाकर तैयारी शुरू कर सकें।

अशोक गहलोत यह अच्छी तरह जानते हैं कि यह चुनाव उनके लिए आख़िरी हो सकता है।

राजस्थान में विधानसभा की कुल दो सौ सीटें हैं। बहुमत के लिए 101 सीटें जीतनी होती हैं। गहलोत यह पक्का करना चाहते हैं कि दो महीने पहले प्रत्याशी घोषित कर बहुमत लायक़ सीटें तो पक्की कर ही लेनी चाहिए। गहलोत यह अच्छी तरह जानते हैं कि यह चुनाव उनके लिए आख़िरी हो सकता है क्योंकि पाँच साल बाद हो सकता है नई पीढ़ी आए। ऐसे में इस बार वे अपना पूरा राजनीतिक अनुभव और ताक़त, चुनाव में झोंक देने का मन बना चुके हैं।

पार्टी प्रभारी रंधावा से भी उन्होंने कहा है कि प्रत्याशी चयन को लेकर दिल्ली में जो लम्बी- लम्बी बैठकों का दौर चलता रहता है, वह अब बंद होना चाहिए। ऐन वक्त पर प्रत्याशी घोषित करने से कई परेशानियाँ आती हैं। असंतुष्टों को संभालना, बाग़ियों को पटरी पर लाना, घोषित प्रत्याशी के पक्ष में माहौल तैयार करना, इन सब में काफ़ी समय खर्च होता है, इसलिए दो महीने पहले प्रत्याशियों की घोषणा की रणनीति रामबाण साबित हो सकती है।

पिछले कई चुनावों में तो कांग्रेस के ये हाल भी रहे हैं कि नामांकन दाखिल करने की आख़िरी तारीख़ को भी प्रत्याशियों की घोषणा हुई है। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि प्रत्याशियों की घोषणा हुई ही नहीं, दो लोगों से पर्चे भरवा दिए गए और फिर नाम वापसी के दिन किसी एक से पर्चा उठवा लिया गया। फिर केवल कांग्रेस ही क्यों, भाजपा और अन्य पार्टियों के भी प्रत्याशी घोषणा के मामले में वर्षों से यही हाल रहे हैं।

अगर सभी पार्टियाँ दो महीने पहले चुनाव प्रत्याशियों की घोषणा करने लगें तो यह एक तरह का चुनाव सुधार ही माना जाएगा। चुनाव सुधार इसलिए कि ऐसा होता है तो मतदाता भी अपने प्रत्याशी या प्रतिनिधि को अच्छी तरह से जान पाएँगे।

देखे- परखे लोगों के बारे में फ़ैसला करने में मतदाता को भी सहूलियत होगी जो कि उनके भविष्य के लिए अच्छा होगा। बहरहाल, अन्य पार्टियों में जो भी हो दो महीने पहले प्रत्याशियों की घोषणा करने का फ़ॉर्मूला अगर गहलोत लागू करवा पाए तो यह उनके खुद के और कांग्रेस पार्टी के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा।

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