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केंद्र और 6 राज्यों को NHRC का नोटिस,सरकार ने रोक लगा रखी है फिर भी मंदिरों में देवदासी क्यों बन रहीं महिलाएं

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग यानी NHRC ने दैनिक भास्कर की खबर ‘देवता से शादी कराकर यौन शोषण- प्रेग्नेंट होते ही छोड़ देते हैं, भीख मांगने को मजबूर खास मंदिरों की देवदासियां’ पर बड़ा एक्शन लिया है। आयोग ने दक्षिण भारत के 6 राज्यों समेत केंद्र सरकार के दो मंत्रालयों को नोटिस भेजा है।

इन राज्यों में कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र शामिल हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालयों को भी ये नोटिस भेजे गए हैं। भास्कर ने यह खबर पंथ सीरीज के तहत शुक्रवार को पब्लिश की थी।

NHRC के डिप्टी डायरेक्टर (मीडिया एंड कम्युनिकेशन) जेमिनी श्रीवास्तव ने बात करते हुए कहा कि भास्कर की खबर से हमें पता लगा कि देवदासियां किस स्थिति में हैं। आपने कमजोर और पिछड़े तबके की आवाज उठाई और सच को सामने लेकर आए। भास्कर जैसे जिम्मेदार संस्थान से ही ऐसी उम्मीद की जा सकती है। हमने आपकी खबर को आधार बनाकर 6 राज्यों को नोटिस भेजा है। इन राज्यों को 6 हफ्तों के भीतर जवाब देना है। उसके बाद मामला कोर्ट में लेकर जाएंगे।’

ये कर्नाटक के कोप्पल जिले की उल्लीम्मा हैं। बचपन में ही इनके माता पिता ने देवदासी बना दिया था। कहती हैं- ऊंची जाति के मर्द हमारे साथ जब तक चाहें संबंध बनाते हैं। एक बार हम प्रेग्नेंट हुए कि दोबारा वे अपनी शक्ल नहीं दिखाते।

अब उस खबर को भी पढ़ लीजिए जिस पर NHRC ने कार्रवाई की…
देवदासियों का गढ़ यानी बेंगलुरु से तकरीबन 400 किलोमीटर दूर स्थित उत्तरी कर्नाटक का जिला कोप्पल। पूर्णिमा की रात और चांद की रोशनी से नहाया हुलगेम्मा देवी का मंदिर भक्तों से खचाखच भरा है। हुदो, हुदो…श्लोक चारों ओर हवा में तैर रहे हैं। इस श्लोक का उच्चारण करने वाली हर तीसरी महिला के गले में सफेद और लाल मोतियों की माला यानी मणिमाला है। हाथों में हरे रंग की चूड़ियां और चांदी के पतले कंगन हैं।

वे दीये जला रही हैं। उनके हाथ में बांस की एक टोकरी है। जिसे यहां के लोग पडलगी कहते हैं। इसमें हल्दी-कुमकुम, अनाज, सब्जी, धूप, अगरबत्ती, सुपारी, पान पत्ता, केला और दक्षिणा रखी है। वे देवी मां को पडलगी में रखे सामान अर्पित कर रही हैं। मंदिर में मौजूद बाकी लोगों से इनकी पहचान अलग है। वहां मौजूद एक शख्स से पूछने पर पता चलता है कि ये महिलाएं देवदासी हैं। 

मानवाधिकार आयोग ने 3 पॉइंट्स पर मांगे हैं जवाब

सरकार ने रोक लगा रखी है, लेकिन कर्नाटक में ही इनकी संख्या 70 हजार से ज्यादा

सरकार ने इस पर रोक लगा रखी है, फिर ये प्रथा क्यों फल-फूल रही है?
विश्वभारती विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और देवदासी परंपरा पर रिसर्च कर चुके डॉ. अमित वर्मा कहते हैं कि इसका जारी रहना वैसा ही है जैसे दहेज का कानून बनने के बाद भी लोग दहेज लेते हैं। बलात्कार के खिलाफ कानून है, लेकिन आए दिन बलात्कार और छेड़खानी की घटनाएं होती हैं। कानून बनने के बाद भी बाल विवाह नहीं रुक रहा। यही हाल देवदासी प्रथा का भी है। इसकी जड़ें काफी गहरी हैं।

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