बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विपक्षी गठंबधन इंडिया के संयोजक बन सकते हैं। नाराज नीतीश को मनाने के लिए कांग्रेस गठबंधन की अगली बैठक में इस आशय का प्रस्ताव ला सकती है। दरअसल, कांग्रेस नीतीश की नाराजगी से ही नहीं, बल्कि बिहार में जदयू-राजद के बीच बढ़ती खटास से भी बेचैन है। डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव छह जनवरी से तय अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा को रद्द कर चुके हैं, जिसके लिए भी खटास को जिम्मेदार माना जा रहा है।
नीतीश ने बीते शुक्रवार को हुई पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में परोक्ष रूप से अपनी अनदेखी का आरोप लगाया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि बिहार जाति गणना और आरक्षण का दायरा बढ़ाने के उनके ऐतिहासिक फैसले का कांग्रेस कहीं जिक्र नहीं कर रही। इसी बैठक में नीतीश ने ललन सिंह से इस्तीफा लेकर संगठन की कमान खुद संभाल ली थी।
दरअसल, नीतीश ने बीते शुक्रवार को हुई पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में परोक्ष रूप से अपनी अनदेखी का आरोप लगाया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि बिहार जाति गणना और आरक्षण का दायरा बढ़ाने के उनके ऐतिहासिक फैसले का कांग्रेस कहीं जिक्र नहीं कर रही। इसी बैठक में नीतीश ने ललन सिंह से इस्तीफा लेकर संगठन की कमान खुद संभाल ली थी।
राजद-जदयू के बीच बढ़ी खटास
बिहार में आपसी विश्वास कम होने के कारण राजद और जदयू के रिश्ते की खाई और चौड़ी होती जा रही है। डिप्टी सीएम तेजस्वी ने बीते एक महीने में कई अहम अवसरों पर सीएम के साथ मंच साझा नहीं किया है। राजद नेताओं का कहना है कि पार्टी अब सरकार की सहयोगी है, बावजूद नीतीश उनकी पार्टी को कुशासन के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। दूसरी ओर, जदयू के नेताओं का मानना है कि तेजस्वी की ताजपोशी के लिए राजद की ओर से पार्टी को तोड़ने की कोशिश हुई है।
इसलिए खराब हुए रिश्ते
राजद-जदयू के संबंध सत्ता पर नियंत्रण के सवाल पर खराब हुए हैं। राजद चाहता है कि नीतीश जल्द से जल्द तेजस्वी की ताजपोशी की घोषणा करें। इसके उलट जदयू का कहना है कि नीतीश ने पहले ही कहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। जाहिर तौर पर नीतीश सीएम की कुर्सी को साथ रखकर राष्ट्रीय राजनीति में किस्मत आजमाना चाहते हैं।
नई करवट ले सकती है बिहार की राजनीति
जिस तरह से जदयू-राजद के बीच खटास बढ़ी है, उससे बिहार की राजनीति नई करवट ले सकती है। वर्तमान सियासी समीकरण की बात करें तो राजद को कांग्रेस और वाम दलों के साथ 114 विधायकों का समर्थन हासिल है। बहुमत के लिए उसे आठ विधायकों की जरूरत है। जदयू के पास 43 तो भाजपा के पास 74 विधायक हैं।