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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर:उपेक्षा को धता बताकरसफलता की मंजिल पर आगे बढ़ी है नारी !

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डॉ. श्रीगोपाल नारसन

यूं तो नारी को कभी दोयम दर्जे का माना जाता था।जो मां जन्म देती है ,वही पुत्र के लालच में कोख में पल रही कन्या को भ्रूण रूप में ही हत्या तक कराती रही है।इसी कारण हरियाणा जैसे राज्यो में लिंग असमानता हावी है।लेकिन कानून की सख्ती व समाज मे आई जागरूकता से परिस्थिति बदली है।अपनी विभिन्न उपेक्षाओं के बावजूद नारी ने जीना सीखा है और सफलता की मंजिल पर आगे बढ़ी है।

तभी तो फुलबासन बाई जो कभी दो वक़्त की रोटी को मोहताज थी, आज वह दो लाख महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें रोजगार देने की सफलता की इबादत लिख चुकी है। श्रीमती फूलबासन के नेतृत्व में दो लाख से भी अधिक महिलाओं के इस स्वरोजगार समूह ने शराब में डूबे पुरुषों को सुधारने के लिए भी आंदोलनात्मक अभियान चलाया हुआ है।वे सत्संग के माध्यम से महिलाओं को जोड़ने और उनके जीवन को सही दिशा देने में पिछले बीस साल से जुटी है। उनकी इस उपलब्धि के लिए गत वर्ष सोनी टीवी के धारावाहिक ‘कौन बनेगा करोड़पति में कर्मवीर के सम्मान से नवांजी गई छत्तीसगढ़ की पद्मश्री फूलबासन बाई यादव ने हॉट सीट पर बैठकर फ़िल्म अभिनेत्री रेणुका शहाणे की मदद से पचास लाख रुपये जीते थे। फुलबासन अपनी संस्था ‘मां बम्लेश्वरी जनहित समिति’ के जरिए समाज सेवा करती हैं। 52 वर्ष की फूलबासन यादव छत्तीसगढ़ की आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी महिलाओं के विकास के लिए काम कर रही हैं।स्वयं आत्मनिर्भर बनने व दुसरो को बनाने के लिए फूलबासन का गरीबी से संघर्ष और दूसरों को सशक्त बनाने का योगदान काफी प्रेरणादायक है।
इसी तरह 88 वर्षीया निशानेबाज दादी प्रकाशी ने कभी अंग्रेजी की पढ़ाई नही की, लेकिन फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है।न बचपन मे न कभी जवानी में ,उसने कभी बन्दूक को हाथ नही लगाया और न ही कभी तीर कमान चलाई लेकिन उसका निशाना ऐसा है जो हमेशा सटीक बैठता है। तभी तो प्रकाशी को दुनिया भर के लोग शूटर दादी या फिर रिवॉल्वर दादी के नाम से जानते और पहचानते है। पिछले साल ह्रदयघात को मात देकर स्वस्थ हुई प्रकाशी दादी ने कहा कि बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ ही नहीं बेटी खिलाओ भी जरूरी है।यानि बेटियो को खेल के क्षेत्र में भी दो दो हाथ आजमाने चाहिए।उन्होंने चार के बजाए छ अक्षरों का बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ ,बेटी खिलाओ का नारा उदघोषित किया।उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के गांव जोहड़ी गांव की रहने वाली दादी प्रकाशी निशानेबाजी में अनेक प्रतियोगिता जीत चुकी हैं तथा निशानेबाजी के लिए देश विदेश की यात्राएं कर चुकी है।इतना ही नहीं, जिस उम्र में बुजुर्ग महिलाएं परमात्मा की याद के लिए पूजा,पाठ भजन आदि हेतु मंदिरों का रुख करती हैं। उस उम्र में प्रकाशी तोमर ने शूटिंग रेंज जाना शुरु किया था। शूटिंग में ख्याति प्राप्त कर चुकी प्रकाशी तोमर देश विदेश में शूटर दादी या फिर रिवॉल्वर दादी के नाम से मशहूर हो चुकी है। निशानेबाजी में प्रकाशी देवी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल और ट्रॉफी झटक चुकी हैं। प्रकाशी देवी को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा नारी शक्ति अवॉर्ड भी दिया जा चुका है। इसके साथ ही महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा आइकन लेडी अवार्ड से सम्मानित किया गया है।वही दुनिया मे सर्वाधिक स्थिर मन की मल्लिका रही ब्रह्माकुमारी दादी जानकी की ईश्वरीय साधना इस कदर थी कि उनके और परमात्मा के बीच मे कभी कोई तीसरा नही रहा। वे हमेशा परमात्मा की याद में लीन रहती और परमात्मा से राजयोग लगाकर बतियाती रहती थी। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की मुख्य प्रशासिका रही दादी जानकी ने 104 वर्ष की आयु तक अपना लौकिक जीवन जिया। जब किसी बड़ी सभा मे वह बोलती तो कहती थी, इतनी हजारों की संख्या में मेरे मीठे- मीठे भाई बहनों को देखकर बहुत खुशी होती है। वे सबसे पहले सभी को तीन बार ॐ शांति बुलवाती थी।
दादी जानकी ने कभी अपने पास कोई पर्स नहीं रखा,परन्तु वे आध्यात्मिक दृष्टि से विश्व की सबसे धनी नारी शक्ति रही । शिव बाबा ने खुशी, विश्वास और दुआओं से उनका दामन हमेशा भरकर रखा। वे कहती थी, दुआयें हमारे जीवन का श्रंगार हैं। उन्होंने जीवनभर तीन बातों- सच्चाई, सफाई और सादगी का पालन किया। यही तीन बातें उनके जीवन का आधार, उनकी पूंजी और उनकी शक्ति रही। उन्हें पल- पल महसूस होता था कि शिव बाबा का साथ है और उनसे बाते कर रहा है।दादी जानकी अपने जीवन का अनुभव सुनाया करती थी कि परमात्मा पल पल उनके साथ रहता है और उन्हें सदा परमात्मा की मदद का अनुभव होता है। क्योंकि उन्हें मन- वचन- संकल्प और कर्म में एक परमात्मा के सिवाए और कुछ याद ही नहीं रहता । वे कहा करती थी कि सभी खुश रहें, मस्त रहें और सदा परमात्मा के साथ जीवन में आगे बढ़ते रहे। उनका कहना था कि ईश्वर की मदद, ईश्वर का साथ और ईश्वर को अपना बना लेना ही जीवन सफल करना है। जितना हो ,उतना साइलेंस का अभ्यास बढ़ाओ, क्योंकि साइलेंस की पावर सबसे बड़ी पॉवर है। इसी तरह सी. वनमती केरल के एक गरीब परिवार में पैदा हुई । किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन यह लड़की भारतीय प्रशासनिक सेवा यानि आईएएस अधिकारी बनेगी। वनमती के पिता किराये की कार पर ड्राईवरी करके किसी तरह से घर चलाते थे।इतनी कम आमदनी में आईएसएस बनने की सोचना और उसके लिए संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओ में सफ़ल होना असंभव सा लगता था, लेकिन वनमती के कड़े परिश्रम ने उसे इस मंजिल तक पहुंचाया।भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी वनमती को प्रेरित करने वाली छात्र जीवन मे दो बाते रही । पहली यह कि उनके गृहनगर में जिला मजिस्ट्रेट एक महिला थीं, जिन्हें सभी सम्मान देते थे और दूसरी गंगा यमुना सरस्वती नामक एक सीरियल में, नायक एक महिला आईएएस अधिकारी का किरदार उन्हें बहुत भाया था। वनमती इन्ही दो बातों से प्रेरित हुईं और फिर अपनी मंजिल तय करने के लिए आगे बढ़ गईं।इसके लिए वनमती को स्कूल जाने के साथ-साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाना पड़ता था। वे आजीविका का साधन बनी अपनी भैंसों को चराने के लिए चरागाहों में जाती थी,उनके लिए खिलाने हेतु चारा जंगल से काटकर घर भी लाना पड़ता था। वनमती ने जब 12वीं पास की तो रिश्तेदारों ने शादी के लिए परिवार पर दबाव डालना शुरू कर दिया, लेकिन आईएएस बनने का सपना लिए वनमती बगावत पर उतर आई और शादी करने से साफ इनकार कर दिया। अच्छी बात यह रही कि इस दौरान परिवार का समर्थन भी वनमती के साथ बना रहा।वनमती का परिवार हालांकि आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं था, लेकिन परिवार हमेशा उसके साथ सहयोगी बनकर रहा और उन्हें कॉपी किताबें जैसे पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराता रहा। वनमती को अपने परिवार से अच्छा समर्थन मिलने और उनके माता-पिता के वनमती के हित को सर्वपरि रखकर लिए गए फैसले से वनमती की राह आसान हो गई थी। परिवार ने वनमति को आगे की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया और 12 वीं कक्षा पूरी करने के बाद लड़की की शादी करने की परंपरा को बंद करने में अग्रणी भूमिका निभाई।स्नातक करने के बाद वनमती ने कंप्यूटर एप्लीकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन का कोर्स पूरा किया। उन्होंने जेब खर्चे के लिए एक निजी बैंक में नौकरी भी की। इसके बाद वनमती सन 2015 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में शामिल हुई। इस परीक्षा में उनकी सारी मेहनत, पसीना और आंसू उस समय सब कारगर हो गए,जब इस परीक्षा में वनमती सफल हो गई।
यानि जब से जागरूकता आई है तब से अपने अधिकारों को प्राप्त करने और उत्पीड़न व शोषण के विरूद्ध आवाज़ उठाने में नारी शक्ति पहले से कही ज्यादा सक्षम हुई है।तभी तो घर मे शौचालय नही है तो बनवाओ, तभी होगी शादी,शादी के लिए दहेज की शर्त न मानने और स्वयं दहेजलोभी दूल्हे को ठुकराने का साहस दिखाने में नारी ने स्वयं को तैयार किया है ,रोज शराब पीकर घर आने वाले पति के हाथों पीटने के बजाए पति को छोड़ अकेले दम पर सिर उठाकर जीने का संकल्प लेना शुरू कर दिया है,जनप्रतिनिधि चुने जाने पर अपने दायित्व में पति या अन्य परिजनों की दखलंदाजी स्वीकार न करने जैसे अनेक कदम उठाये है आज की नारी ने,जो आधी दुनिया के हित मे अच्छा संकेत है।शिक्षा से लेकर स्वयं के पैरों पर खड़े होने तक मे आज की नारी स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रही है।वह भी तब जब आज भी नारी न घर में सुरक्षित है और न घर से बाहर । नारी को भोग की वस्तु मानने वालों में आम समाज के लोग ही नही सभ्रान्त समाज के लोग भी शामिल है। जिस आशाराम को दुनिया बापू कहकर सम्मान देती रही वही बापू नारी की अस्मितता को तार तार करने वाले व्याभिचारी निकले। इसी तरह एक न्यायाधीश द्वारा प्रशिक्षु महिला अध्विक्ता का किया गया देह शोषण का मामला हो या एक सम्पादक द्वारा अपनी ही पत्रकार साथी के साथ किया गया बलात्कार का मामला हो, इन सब घटनाओं से देश भर में नारी के असुरक्षित होने का संदेश गया है । जब अभिजात्य कहे जाने वाले समाज में ही नारी की आबरू सुरक्षित नही है तो फिर नारी आखिर कहा सुरक्षित होगी।
देेेश में शायद ही ऐसा कोई गांव -शहर या बस्ती हो ,जहां नारी स्वयं को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस कर सके। वह भी तब जब नारी के बिना समाज की कल्पना नही की जा सकती।पुरूष प्रधान कहे जाने वाले इस समाज में नारी देवी के रूप में पुजनीय कही जाती है। जब नारी को सम्मान देने की बारी आती है तो लोगो का पुरूषोत्व जाग उठता है और नारी फिर भोग्या समझ ली जाती है। देश में रानी लक्ष्मीबाई जैसी अनेक ऐसी विरांगनाएं हुई हैं, जिन्होंने राष्टभक्ति और बहादुरी का इतिहास रचा तथा नारी को आत्मस्वाभिमान के सिहासंन पर बैठाया। वहीं नारी को ममता की मूरत बताते हुए उसे कोमल हृदय भी माना जाता है।लेकिन फिर भी नारी का सम्मान और उसका अस्तित्व खतरे में है।
नारी को या तो कन्या भ्रूण हत्या के रूप में जन्म लेने से पहले ही समाप्त कर दिया जाता है या फिर उसे दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है। हद तो यह है कि नारी को जन्म लेने से पहले ही मार डालने और अगर जिंदा बच जाए तो विवाह होने पर दहेज के लिए प्रताडित करने में अधिकतर नारियों की भूमिका रहती है। हालांकि कहीं कहीं पुरूष भी पति देवर जेठ व ससुर के रूप में नारी को प्रताडित करने से बाज नहीं आते। देश में कन्या भू्रण हत्याओं के आंकडे दिल दहलाने वाले हैं। सन 2001 से 2018 तक प्रतिदिन लगभग ढाई हजार तक कन्या भ्रण हत्याएं हुई है। जबकि हकीकत इससे भी कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है, क्योंकि निजी अस्पतालों और घरों में की जा रही कन्या भ्रूण हत्याएं इससे कहीं ज्यादा है। इसी कारण पुरूषों की तुलना में नारी की संख्या लगातार घट रही है। हरियाणा में महिलाओं के साथ रेप और मर्डर को लेकर जिस तरह से कई वारदात हुईं, उसने हरियाणा के साथ-साथ पूरे देश को शर्मसार कर दिया है।हरियाणा में लिंगानुपात वैसे ही पहले से कम है।ऊपर से महिलाओं के साथ ऐसी दरिंदगी। कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाने के साथ-साथ लोगों को भी सोचने पर मजबूर कर रहा है।हरियाणा ही नहीं राजस्थान में भी हालात कुछ अच्छे नही है।ब्लात्कार, घरेलू हिंसा, दहेज के कारण मौत और जबरदस्ती शादी के मामले इन दोनों राज्यों में काफी देखने को मिल रहे हैं।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखकर एकबारगी ऐसा लगता है कि इन राज्यों में जैसे लड़कियों का होना आज भी किसी गुनाह से कम नही है।भ्रूण हत्या और कम लिंगानुपात के लिए बदनाम हरियाणा में महिलाओं की स्थिति आज भी अच्छी नहीं है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, 2016 के आंकड़ों पर गौर करें तो उस साल राज्य में 1187 महिलाएं बलात्कार का शिकार हुईं।वहीं 3314 महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा।इस राज्य में शादी के लिए 821 महिलाओं का अपहरण किया गया, जबकि दहेज के कारण 260 महिलाओं को अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ी।महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा और अत्याचार के मामले में राजस्थान ने बाकी राज्यों को काफी पीछे छोड़ दिया है।नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, राजस्थान में महिलाओं के साथ रेप की 3656 वारदात हुईं। जबकि घरेलू हिंसा के 13,814 मामले दर्ज किए गए।जबरदस्ती शादी के लिए 1979 महिलाओं को अगवा किया गया, जबकि दहेज के कारण इस राज्य में 462 महिलाओं की मौत हुई।
वहीं सन 1901 में 1000 पुरूषों के सापेक्ष महिलाओं की संख्या 972 थी, जबकि वर्ष 1991 में घटकर 927 तक पहुंच गई। हालांकि 2001 में यह संख्या प्रति 1000 पुरूष के सापेक्ष थोडी बढोत्तरी के बाद 933 हो गई है। लेकिन मौजूदा समय में भी यह आंकडा पुरूषों की संख्या में काफी नीचे है। जिससे समाज में स्त्री पुरूष की संख्या का संतुलन बिगड गया है। संतुलन बनाए रखने के लिए महिला पुरूष दोनों को लगभग बराबरी पर आना होगा। गांव की अपेक्षा शहरों में महिलाओं पर संकट कुछ ज्यादा हावी है, तभी तो गांव में प्रति 1000 पुरूष की सापेक्ष महिलाओं की संख्या 939 है, जबकि शहर में प्रति 1000 पुरूषों के सापेक्ष महिला संख्या घटकर 894 पर पहुंच गई है, जो नारी को दुनिया में न आने देने की नाजायज कोशिशों का प्रमाण है।
इसी तरह महिला पर अत्याचार के मामले भी लगातार बढ रहे है।
पिछले एक साल के भीतर नारी अत्याचारों में 10 प्रतिशत से अधिक की बढोत्तरी हुई है। एक साल के दौरान देशभर में महिला उत्पीडन की 81 हजार 344 घटनाएं प्रकाश में आई है। महिला उत्पीडन की सबसे ज्यादा घटनाएं 22 प्रतिशत से ज्यादा त्रिपुरा में हुई, वहीं पश्चिमी बंगाल में भी महिला शोषण के 16 हजार 112 मामले सामने आए हैं, जिससे इन राज्यों की महिला उत्पीड़न की हकीकत का पता चलता है। उत्तर प्रदेश में भी महिला उत्पीडन की घटनाएं बडे राज्यो में सबसे ज्यादा है।जिसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है,तभी नारी का अस्तित्व व सम्मान बच सकता है।
(लेखक सामाजिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)

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