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आदिवासियों पर बजरंग दल के हमले को लेकर आक्रोश

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ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपल (एआईयूएफडब्ल्यूपी) ने सिवनी जिले में आदिवासियों और वनाश्रितों पर क्रूर हमले की निंदा करते हुए धर्म और गोरक्षा की आड़ में आम नागरिकों पर बार-बार होनेवाले हमलों की ओर ध्यान आकर्षित किया। एआईयूएफडब्ल्यूपी ने एक विज्ञप्ति जारी कर हिंदुत्ववादी समूहों द्वारा आदिवासी, दलितों और अल्पसंख्यक समुदाय पर हालिया हमलों की तीखी आलोचना की।

प्रेस वक्तव्य में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में हाल ही में दो आदिवासियों की भीषण हत्या और खरगोन में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हिंसा लक्षित थी। 2 मई, 2022 की रात को मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में लगभग 20 तथाकथित गौ रक्षकों ने आदिवासी पुरुषों पर ‘गाय को मारने’ का आरोप लगाते हुए एक घर में घुसकर बेरहमी से पीटा। जानकारी के मुताबिक दोनों युवक इतने गंभीर रूप से घायल हो गए कि अस्पताल पहुँचने से पहले ही उनकी मौत हो गयी।

प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार 6 मई 2022 को मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों के कई आदिवासी संगठनों ने सिवनी जिले में आदिवासियों पर हुए बर्बर हमले का विरोध किया और उक्त मामले की त्वरित जाँच की माँग की। बड़वानी और खरगोन जिले के अन्य गाँवों के आदिवासी संगठनों ने आदिवासियों, दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा की और माँग की, कि इस तरह की असंवैधानिक गतिविधियों को अंजाम देनेवाले समूहों पर प्रतिबंध लगाया जाए।

आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करते हुए एआईयूएफडब्ल्यूपी ने कहा, “वे कहते हैं कि हम आदिवासी अपने मवेशियों को परिवार के सदस्यों के रूप में मानते हैं, लेकिन हम गायों की तथाकथित सुरक्षा के लिए मनुष्यों के साथ किए जानेवाले व्यवहार की कड़ी निंदा करते हैं। जिन्होंने कभी गाय नहीं पाली, जो गाय की देखभाल करना भी नहीं जानते, वे अब खुद को ‘गोरक्षक’ कह रहे हैं और इंसानों को मार रहे हैं। पेन और पेंसिल देखने वाले बच्चों को हथियारों से लैस किया जा रहा है।”

एआईयूएफडब्ल्यूपी ने अपने बयान में इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि यह पहली बार नहीं है, जब आदिवासियों पर इस तरह से हमला किया गया है। उनका कहना है, कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों पर क्रूर हमलों के ऐसे कई मामले सामने आए हैं। पिछले एक साल में ही सितंबर 2021 में बिस्तान (खरगोन) और ओंकारेश्वर (खंडवा) में पुलिस की गिरफ्तारी के दौरान बिसन भील और किशन निहाल नाम के दो आदिवासी मारे गए थे। वे कहते हैं, कि जाँच के दौरान उनकी मौत के लिए जिम्मेदार पाए गए किसी भी पुलिस अधिकारी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। मई 2021 में नेमावर में खुद को ‘हिंदू केसरिया संगठन’ का नेता बतानेवाले सुरेंद्र राजपूत ने एक पूरे कोरकू आदिवासी परिवार की हत्या कर दी थी। अगस्त 2021 में नीमच में कन्हैया भील नाम के एक गरीब आदिवासी मजदूर को सड़कों पर घसीटा गया और दिनदहाड़े पीट-पीटकर मार डाला गया।

एआईयूएफडब्ल्यूपी इस तरह की भीषण घटनाओं की कड़ी निंदा करता है, और मध्यप्रदेश में आदिवासियों पर हुए हमलों के लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराता है। उनका दावा है कि हिंदुत्व की आड़ में इस तरह के कृत्यों को अंजाम देकर, वे उन लोगों का नरसंहार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, जिन्होंने उन्हें वोट दिया और सत्ता में लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

खरगोन में रमजान के पवित्र अवसर के दौरान बुलडोजर के जरिए अल्पसंख्यकों के घरों के लक्षित विध्वंस के संबंध में, AIUFWP ने बताया कि कैसे मुसलमानों को चुनिंदा रूप से गिरफ्तार किया गया था, कैसे एक व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया था, फिर भी उस मामले में एक भी प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी थी। उन्होंने प्रकाश में लाया कि कैसे पुलिस ने मुस्लिम समुदाय को धमकी दी और उन्हें उनके द्वारा दर्ज ऑनलाइन प्राथमिकी वापस लेने के लिए मजबूर किया।

एआईयूएफडब्ल्यूपी का यह भी दावा है कि पुलिस थानों को भाजपा के गुंडों ने अपने कब्जे में ले लिया ताकि कोई उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत न कर सके। उन्होंने कहा, “यह सुनिश्चित करने के बजाय कि भारत के नागरिकों को न्याय दिया जाता है, सत्तारूढ़ राजनीतिक दल उनके साथ गुलामों से भी बदतर व्यवहार कर रहा है। बजरंग दल जैसे भाजपा और आरएसएस से जुड़े संगठन बेलगाम और आक्रामक हो गए हैं। प्रभावित समूहों को संवैधानिक अधिकारों को बनाए रखने और इन असामाजिक तत्त्वों का विरोध करने के लिए एकसाथ आना चाहिए।”

AIUFWP के अनुसार आदिवासियों की माँग है, कि सरकार इस तरह की गुंडागर्दी पर सख्ती से रोक लगाए, इन असंवैधानिक समूहों को प्रतिबंधित करे, सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे और सम्मान के साथ जीने के उनके अधिकार पर जोर दे। AIUFWP आगे कहता है, “आदिवासी सभी समुदायों के पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों से जूझ रहे हैं। किसान कर्ज में डूब रहे हैं क्योंकि उन्हें अपनी कृषि उपज का सही दाम नहीं मिल पा रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में किसान मजदूर बन रहे हैं और देश भर के किसान बंधुआ मजदूरी में फँस रहे हैं। शिक्षा सुविधाओं में गिरावट आ रही है, और अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाएँ भी खराब हो रही हैं, जो मरीजों का ठीक से इलाज नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा में सुधार की बजाय लोगों पर उनके ही घरों में घुसकर हमले हो रहे हैं।

निमाड़ के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन में भाग लेनेवाले संगठनों में जाग्रत आदिवासी दलित समूह, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी छात्र समूह, एससी-एसटी-ओबीसी एकता मंच, आदिवासी मुक्ति समूह और कई अन्य शामिल थे।

(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)

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