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संकट के दौर से गुजर रही हैं छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के तौर पर उभरी पार्टियां

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रायपुर । छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के तौर पर उभरी पार्टियां संकट के दौर से गुजर रही हैं। इस लोकसभा चुनाव में भी भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा। इसके पहले साल 2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में तीसरे मोर्चे के तौर पर उभरी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़(जे) प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

2018 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़(जे) को पांच और बहुजन समाज पार्टी को दो सीट मिली थी मगर विधानसभा चुनाव 2023 में जोगी की पार्टी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी और अरविंद केजरीवाल की आप जैसी पार्टियां भी चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने में सफल नहीं हो पाईं। इन तीनों पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली। इसी के साथ अब लोकसभा चुनाव में भी तीसरे मोर्चे के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।

पार्टी वोट प्रतिशत

भाजपा 47.8

कांग्रेस 40.16

बसपा 4.54

सीपीआइ 6.8

सीपीएम 0.23

जेडीयू 0.04

सपा 0.04

निर्दलीय 3.85

चुनावी वर्ष 2009

भाजपा 45.27

कांग्रेस 45.27

बसपा 4.52

सीपीआइ 0.92

जीजीपी 0.7

निर्दलीय 9.84

चुनावी वर्ष 2014

भाजपा 49.7

कांग्रेस 39.1

बसपा 2.4

आप 1.2

जीजीपी 0.8

चुनावी वर्ष 2019

भाजपा 51.4

कांग्रेस 41.5

बसपा 2.3

जीजीपी 0.6

लोकसभा चुनाव में भी संकट में रही निर्दलीश् प्रत्याशियों की साख

लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों की साख हमेशा संकट में रही है। राज्य निर्माण के बाद लोकसभा चुनाव में यदि प्रदेश स्तर पर निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या पर बात करें तो वर्ष 2004 में 34, वर्ष 2009 में 96, वर्ष 2014 में 102, वर्ष 2014 में 211 निर्दलीय चुनाव लड़े। इसके बाद 2019 के चुनाव में 96 निर्दलीय प्रत्याशियों में 95 जमानत नहीं बचा पाए थे। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में दुर्ग सीट से निर्दलीय मैदान में उतरे ताराचंद साहू अपवाद स्वरूप हैं, जिन्होंने 28.96 फीसद मत हासिल किया था।

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