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पसमांदा केवल वोट बैंक नहीं, वह सामाजिक न्याय और मसावात की लड़ाई का एक हिस्सा

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पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने ‘बिहार जाति गणना 2022-23 और पसमांदा एजेंडा’ रपट जारी किया

बीते 27 फरवरी, 2024 को ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर ने नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में ‘बिहार जाति गणना 2022-23 और पसमांदा एजेंडा’ रपट जारी किया। इस रपट को जावेद अनवर ने तैयार किया है। अली अनवर ने इस मौके पर सात सूत्री पसमांदा एजेंडा प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस-भाजपा और एआईएमआईएम एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन में शामिल दलों को पसमांदा शब्द अपनी जुबान पर लाना होगा। इस मौके पर ऑल इंडिया पसमांदा महाज से जुड़े रमजान चौधरी, जावेद अनवर सहित अनेक गणमान्य उपस्थित थे।

केंद्र में सत्तासीन आरएसएस-भाजपा व ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि “पसमांदा महाज़ हर तरह की सांप्रदायिकता कट्टरता, तंगनजरी तथा धर्म और सियासत के घालमेल के खिलाफ है। हम आरएसएस-भाजपा और एआईएमआईएम जैसी सियासत को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं। हमारे पुरखे भी 1940 में 40 हजार की संख्या में दिल्ली के इंडिया गेट पर जिन्ना के दो कौमी नजरिया और सावरकर के हिंदू राष्ट्र के खिलाफ प्रदर्शन करने चले आए थे। पसमांदा महाज़ भी पिछले 25 वर्षों से इसी भावना के साथ काम कर रहा है।”

पूर्व राज्यसभा सांसद ने कहा कि दलितों और अति पिछड़ों की तरह पसमांदा भी गरीब व उपेक्षित हैं। उनके एक हिस्से की हालत तो हिंदू दलितों से भी खराब है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल पसमांदा मुसलमानों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। विपक्षी दलों को भी पसमांदा शब्द से परहेज नहीं करते हुए भाजपा को जवाब देना चाहिए। मुस्लिम आबादी के 80 फीसदी हिस्से पर इस तरह चुप्पी साधे रखना बुद्धिमानी नहीं है। उन्होंने कहा कि पसमांदा शब्द जाति और धर्म से मुक्त है। यह उर्दू-फ़ारसी का शब्द है। विभिन्न धर्मों के दलित उपेक्षित और पिछड़े लोगों को जोड़ने वाला है। अगर विपक्षी दल भी पसमांदा शब्द को अपनी जुबान पर लाने लगें तो भाजपा द्वारा उनपर लगाया जा रहा मुस्लिम तुष्टिकरण का जुमला काफूर हो जायेगा। उन्होंने विपक्षी दलों से कहा कि वे वास्तविक रूप में पसमांदा-अतिपिछड़े हिंदू-मुस्लिम समाज को सत्ता-प्रशासन में वाजिब प्रतिनिधित्व दें और घोषणा-पत्रों में सभी धर्मों के बुनकर और दूसरी दस्तकार जातियों के मुद्दों को शामिल करें। 

अली अनवर ने कहा कि पसमांदा महाज की लड़ाई देश की एकता, तरक्की, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की रक्षा के लिए है। पसमांदा केवल वोट बैंक नहीं है, वह सामाजिक न्याय और मसावात (समता) की लड़ाई का एक हिस्सा है। उन्होंने आगे कहा कि “यह हमारा संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक दायित्व है कि उन्हें राजनीति की मुख्यधारा में लाकर सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलवाने का प्रयास करें। किसी पार्टी को समाज के किसी तबके को ‘टेकेन फॉर ग्रांटेड’ (हल्के में) नहीं लेना चाहिए। अगर कोई हमारे समाज को नजरअंदाज करेगा तो हम उसे भी अपने नजर से उतारना जानते हैं।” 

अली अनवर ने भाजपा शासित राज्यों में माॅब-लिंचिंग और सरकारी बुलडोजर के शिकार लोगों का सवाल उठाते हुए कहा कि पीड़ितों में 95 प्रतिशत पसमांदा समाज के ही हैं। उन्होंने मांग की कि इसके खिलाफ सख्त कानून बनाया जाए। मसलन, जिस जिले में इस तरह की घटना हो, उसके जिलाधिकारी और एसपी को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाय। उन्होंने मांग की कि दंगों में मारे जानेवाले लोगों के परिजनों को मुआवजा तथा परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाए। 

निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग करते हुए अली अनवर ने कहा कि सरकारी नौकरियों रोज-ब-रोज कम की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि मौजूदा नरेंद्र मोदी हुकूमत राष्ट्रीय परिसंपत्तियाें और प्राकृतिक संसाधनों को चंद कारपोरेट घरानों के हवाले कर रही है। उन्होंने विपक्षी दलों को एक साथ आने का आह्वान करते हुए कहा कि एक समय बैंकों तथा कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण के वक्त जैसा जनसमर्थन बना था, उससे बड़ा जनउभार खड़ा हो जाएगा।  

अली अनवर ने कहा कि मौजूदा केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर जाति जनगणना कराने से मना कर दिया है। उसने दलित मुसलमानों-ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दो बार लिखकर दे दिया है। उन्होंने कहा कि विपक्ष को सच्चर कमिटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफारिश के अनुसार एससी का कोटा बढ़ाकर उसमें दलित मुस्लिम-दलित ईसाइयों को शामिल करने की मांग करनी चाहिए। इसके अलावा मेवाती, बनगुर्जर, मदारी, संपेरा जैसे कई समुदायों को एसटी का दर्जा मिलना चाहिए। सच्चर कमिटी ने भी इस आशय की सिफारिश की है।  

अंत में अली अनवर ने कहा कि सेना में अग्निवीर योजना किसान मजदूरों के बेटों को स्थायी नौकरी से वंचित करने के लिए है। सीएए-एनआरसी कानून सभी धर्मों के पसमांदा तबकों से मतदान का अधिकार छीनने के लिए है। विपक्षी दलों को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी।

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