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हसदेव के जंगल को बचाने के लिए पर्यावरण से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी,सामाजिक कार्यकर्ता भी सामने आए

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 सरकार द्वारा हसदेव के जंगलों की पिछले 2 साल से लगातार कटाई की जा रही है। हसदेव(कोरबा)का जंगल छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा की सीमा से लगा है । केंद्र सरकार ने खदान की माइनिंग के लिए निलामी सुरू कर दी है। खदान की नीलामी होते ही खनन कंपनी ने अपना काम शुरु कर दिया. ग्रामीणों का आरोप है कि खदान के लिए पेड़ों की इतनी बली ले ली गई कि पूरा इलाका जंगल से मैदान में तब्दील हो गया।

1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है।वर्तमान में यहां परसा ईस्ट केते बासेन खदान के लिए कुल 1136 हेक्टेयर जंगल काटा जाना है। कहा जा रहा है कि इसमें से 137 हेक्टेयर जंगल के क्षेत्र को काटा जा चुका है। करीब एक दशक से कोयले के भंडार को बाहर निकलाने के लिए कंपनी के लोग हसदेव का सीना छलनी कर रहे हैं

. पेड़ों की कटाई किए जाने से हसदेव नदी के कैचमेंट एरिया पर भी इसका बड़ा असर पड़ेगा. हसदेव नदी पर निर्मित प्रदेश के सबसे ऊंचे मिनी माता बांगो बांध से बिलासपुर, जांजगीर-चाम्पा और कोरबा के किसानों को पानी मिलता है. जंगल मे हाथी समेत 25 से ज्यादा जंगली जीव रहते हैं. हसदेव जंगल करीब 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर में फैला है. हसदेव नदी का पानी जब स्टोर नहीं हो पाएगा तब इंसान और जंगली जीव दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे. हसदेव के जंगल को जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है. जंगल से सटे और आस पास के इलाकों में गोंड, लोहार, उरांव, पहाड़ी कोरवा जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. भूगोल के जानकारी इस इस जंगल को मध्य भारत का फेफड़ा भी मानते हैं. जंगल के कटने से पर्यावरण का संतुलन तो बिगड़ेगा ही 10 हजार लोगों पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा।

जंगल में रहने वाले हजारों आदिवासी परिवारों के जीवन पर संकट छा गया है । इस के खिलाफ पिछले दिनों से लगातार आंदोलन चल रहा है । दुखद बात है कि आंदोलन को बेरहमी से कुचला जा रहा है । हजारो परिवार आज सरकार के इस निर्णय से दहशत में है ।यह आदिवासी परिवार मूलरूप से वन उपज पर ही निर्भर है । ऐसे में यदि यह जंगल कटता है तो इन आदिवासी  परिवारों का जीवन संकट में आजाएगा ।पहले भी हमने देखा है की जहा माइंस निकलती है लोहा,कोयला,सोना,जैसे अन्य खनिज की खदाने है। उसका असल मालिक वहां का आदिवासी होना चाहिए। पर दुखद बात है की आज उड़ीसा,छत्तीसगड़,बंगाल में आदिवासी भूखों मरने पर विवश है ऐसे में यह भी यही होगा । इन कोयले की खदानों को अंबानी, अदानी को दे दिया गया है ।एक पूंजीपति को फायदा पहुंचाने के लिए हजारों आदिवासीयो का जीवन संकट में डाला जा रहा है ।

ग्रामीणों ने जब पेड़ों की कटाई के विरोध में आंदोलन किया तो उल्टे पुलिस बल तैनात कर दिया गया आज 

जंगल को बचाने के लिए । पर्यावरण से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी,सामाजिक कार्यकर्ता भी सामने आए हैं।

आप सभी नागरिकों और आमजन मानस से अपील ही है की इस मुहीम में साथ आए ।

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