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कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ को पीएम नरेंद्र मोदी ने अग्निवीर की ओर मोड़ दिया? 

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कुछ लोगों की सोच को क्या हो गया है? ऐसा भ्रम फैला रहे हैं कि सरकार पेंशन के पैसे बचाने के लिए इस योजना को लेकर आई है? मुझे ऐसे लोगों की सोच से शर्म आती है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं, कोई मुझे बताये, आज मोदी के शासनकाल में जो भर्ती होगा, क्या आज ही उसे पेंशन देना है? उसे पेंशन देने की नौबत तो 30 साल बाद आएगी, तब तक मोदी 105 साल का होगा।  क्या इसके लिए मोदी जैसा राजनीतिज्ञ है जो आज गाली खायेगा, क्या तर्क दे रहे हैं? लेकिन साथियों मेरे लिए दल नहीं, देश सर्वोपरि है। यह फैसला सेना ने लिया, जिसका हमने सम्मान किया है। हम राजनीति के लिए नहीं, राष्ट्रनीति के लिए काम करते हैं। राष्ट्र की सुरक्षा और शांति हमारे लिए सर्वोपरि है। जो लोग देश के युवाओं को गुमराह कर रहे हैं, उनका इतिहास साक्षी है कि उन्हें सैनिकों की कोई परवाह नहीं है। ये वही लोग हैं जिन्होंने एक मामूली रकम 500 करोड़ रूपये दिखाकर, वन रैंक वन पेंशन पर झूठ बोला था। हमारी सरकार है जिसने वन रैंक वन पेंशन लागू किया, पूर्व सैनिकों को सवा लाख करोड़ रूपये से ज्यादा दिए गये हैं।”

26 जुलाई को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी कारगिल विजय दिवस के अवसर पर लद्दाख में थे, जहां उन्होंने कारगिल युद्ध स्मारक, द्रास में आयोजित जवानों की सभा को संबोधित करते हुए सेना में पिछले 10 वर्षों के दौरान किये गये रिफार्म पर बोलते-बोलते अचानक से अपने भाषण को अग्निवीर के मुद्दे की ओर मोड़ दिया। अग्निवीर जैसे विवादास्पद मुद्दे पर ऐसे वक्त में बोलना न सिर्फ पूरी तरह से अनुचित था, बल्कि इसे एक तरह से सेना का सहारा लेकर देश में उठते सवालों पर चेंपी लगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।

लेकिन शायद प्रधानमंत्री मोदी की यह कोशिश कामयाब होने के बजाय एक नए विवादों में उलझ गई है। अपने भाषण में उन्होंने शुरुआत तो अच्छी की और जवानों की हौसला अफजाई की, लेकिन अपने आधे घंटे के वक्तव्य में अंतिम 14 मिनट उन्होंने अग्निवीर स्कीम को देश के लिए सर्वोत्तम बताने और पूर्व सरकारों को नीचा दिखाने से लेकर सेना के साथ धोखाधड़ी करने तक न जाने क्या-क्या कह डाला, जो एक सरकारी आयोजन और वह भी रक्षा क्षेत्र में देश के जवानों को संबोधित करने लायक तो कत्तई नहीं था।

अब आते हैं मुद्दे पर, कि पीएम मोदी ने अग्निवीर योजना के बचाव में क्या-क्या बातें रखीं, और अब जवाब में विपक्षी दलों, पूर्व सेना के अधिकारियों की ओर से क्या प्रतिक्रियाएं आ रही हैं:-

पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा, “दशकों से संसद से लेकर अनेक कमेटियों में सेना को युवा बनाने को लेकर चर्चाएं होती रहीं। भारतीय सेना की औसत आयु वैश्विक औसत से ज्यादा होना हमारी चिंता बढ़ाता रहा है, लेकिन इस चुनौती के समाधान की किसी ने भी इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। शायद लोगों की मानसिकता ही यह बन चुकी थी कि, सेना का मतलब नेताओं को सलाम करना, परेड करना भर है, जबकि हमारे लिए इसका मतलब 140 करोड़ लोगों की आस्था, उनकी शांति की गारंटी, देश की सीमाओं की सुरक्षा की गारंटी रही है।”

इसके बाद नरेंद्र मोदी ने कहा, “अग्निपथ का लक्ष्य सेना को युवा बनाना है, युद्ध के लिए निरंतर योग्य बनाये रखना है। दुर्भाग्य से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े इतने संवेदनशील विषय को कुछ लोगों ने राजनीति का विषय बना दिया है। कुछ लोग सेना के इस रिफार्म पर भी अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में झूठ की राजनीति कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जिन्होंने सेना में हजारों करोड़ के घोटाले करके हमारे सेना को कमजोर किया है, ये वही लोग हैं जो चाहते थे कि एयरफोर्स को आधुनिक फाइटर जेट न मिल पाए, तेजस  फाइटर प्लेन को डिब्बे में बंद करने की तैयारी कर ली थी, साथियों सच्चाई यह है कि अग्निपथ योजना से देश की ताकत बढ़ेगी। निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में भी अग्निवीर को प्राथमिकता दी जा रही है।”

पीएम मोदी ने आगे कहा, “कुछ लोगों की सोच को क्या हो गया है? ऐसा भ्रम फैला रहे हैं कि सरकार पेंशन के पैसे बचाने के लिए इस योजना को लेकर आई है? मुझे ऐसे लोगों की सोच से शर्म आती है। लेकिन मैं पूछना चाहता हूं, कोई मुझे बताये, आज मोदी के शासनकाल में जो भर्ती होगा, क्या आज ही उसे पेंशन देना है? उसे पेंशन देने की नौबत तो 30 साल बाद आएगी, तब तक मोदी 105 साल का होगा।  क्या इसके लिए मोदी जैसा राजनीतिज्ञ है जो आज गाली खायेगा, क्या तर्क दे रहे हैं? लेकिन साथियों मेरे लिए दल नहीं, देश सर्वोपरि है। यह फैसला सेना ने लिया, जिसका हमने सम्मान किया है। हम राजनीति के लिए नहीं, राष्ट्रनीति के लिए काम करते हैं। राष्ट्र की सुरक्षा और शांति हमारे लिए सर्वोपरि है। जो लोग देश के युवाओं को गुमराह कर रहे हैं, उनका इतिहास साक्षी है कि उन्हें सैनिकों की कोई परवाह नहीं है। ये वही लोग हैं जिन्होंने एक मामूली रकम 500 करोड़ रूपये दिखाकर, वन रैंक वन पेंशन पर झूठ बोला था। हमारी सरकार है जिसने वन रैंक वन पेंशन लागू किया, पूर्व सैनिकों को सवा लाख करोड़ रूपये से ज्यादा दिए गये हैं।”

पीएम मोदी के इस वक्तव्य से एक बात तो यह स्पष्ट हो जाती है कि मौजूदा सरकार अग्निवीर योजना पर पुनर्विचार नहीं करने जा रही है। 4 जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद अगले दिन ही एनडीए का प्रमुख सहयोगी दल जेडीयू की ओर से पहली मांग यही उठी थी कि अग्निवीर स्कीम पर पुनर्विचार किया जाये। यहां तक कि रक्षा मंत्री, राजनाथ सिंह तक ने कहा था कि यदि अग्निवीर योजना में कोई खामी सामने आती है तो हम उसे दुरुस्त करेंगे। स्वंय सेना के तीनों अंगों में भी आंतरिक सर्वेक्षण की बात की गई है। लेकिन कारगिल विजय दिवस के मौके पर नरेंद्र मोदी का बयान न सिर्फ इस मुद्दे को सिरे से ख़ारिज कर रहा है, बल्कि उल्टा यहां तक दावा किया जा रहा है कि यह बेहद अनोखी योजना है, जिससे देश की सुरक्षा और अभी चाक-चौबंद होने जा रही है। प्रधानमंत्री ने तो इसे सेना की योजना तक बताकर देश को सकते में डाल दिया है।

भारतीय सेना को युवा बनाने की आवश्यकता 

अग्निवीर के जरिये भारत सरकार सेना को अधिक युवा बनाना चाहती है। ऐसा माना जाता है कि भारतीय सेना में औसत आयु 32 वर्ष है, जो विश्व के सभी प्रमुख देशों की तुलना में अधिक है। ठीक बात है। यह भी कहा जा रहा है कि इसके लिए पूर्व कमेटियों में अनुशंसा भी की गई थी। लेकिन क्या इसे सिर्फ जवानों पर लागू करने के लिए सिफारिश की गई थी? क्या यह अनुशंसा की गई थी कि आर्मी, एयरफोर्स और नेवी में 4 वर्ष के लिए जवानों की भर्ती की जानी चाहिए? 

इस बारे में सेना के कई पूर्व अधिकारियों का कहना है कि इसे मुख्यतया ऑफिसर रैंक पर लागू किया जाना था, जिसे काफी हद लागू भी किया जा चुका है। भारतीय सेना में 13 लाख जवान हैं, और हर वर्ष कम से कम 60,000 सेवानिवृत्त होते हैं। आज सारी भर्तियां अग्निवीर स्कीम के तहत की जा रही हैं। इसमें मात्र एक चौथाई जवानों को ही रिटेन किया जाना है, शेष 45,000 जवानों को 4 वर्ष बाद निकाल दिया जायेगा, जो सेना के लिए बेहद घातक साबित हो सकता है। रक्षा विशेषज्ञों का साफ़ कहना है कि एक अग्निवीर को मात्र 6 माह की बेसिक ट्रेनिंग देकर मोर्चे पर भेजना कहीं से भी सही नहीं है। भारतीय सेना में 9 माह की ट्रेनिंग के बाद किसी जवान को पूरी तरह से दक्ष होने में कम से कम 6-7 वर्ष लगते हैं, जिसके बाद एक जवान सेना के लिए असेट बनता है। लेकिन यहां तो पूरी तरह से ट्रेंड होने से पहले ही उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा। फिर सेना में सिर्फ जवान ही नहीं बल्कि, हवलदार, सूबेदार जैसे अनुभवी और काबिल रैंक की जरूरत सबसे अधिक पड़ती है, जो वास्तव में सैन्य रणनीति, ऊपर के आदेश को निचली रैंक के लोगों के बीच अच्छी तरह से लागू करने के लिए आवश्यक होते हैं। यह सब उन्हें सेना में लंबे अनुभव के बाद हासिल होता है। कई बार तो ये अनुभवी जवान ही कई मुश्किल सवालों का जवाब बनते हैं। 

फिर इंडियन आर्मी की तुलना में वायु सेना और नेवी के जवान के लिए छह माह का प्रशिक्षण तो कुछ भी नहीं है, क्योंकि यहां पर तो आर्मी से कई गुना अधिक तकनीकी दक्षता और जटिल संरचनाओं से जूझने की आवश्यकता होती है। वायुसेना और नेवी में तो अग्निवीर योजना पूरी तरह से बेकार है। ऐसा माना जा रहा है कि विभिन्न कमेटियों की सिफारिशों में दो समानांतर भर्ती की बात हो सकती है, जिसमें एक तरफ रेगुलर आर्म्ड फोर्सेज में जो भर्ती हो रही थी, उसे जारी रहने दिया जाता, और साथ ही शार्ट टर्म भर्ती के माध्यम से आयु संतुलन को कायम रखा जाता। लेकिन सरकार को लगा कि लगे हाथ बटेर ही मार लिया जाये।

पीएम मोदी ने विपक्ष के सेना के जवानों को पेंशन न देने के आरोप पर जो तर्क पेश किया है, वह भी अपने आप में बेहद हास्यास्पद है। सेना में 14 वर्ष की सेवा पूरी होने के बाद से ही पेंशन का प्रावधान रहा है। लगभग आधी संख्या में जवान इस उम्र तक सर्विस करने के साथ ही रिटायरमेंट ले लेते हैं। वायुसेना और नौसेना में तो इन जवानों को रोकने के लिए तमाम प्रयास तक किये जाते हैं, क्योंकि उनकी वास्तविक जरूरत तो इसके बाद बढ़ जाती है।  

 इस बारे में सेवानिवृत्त विंग कमांडर अनुमा आचार्य ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा है, “प्रधानमंत्री ने कहा है कि पेंशन अग्निवीर योजना शुरू करने का कारण नहीं थी, बल्कि यह सिर्फ जवानों की आयु कम करने के लिए थी।

मेरा उनसे सवाल है:

1. अगर पेंशन असली वजह नहीं है और आप वाकई जवानों के लिए दुखी हैं, तो आपने अग्निवीरों को फॅमिली पेंशन और विकलांगता पेंशन से वंचित क्यों रखा है, जो सेवा की किसी भी अवधि के बावजूद सभी अन्य सरकारी कर्मचारियों को प्राप्त होती है?

2. किस अध्ययन में कहा गया है कि हमारे जवान बूढ़े और वृद्ध हैं और उनकी आयु कम करने की आवश्यकता है? भारत ने लगभग सभी युद्ध युवा जवानों और अधिकारियों के बल पर जीते हैं, यह अतार्किक बयान उनके बलिदानों के प्रति अपमान है।

3. हमारे बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआरपीएफ, एसएसबी, असम राइफल्स आदि के वीर जवान 60 वर्ष की आयु तक बहादुरी से हमारी सेवा और सुरक्षा कर रहे हैं, लेकिन आप सेना के जवानों को 22 वर्ष की आयु में यह कहकर सेवानिवृत्त करना चाहते हैं कि वे सेवा के लिए बूढ़े हो गए हैं?

कृपया जुमले न बोलें। जनता सब जानती है।

आपके अफसर पूरे देश में गरीब विकलांग सैनिकों के खिलाफ उनकी विकलांगता पेंशन और सेना की विधवाओं की पारिवारिक पेंशन के खिलाफ अपीलों की बाढ़ ला रहे हैं और उनके खिलाफ अभद्र टिप्पणियां भी कर रहे हैं, लेकिन आप कारगिल की सालगिरह के पवित्र अवसर पर कह रहे हैं कि आपको पेंशन से कोई समस्या नहीं है।

महोदय, शायद आपको गुमराह किया जा रहा है!! …। लेकिन प्रधानमंत्री के तौर पर हम आपसे उम्मीद करते हैं कि आप स्थिति पर नियंत्रण बनाये रखेंगे। जय हिन्द” 

बता दें कि इससे पहले पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल एम.एम. नरवाने ने भी अग्निवीर स्कीम पर अपना विरोध जताया था। उनकी बहुचर्चित पुस्तक “फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी” में इस स्कीम के बारे में खुलासा किया गया है, लेकिन फिलहाल अभी तक यह पुस्तक सरकार के आदेश के चलते बाजार में उपलब्ध नहीं है। इस पुस्तक की समीक्षा से ही मोदी सरकार बौखला गई थी, क्योंकि इसमें लिखा था कि नरेन्द्र मोदी सरकार के अग्निवीर योजना के ऐलान से तीनों सेनाएं चौंक गई थी! नौसेना और वायु सेना के लिए तो ये सूचना एक झटके की तरह आई थी। उन्होंने आगे लिखा है कि “जो सैनिक देश के लिए जान देता है, उसकी सैलरी की तुलना दिहाड़ी मज़दूर से नहीं की जा सकती, सेना की मज़बूत सिफारिश के बाद इसे 20,000/- मासिक से बढ़ाकर 30,000/- मासिक किया गया।” 

लेकिन सेना में रेगुलर जवान की तनख्वाह 45,000 है, जो अग्निवीर व रेगुलर सैनिक के बीच भेदभाव पैदा करेगा। इसके अलावा, अग्निवीर को पेंशन, ग्रेच्युटी, शहीद का दर्जा, फॅमिली पेंशन, कैंटीन और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी तमाम सुविधाओं से वंचित रखा जाना विशेष रूप से विभाजनकारी और बेहद खेदजनक है। 

यही नहीं जनरल नरवाने के बाद पूर्व नौसेना प्रमुख राहुल प्रकाश एवं करमबीर सिंह ने भी “अग्निवीर स्कीम” को गलत माना ! ध्यान रहे एडमिरल करमबीर सिंह मई 2019 से नवंबर 2021 तक भारतीय नौसेना के प्रमुख पद पर रहे हैं, जबकि जून 2022 में अग्निवीर योजना लाई गई थी। एडमिरल करमबीर सिंह का कहना है कि, “अग्निपथ योजना सेना की युद्ध क्षमता को कम करेगी व इसके पीछे का एकमात्र उद्देश्य बस पेंशन बिल को कम करना है।”

एडमिरल अरुण प्रकाश के अनुसार, “सेना में किसी भी बदलाव के लिए एकमात्र लिटमस टेस्ट यह होना चाहिए कि क्या ये युद्ध क्षमता को बढ़ाता है या कम करता है ? राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अर्थशास्त्र को पीछे छोड़ दिया जाता है। अग्निपथ योजना ने लड़ाकू सेना यूनिट्स पर संचालन की भारी बाधाएं डाल दी हैं।” दूसरी तरफ़ रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दावा किया था कि उन्होंने सेना से जुड़े 158 संगठनों से चर्चा करने के बाद अग्निवीर योजना लागू की है। ऐसे में अहम सवाल उठता है कि, जब तत्कालीन सेनाध्यक्ष ने अपनी क़िताब में खुलासा किया है कि अग्निवीर स्कीम PMO से एक झटके की तरह आई व 2021 में पूर्व नौसेना प्रमुख रहे करमबीर सिंह ने भी इस पर सवाल खड़े किए हैं, तो वो कौनसे संगठन हैं, जिनसे रक्षा मंत्रालय ने चर्चा करके जून 2022 में अग्निवीर योजना लागू की?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी पीएम मोदी के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा है, “ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण व निंदनीय बात है कि प्रधानमंत्री @narendramodi जी कारगिल विजय दिवस के दिन शहीदों को श्रद्धांजलि जैसे मौक़े पर भी ओछी राजनीति कर रहें हैं।  

ऐसा पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया। मोदी जी कह रहे हैं कि सेना के कहने पर उनकी सरकार ने अग्निपथ योजना लागू की थी, ये सरासर झूठ है, और पराक्रमी सेना का अक्षम्य अपमान है। मोदी जी, साफ़-साफ़ झूठ और भ्रम फ़ैला रहें हैं। 

पूर्व सेनाध्यक्ष (सेवानिवृत्त) जनरल एम.एम. नरवाने जी ने रेकॉर्ड पर कहा है कि ‘अग्निपथ योजना’ में 4 वर्षों की सेवा के बाद 75% लोगों को रखना था और 25% लोगों को सेवानिवृत्त करना था। पर मोदी सरकार ने इससे उल्टा किया, और ये योजना तीनों सैन्य बलों में जबरदस्ती लागू कर दी।

खबरों के मुताबिक, पूर्व सेनाध्यक्ष (सेवानिवृत्त) जनरल एमएम नरवाने जी ने उस क़िताब में, जिसे मोदी सरकार ने प्रकाशित होने से रोक रखा है, ये भी कहा है कि ‘अग्निपथ योजना’ सेना के लिए चौंका देने वाली थी, और नौसेना व वायुसेना के लिए ये वज्रपात (bolt out of the blue) की तरह थी।  

आख़िर 6 महीनों के ट्रेनिंग के बाद मोदी जी किस स्तर सैनिकों का निर्माण कर रहे हैं। ना उन्हें किसी ऑपरेशन का अनुभव होगा ना ही उनमें परिपक्वता होगी। सैनिक देशभक्ति के जज़्बे से सेना में शामिल होते हैं, जीविकोपार्जन के लिए नहीं। 

कई सेवानिवृत्त अधिकारियों ने इस योजना की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा और ग्रामीण युवाओं की देशभक्ति भावनाओं से खिलवाड़ की तरह इसलिए इस योजना को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। ये सब रेकॉर्ड पर है। अग्निवीर को कोई पेंशन नहीं मिलती, कोई Gratuity नहीं मिलती, कोई Family पेंशन नहीं मिलती, कोई Liberalized Family पेंशन नहीं मिलती और बच्चों की पढ़ाई के लिए कोई शिक्षा भत्ता नहीं मिलता ! 

अब तक 15 अग्निवीर शहीद हो चुके हैं। प्रधानमंत्री जी को कम से कम उनकी शहादत का तो मान रखना चाहिए। देश के युवाओं में अग्निवीर को लेकर बहुत ज़्यादा गुस्सा है, कड़ा विरोध है। कांग्रेस पार्टी की मांग क़ायम रहेगी – अग्निपथ योजना बंद होनी चाहिए।”

नेता प्रतिपक्ष, राहुल गांधी ने 18वीं लोकसभा की शुरुआत में ही अपने भाषण में स्पष्ट कर दिया था कि इंडिया गठबंधन अग्निवीर योजना के सख्त खिलाफ है, और उनकी सरकार बनते ही इस योजना को खत्म कर दिया जायेगा। जाहिर है, भाजपा और एनडीए गठबंधन को पूरा आभास है कि राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में मिले करारे झटके के पीछे अग्निवीर का बड़ा हाथ रहा है, जिसका भारी असर अभी हरियाणा, महाराष्ट्र और बाद में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में उसे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। इसीलिए एक तरफ जहां मोदी सरकार गलती करके भी खुद को पाक-साफ़ बताने के चक्कर में नए-नए तर्क गढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के माध्यम से अग्निवीर जवानों के लिए एक के बाद एक भर्ती, मुआवजा राशि की घोषणाओं की झड़ी लगाई जा रही है। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी शायद भूल रहे हैं कि नैरेटिव स्थापित करने की कला और उसकी असलियत अब जनता अच्छी तरह से समझने लगी है, जो एक समय बाद फायदा पहुंचाने के बजाय उल्टा भारी नुकसान का सबब बनने लगती है। 

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