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एग्जिट पोल के बाद बढ़ी सियासी हलचल

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मध्यप्रदेश मेंBJP के नए चेहरे के लिए ऐसे राह होगी मुश्किल

मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी या फिर भाजपा सत्ता पर काबिज होगी, इसका खुलासा तो 3 दिसंबर को होगा। लेकिन परिणाम से पहले आए एग्जिट पोल ने भाजपा-कांग्रेस की बेचैनी बढ़ा दी है। गुरुवार को आए ज्यादातर एग्जिट पोल में भाजपा की सरकार बनती दिख रही है, जबकि कुछ सर्वे कांग्रेस की वापसी का अनुमान लगा रहे हैं। 8 एग्जिट पोल में से 4 भाजपा की सत्ता में वापसी करवा रहे हैं, जबकि 3 पोल कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना जता रहे हैं, जबकि एक सत्ता के करीब बता रहे हैं।

इन एग्जिट पोल के अनुमान अगर नतीजों में तब्दील होते हैं, तो फिर भाजपा का मध्यप्रदेश में दबदबा बना रहेगा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सभी कोशिशें नाकाम रहेंगी। ऐसे में भाजपा के लिए लाड़ली बहना योजना गेम चेंजर साबित हुई है और शिवराज सिंह चौहान का चेहरा कमलनाथ पर भारी पड़ा है। लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस चुनाव में जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, इस पर संशय बरकरार है। हालांकि सीएम शिवराज सिंह चौहान के प्रचार तंत्र ने इसे लाड़ली बहना योजना से जोड़कर परिणाम आने के 48 घंटे पहले ही दिल्ली दरबार में दबाव बना दिया कि लाड़ली बहन योजना ही असली गेम चेंजर साबित होगी। शिवराज सिंह चौहान 230 विधानसभाओं में से करीब 160 में प्रचार के लिए पहुंचे। हर रोड शो और रैलियों में चौहान लाड़ली बहन योजना का जिक्र करते हुए नजर आए। पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह प्रचार के शुरुआती दौर में लाड़ली योजना का जिक्र करने के बजाए केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार के काम को तवज्जो देते थे।

25 सितंबर को जब भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ हुआ था, तो प्रधानमंत्री ने इन योजनाओं का जिक्र तक नहीं किया था। लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों से ही पीएम ने भी लाड़ली बहना योजना का नाम लेना शुरू किया है। मतदान से ठीक चार दिन पहले पहली बार पीएम ने बड़वानी की रैली में शिवराज सिंह चौहान के साथ उनकी योजनाओं का जिक्र किया है, बल्कि उनके कामों की तारिफ भी की। राज्य में भाजपा ने सीएम चेहरा किसी को घोषित नहीं किया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान चुनाव को लीड कर रहे थे। शिवराज बनाम कमलनाथ के बीच यह जंग मानी जा रही थी। ऐसे में शिवराज की लोकप्रियता कमलनाथ पर भारी पड़ते दिख रही है। एग्जिट पोल सर्वे में शिवराज पहली पसंद बनकर उभरे हैं। इसी का भाजपा को चुनाव में फायदा मिलता दिख रहा है। महिलाओं के बीच शिवराज की अपनी एक लोकप्रियता है, जबकि कमलनाथ की उस तरह से पकड़ नहीं है।

नाम न छापने के अनुरोध पर भाजपा एक वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद ने अमर उजाला से कहा कि चुनाव में लाड़ली बहना योजना को दरकिनार करना संभव नहीं था। इसलिए पार्टी ने अंतिम दौर में जमीनी स्थिति को भांपते हुए अपनी रणनीति बदल ली थी। शिवराज के साथ संगठन भी जोर शोर के साथ इस योजना के प्रचार में जुट गया था। खुद सीएम भी सत्ता में वापसी के लिए आक्रामक प्रचार अभियान में जुटे रहे। इसलिए वे हर सभा में न केवल इसका जिक्र करते बल्कि महिला वोटर से मुलाकात भी करते थे। लाड़ली बहनों में भी मामा का क्रेज दिख रहा है। ऐसे से अगर भाजपा प्रदेश में वापसी करती है, तो सबसे बड़ा श्रेय शिवराज सिंह चौहान को ही जाएगा। क्योंकि उनकी इस योजना ने पूरा खेल पलट दिया, जिससे पार्टी को फायदा होता दिख रहा है। यहीं नही, 3 दिसंबर को नतीजे कांग्रेस के पक्ष में जाते हैं, तो भी जिम्मेदार शिवराज सिंह चौहान को ही माना जाएगा। क्योंकि प्रदेश में 18 सालों से वे सीएम हैं। उनके नेतृत्व में ही राज्य में सरकार चल रही थी। लिहाजा हार के लिए जिम्मेदार केंद्रीय नेतृत्व नहीं शिवराज ही होंगे।

शाह की रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग का भी कमाल

अगर एग्जिट पोल के अनुमान सहीं होते हैं, तो भाजपा की इस जीत में मोदी फैक्टर का भी अहम रोल माना जाएगा। भाजपा एमपी चुनाव में मोदी का नाम और काम को लेकर उतरी थी। पीएम मोदी चुनावी मैदान में उतरकर सियासी फिजा को बदलने की ताकत रखते हैं। भाजपा सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही थी, लेकिन पीएम मोदी ने ताबड़तोड़ 14 रैलियां करके माहौल को भाजपामय बना दिया। पीएम मोदी ने एमपी के हर इलाके में जनसभाएं कीं और सभी यह कहते थे, ‘मोदी की गारंटी’ है। इसके अलावा केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चुनावी रणनीति की कमान संभाल रखी थी। उन्होंने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाया। इसके बाद शाह के मागर्शदन में यादव की टीम काम करती रही। इस टीम ने कांग्रेस की मजबूत मानी जाने वाली सीटों पर माइक्रो लेवल पर बूथ प्रबंधन किया। इतना ही नहीं चुनावी जनसभाओं के ज्यादा बैठकें करके नाराज नेताओं को मनाया, जिसका फायदा चुनाव में मिलता दिख रहा है। इस तरह से केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति भाजपा की जीत की अहम वजह मानी जा रही है।

मध्यप्रदेश में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग चुनाव में जीत का अहम कारण मानी जा रही है। प्रदेश में दलित, आदिवासी, ओबीसी, सामान्य व अन्य जातियों का ज्यादातर वोट भाजपा को दिया है। महिलाओं ने कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के पक्ष में वोटिंग की है। कांग्रेस सामान्य और ओबीसी वोट की लड़ाई में भी पिछड़ गई। एक्सिस माई इंडिया के मुताबिक भाजपा को सामान्य वर्ग में 57 और ओबीसी में 56 फीसदी वोट मिलने के अनुमान हैं। इसी तरह से तमाम सर्वे भी बता रहे हैं कि आदिवासी और ओबीसी वोट कांग्रेस की तुलना में भाजपा को ज्यादा मिलने की संभावना है।

नाराज नेताओं को मनाने में भी सफल रही पार्टी

यहीं नहीं कर्नाटक की हार से भाजपा ने सबक लिया और मध्यप्रदेश में चुनाव की तारीखें घोषित होने से पहले उम्मीदवारों का चयन कर उनके नाम घोषित कर दिए। भाजपा ने कमजोर माने जाने वाली सीटों पर डेढ़ महीने पहले कैंडिडेट्स को टिकट देकर उतारा, जिससे प्रत्याशियों को प्रचार के लिए पर्याप्त समय मिला। इसके अलावा टिकट न मिलने से नाराज नेताओं को भी भाजपा काफी हद तक मनाने में कामयाब रही। ऐसे ही भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को विधानसभा का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा। भाजपा ने इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों से उतारा, जिसका सियासी फायदा भी मिलता दिख रहा है।

राजस्थान में बीजेपी-कांग्रेस के बागियों पर सबकी नजर; ये 21 सीटें जिधर, सरकार उधर

पिछले विधानसभा चुनावों में प्रदेश की गहलोत सरकार बहुमत से एक सीट कम रह गई थी। इसके बाद 13 निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर अशोक गहलोत ने राजस्थान में अपनी सरकार चलाई। इस बार भी एग्जिट पोल कुछ इसी तरह का इशारा कर रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा के दोनों ही दलों के दमदार बागी चुनाव मैदान में हैं। इनके अलावा कुछ सीटें ऐसी भी जहां आरएलपी, आजाद समाज पार्टी, बसपा समेत कई अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भी भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशियों को कड़ी चुनौती दी है। यही कारण है कि प्रदेश की 21 सीटें ऐसी हैं, जिनके चुनाव परिणाम पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हैं।

पिछली बार बीजेपी-कांग्रेस के अलावा 27 विधायक थे
राजस्थान में पिछली बार दूसरे दलों और निर्दलियों को मिलाकर कुल 27 विधायक विधानसभा में पहुंचे थे और सरकार बनते ही इनकी जरूरत महसूस होने लगी थी, क्योंकि कांग्रेस के पास खुद की 200 में से 100 ही सीटें थीं। आरएलडी के साथ गठबंधन था तो इसलिए बहुमत का आंकड़ा तो हो गया, लेकिन कांग्रेस में जिस तरह का आतंरिक संघर्ष चला, उसके चलते ये विधायक पूरे पांच साल अहम बने रहे।

इस बार जिन सीटों पर बागी या दूसरे दलों के प्रत्याशी मजबूती से लडे़, वहां मतदान का प्रतिशत भी अच्छा है। ये बता रहा है कि मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने में इन प्रत्याशियों ने भी पूरी ताकत लगाई है।

पिछली बार से कम रह सकती है अन्य की संख्या
फीडबैक बता रहा है कि इस बार निर्दलियों और अन्य दलों के विधायकों की संख्या पिछली बार के मुकाबले कम रहने की संभावना है। इसका एक कारण यह माना जा रहा है कि पिछली बार बसपा के छह विधायक थे और बसपा का ट्रेंड रहा है कि वह एक चुनाव में अच्छा करती है और दूसरे में उसका प्रदर्शन डाउन चला जाता है। ऐसे में निर्दलीय और अन्य दलों के विधायकों की संख्या 20 के आसपास रह सकती है।

चित्तौड़गढ़:  मतदान प्रतिशत – 79.66
यहां से भाजपा के मौजूदा विधायक चंद्रभान सिंह आक्या पार्टी के बागी हैं। जीते तो भाजपा के ही साथ जाने की संभावना।

बसेड़ी : मतदान प्रतिशत – 73.9
यहां से कांग्रेस के मौजूदा विधायक और अनूसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष खिलाड़ीराम बैरवा बागी हैं। गहलोत फिर से सीएम बने तो शायद कांग्रेस के साथ न जाएं।

डीडवाना : मतदान प्रतिशत – 73.43
यहां से भाजपा सरकार में मंत्री रहे युनूस खान बागी हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो भाजपा के साथ जाना तय।

सवाई माधोपुर : मतदान प्रतिशत – 70.94
यहां से भाजपा की पूर्व प्रत्याशी आशा मीणा बागी हैं। जीती तो भाजपा के साथ ही जा सकती हैं।

लूणकरणसर : मतदान प्रतिशत – 76.75
यहां से पूर्व मंत्री वीरेंद्र बेनीवाल कांग्रेस के बागी हैं। जीते तो कांग्रेस के साथ ही बने रह सकते हैं।

बाडमेर : मतदान प्रतिशत – 80.88
यहां से भाजपा की पूर्व प्रत्याशी प्रियंका चैधरी बागी हैं। जीतीं तो भाजपा के साथ ही बनी रह सकती हैं।

नागौर : मतदान प्रतिशत- 68.77
पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान कांग्रेस के बागी है। ये कांग्रेस और भाजपा दोनो में रह चुके हैं, इसलिए जीतने पर किसी और भी जा सकते हैं।

शाहपुरा : मतदान प्रतिशत – 72.32
भीलवाड़ा जिले की इस सीट से पूर्व स्पीकर कैलाश मेघवाल पार्टी के बागी हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो भाजपा के साथ जा सकते हैं। 

शाहपुरा : मतदान प्रतिशत- 83.83
जयपुर जिले की इस सीट पर कांग्रेस के आलोक बेनीवाल मैदान में हैं। कांग्रेस के साथ ही रहने की सम्भावना है।

किशनगढ़ : मतदान प्रतिशत – 76.21
इस सीट से मौजूदा निर्दलीय विधायक सुरेश टांक फिर से निर्दलीय ही मैदान मे हैं और किसी ओर भी जा सकते हैं।

झोटवाड़ा : मतदान प्रतिशत – 71.52
भाजपा के बागी आशु सिंह सुरपुरा मैदान में हैं और जीते तो भाजपा के ही काम आ सकते हैं।

बानसूर : मतदान प्रतिशत – 71.24
पूर्व मंत्री रोहिताश्व शर्मा भाजपा के बागी हैं और आजाद समाज पार्टी से उम्मीदवार हैं। वसुंधरा राजे सीएम बनीं तो साथ रहेंगे।

कोटपूतली : मतदान प्रतिशत- 76.71
भाजपा के पूर्व मुकेश गोयल मैदान में हैं और जीते तो भाजपा के साथ ही रहने की संभावना है।

बहरोड़ : मतदान प्रतिशत – 74.25
मौजूदा निर्दलीय विधायक बलजीत यादव फिर से मैदान में हैं। जीते तो जिसकी सरकार उसके साथ ही रहने की सम्भावना है। 

भोपालगढ़ : मतदान प्रतिशत 66.05 
यहां से आरएलपी के मौजूदा विधायक पुखराज गर्ग मैदान में हैं और जरूरत पड़ने पर कांग्रेस के साथ देने की सम्भावना है।

खींवसर : मतदान प्रतिशत – 73.49
यहां से आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल मैदान में है और जीते तो कांग्रेस के साथ ही जाने की सम्भावना है।

शिव : मतदान प्रतिशत – 83.28 
यहां से भाजपा के दो रविन्द्र सिंह भाटी और जालम सिंह तथा कांग्रेस के फतेह खान मैदान मे हैं। जो जीता वह अपनी पार्टी के साथ ही जा सकता है। 

उदयपुरवाटी : मतदान प्रतिशत- 76.42
यहां से सरकार से बर्खास्त मंत्री शिवसेना शिंदे गुट के राजेन्द्र गुढ़ा मैदान में है। जीते तो भाजपा के साथ ही जाने की सम्भावन है। पायलट सीएम बने तो कांग्रेस के साथ भी जा सकते हैं।

बस्सी : मतदान प्रतिशत – 78.37
यहां से भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र मीणा और निर्दलीय विधायक रहीं अंजु धानका मैदान में है। जितेन्द्र मीणा जीते तो भाजपा के साथ और अंजु धानका जिसकी सरकार बनी उसके साथ जा सकती हैं।

चैरासी : मतदान प्रतिशत – 81.76
यहां से मौजूदा विधायक राजकुमार रोत भारतीय आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी हैं- कांग्रेस के साथ जाने की सम्भावना है, क्योंकि पार्टी के भाजपा से वैचारिक मतभेद है।

धोंद : मतदान प्रतिशत 71.94
यहां से माकपा के पूर्व विधायक पेमाराम ने मजबूती से चुनाव लड़ा है। जीते तो किसी के साथ नहीं जाएंगे।

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