एस पी मित्तल, अजमेर
23 जून को पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक में एकता के परिणाम तो अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद ही आएंगे, लेकिन देशभर के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए यह खुशी की बात है कि राहुल गांधी ने अपनी शादी की घोषणा कर दी है। असल में बैठक में राजद के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने राहुल से कहा, अब आपको शादी कर लेनी चाहिए। आपकी मम्मी सोनिया गांधी को भी शिकायत है कि आप शादी नहीं कर रहे। इस पर राहुल गांधी ने गंभीरता के साथ कहा, आपने कहा है तो अब शादी भी हो जाएगी। राहुल की इस घोषणा का उपस्थित नेताओं ने तालियां बजाकर स्वागत किया। मालम हो कि गत 19 जून को ही राहुल ने अपना 54वां जन्मदिन मनाया है।
कांग्रेस बलि देने को तैयार:
विपक्षी दलों की बैठक में सबसे बड़े दल कांग्रेस के राहुल गांधी ने इस बात के संकेत दिए कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए वे लोकसभा की सीटों पर समझौता कर सकते हैं। यानी लोकसभा की कई सीटें क्षेत्रीय दलों की दी जा सकती है। राहुल गांधी के इन संकेतों का सभी विपक्षी दलों ने स्वागत किया है, क्योंकि पहले ही पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में कांग्रेस को हराकर ही क्षेत्रीय दल मजबूत हुए हैं। राहुल गांधी चाहते हैं कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का साझा उम्मीदवार खड़ा किया जाए। यदि विपक्ष के वोटों का बंटवारा नहीं होता है तो भाजपा को आसानी से हराया जा सकता है। चूंकि क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों और कांग्रेस के उम्मीदवार के कारण विपक्ष के वोट बंट जाते हैं, इसलिए भाजपा की जीत हो जाती है। राहुल गांधी वोटों के इसी बंटवारे को कांग्रेस की बलि देकर रोकना चाहते हैं। राहुल गांधी का असली मकसद मोदी को पीएम पद से हटाना है। भले ही इसके लिए कांग्रेस की हार हो जाए।
एकता पर सवाल:
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान ने बैठक के बाद साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाई। केजरीवाल चाहते थे कि बैठक में कांग्रेस केंद्र के उस अध्यादेश पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें, जिसमें दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती की गई है। चूंकि इस अध्यादेश में के लिए अब संसद में प्रस्ताव लाया जाएगा। केजरीवाल चाहते हैं कि इस प्रस्ताव का कांग्रेस विरोध करने की घोषणा करें। केजरीवाल की इस बात से विपक्षी दलों के कई नेता असहमत नजर आए। फारुख अब्दुल्ला का कहना रहा कि जब संसद में अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा गया, तब केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने समर्थन किया। केजरीवाल अब यह उम्मीद कैसे कर रहे हैं कि उनकी सरकार पर लाए गए अध्यादेश का विपक्षी दल विरोध करें। सवाल उठता है कि केजरीवाल के रुख के बाद क्या विपक्षी दलों में एकता हो चुकी है? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कांग्रेस और वामपंथियों के साथ मतभेद जगजाहिर है। विपक्षी दलों की अलग अलग विचारधाराओं की वजह से भी एकता होना संभव नजर नहीं आता। यदि किन्हीं मुद्दों पर सहमति होती है जो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही होगा।