अग्नि आलोक

सवालों से भरे राहुल में सीखने की है ललक -प्रणब मुखर्जी

Share

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की जीवनी पर लिखी किताब

शर्मिष्ठा मुखर्जी ने अपने पिता और देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की जीवनी पर किताब लिखी है। इसमें कई ऐसे तथ्यों को उन्होंने उद्घाटित किया है जिसके बारे में अभी तक किसी को कोई जानकारी नहीं थी। ‘इन प्रणब, माई फादर: ए डॉटर रेमेम्बर्स’ नाम से लिखी गयी यह किताब 11 अगस्त को प्रणब मुखर्जी के जन्मदिन पर सामने आएगी।

एक वाकये का जिक्र करते हुए इसमें लिखा गया है कि ‘नहीं, वह मुझे पीएम नहीं बनाएंगी’। शर्मिष्ठा मुखर्जी द्वारा 2004 में पीएम बनने की संभावनाओं को लेकर पूछे गए सवाल के बारे में प्रणब मुखर्जी ने यह बात कही थी। उनका इशारा सोनिया गांधी की तरफ था।

यह वह मौका था जब सोनिया गांधी ने खुद को पीएम की रेस से बाहर कर लिया था और कांग्रेस को प्रधानमंत्री के लिए अपना नया चेहरा तय करना था।

एक दौर में कांग्रेस की प्रवक्ता रहीं शर्मिष्ठा मुखर्जी ने 2021 में राजनीति को अलविदा कह दिया। प्रणब मुखर्जी से जुड़े इस रहस्योद्घाटन के साथ ही उन्होंने किताब में यह भी लिखा है कि उनके मन में सोनिया गांधी के खिलाफ कोई खटास नहीं थी और न ही वह किसी भी रूप में नये चुने गए प्रधानमंत्री मनमोहन के खिलाफ थे।

किताब में ज्यादातर तथ्य प्रणब मुखर्जी की डायरी से लिए गए हैं। इसके अलावा शर्मिष्ठा ने खुद अपना भी रिसर्च किया है। जिसमें उनके राजनीतिक जीवन के अनछुए पहलुओं से लेकर उनकी नंबर वन न बन पाने की अधूरी आकांक्षा के साथ ही नेहरू-गांधी परिवार के इर्द-गिर्द पर्सनाल्टी कल्ट और राहुल गांधी में करिश्मे का अभाव समेत ढेर सारे विषयों को समेटा गया है। किताब रूपा पब्लिकेशन से प्रकाशित हो रही है।

मुखर्जी देश के वित्त मंत्री से लेकर विदेश मंत्री समेत कई उच्च पदों पर काम कर चुके हैं। उसके बाद वह भारत के 13 वें राष्ट्रपति बने। और 84 साल की उम्र में 31 अगस्त, 2020 को उनका निधन हुआ।

2004 में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद और बाकी दलों का समर्थन हासिल करने के साथ तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया था। लेकिन उन्होंने एकाएक खुद को उस दौड़ से पीछे खींच लिया। इस फैसले ने मानो पूरे देश में भूचाल ला दिया हो। यहां तक कि खुद उनकी पार्टी के नेता और सहयोगी दल भी इसको लेकर अचरज में थे। लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री की दौड़ से खुद को बाहर कर लिया।

किताब के एक चैप्टर ‘भारत का प्रधानमंत्री जो कभी था ही नहीं’ में शर्मिष्ठा लिखती हैं: सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने के बाद मीडिया और राजनीतिक दायरे के भीतर भीषण कयासबाजी थी।

“डॉ. मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी का नाम इस पद के लिए सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जा रहा था। मुझे पिछले दो दिनों तक बाबा से मिलने का मौका नहीं मिल पाया था क्योंकि वह बहुत व्यस्त थे। लेकिन मैंने उनसे फोन पर बात की। मैं पूरी उत्तेजना में पूछी कि क्या वह प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। उनका जवाब बिल्कुल सीधा था, ‘नहीं, वह मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनाएंगी। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री होंगे।’ उन्होंने आगे जोड़ा लेकिन उन्हें इसकी जल्द घोषणा करनी चाहिए। यह अनिश्चितता देश के लिए अच्छी नहीं है।”

किताब की लेखिका इसके आगे यह भी जोड़ती हैं कि अगर उनके पिता में प्रधानमंत्री न बनाए जाने को लेकर किसी तरह की निराशा भी थी तो वह उनकी डायरी में परिलक्षित नहीं हुआ। उन्होंने एक पत्रकार को बताया था कि वह सोनिया गांधी से प्रधानमंत्री बनने को लेकर कोई अपेक्षा नहीं रखते हैं।

“अगर कोई अपेक्षा नहीं है तो किसी तरह की निराशा भी नहीं होगी”। इसके आगे उन्होंने कहा कि “यह आमतौर पर विश्वास किया जाता है कि इसके पहले 1984 में भी प्रणब को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला था जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी।”

शर्मिष्ठा का कहना है कि लोग अक्सर उनसे प्रधानमंत्री बनने को लेकर अपने पिता की आकांक्षा के बारे में पूछते हैं तो उन्होंने इस सवाल को खुद उनके सामने यूपीए-1 काल के दौरान रख दिया था।

वह लिखती हैं, “उनका जवाब बेहद जोरदार था। उन्होंने कहा, निश्चित तौर पर, मैं प्रधानमंत्री बनना पसंद करूंगा। किसी भी योग्य राजनेता की यह महात्वाकांक्षा होती है। लेकिन क्योंकि मैं ऐसा चाहता हूं इसका मतलब कोई जरूरी नहीं है कि मैं उसे हासिल ही कर लूंगा।”

उसके बाद उन्होंने अपना नतीजा निकाला: ‘प्रणब मुखर्जी निश्चित तौर पर पीएम बनने की इच्छा रखते थे लेकिन वह इस तथ्य से भी परिचित थे कि वह बनने नहीं जा रहे हैं’।

शर्मिष्ठा का कहना है कि उन दिनों मुखर्जी की डायरी में विस्तृत विवरण नहीं होता था। ऐसा शायद व्यस्तता के चलते उनके पास समय की कमी होना या बैठकों और विभिन्न हितधारकों के साथ संपर्क इसकी वजह रही होगी। 

17 मई, 2004 को उन्होंने लिखा, “सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की दौड़ से बाहर होने का फैसला लिया। बीजेपी का घृणित अभियान। मुझे, मनमोहन, अर्जुन, अहमद पटेल और गुलाम नबी को बुलाया गया। हम सब चकित हैं।” 18 मई को वह लिखते हैं, “सोनिया गांधी अपने फैसले पर अडिग हैं। देश भर में आंदोलन। गठबंधन के सहयोगी भी चकित हैं। सीपीपी की बैठक भावनाओं का ज्वार बह रहा है। उनसे अपने फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की जाती है। 1 बजे तक काम।” 19 मई को राहत की सांस लेते हुए वह लिखते हैं, “मुद्दा हल हो गया। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री डेजिनेट हो गए। मनमोहन और सोनिया जी राष्ट्रपति से मिले और राष्ट्रपति ने मनमोहन सिंह को सरकार बनाने के लिए मिले जनादेश पर खुशी जाहिर की।”

शर्मिष्ठा इस बात का जिक्र करती हैं कि उस समय उनके पिता ने बहुत ज्यादा कुछ नहीं लिखा। 31 दिसंबर को साल की प्रमुख घटनाओं को याद करते हुए वह लिखते हैं, “ पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगहों से भीषण दबाव के बावजूद प्रधानमंत्री का पद लेने से सोनिया गांधी का इंकार करना बेहद अचरज भरा था। उनके फैसले ने बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक तीखे संघर्ष को रोक दिया।”

वह यह भी लिखती हैं कि उनके पिता यह भी महसूस करते थे कि सोनिया गांधी बुद्धिमान, मेहनती और सीखने की इच्छुक रहती थीं। एक बार उन्होंने मुझे बताया कि दूसरे नेताओं के बरखिलाफ उनकी सबसे बड़ी ताकत यह थी कि वह अपनी कमजोरियों को पहचानती थीं और उससे उबरने के लिए वह पूरी मेहनत करती थीं। वह जानती थीं कि उनमें राजनीतिक अनुभव की कमी है। लेकिन भारतीय राजनीति और समाज की जटिलताओं को समझने के लिए वह पूरी मेहनत करती थीं।

शर्मिष्ठा के मुताबिक प्रणब मुखर्जी राहुल गांधी के बारे में भी अपनी डायरी में लिखे हैं। उन्होंने लिखा है कि प्रणब उनको बेहद शालीन और सवालों से भरा हुआ बताते हैं। जिसे वह राहुल के सीखने की इच्छा के तौर पर देखते हैं। लेकिन वह महसूस करते थे कि राहुल को अभी राजनीतिक तौर पर और परिपक्व होना है। राहुल गांधी लगातार राष्ट्रपति भवन में प्रणब मुखर्जी से मिलते रहते थे। हालांकि यह अक्सर नहीं होता था। प्रणब ने उन्हें कैबिनेट में शामिल होकर सरकार चलाने का कुछ अनुभव हासिल करने की सलाह दी थी। निश्चित तौर पर राहुल ने सलाह पर ध्यान नहीं दिया जैसा कि हम सब जानते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह के 25 मार्च, 2013 के एक दौरे के दौरान प्रणब ने इस बात को नोट किया कि “वह ढेर सारे विषयों में रुचि रखते हैं लेकिन एक विषय से दूसरे पर बहुत जल्दी शिफ्ट कर जाते हैं। मैं नहीं जानता कि वह कितना उसको सुनते हैं और फिर ग्रहण कर पाते हैं”। 

Exit mobile version