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राम केवल बीजेपी के नहीं , वह सबके हैं-उमा भारती,रामानंद संप्रदाय को सौंपे मंदिर-शंकराचार्य

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राम मंदिर पर बीजेपी लगातार घिरती जा रही है। और विपक्षी या फिर बाहर के खेमे से नहीं बल्कि उसके अपने भीतर से अंतरविरोधों का पिटारा खुल गया है। चार शंकराचार्यों के कार्यक्रम में भागीदारी से इनकार करने के बाद मानो पूरे आयोजन को लेकर ही बवंडर खड़ा गया हो। सोशल मीडिया से लेकर संचार के दूसरे प्लेटफार्मों पर यही चर्चा है कि आखिर शंकराचार्यों के बगैर हिंदुओं के किसी बड़े आयोजन का क्या मतलब?

आग में घी डालने का काम चंपत राय के बयान ने कर दिया जो इस पूरे आयोजन के केंद्र में हैं। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में रामानंदियों के अलावा शैव, शाक्त और संन्यासियों का क्या काम? अब नया बम बीजेपी की कभी कद्दावर नेता रहीं और मंदिर आंदोलन में अगुआ भूमिका निभा चुकीं उमा भारती ने फोड़ा है। उन्होंने कहा है कि राम केवल बीजेपी के नहीं हैं। वह सबके हैं। इसलिए ऐसा कोई व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए जिससे अहंकार की बू आती हो।

इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि राम भक्ति पर हमारा कॉपीराइट नहीं है। भगवान राम और हनुमान जी बीजेपी के नेता नहीं हैं। वो हमारे राष्ट्रीय सम्मान हैं। उनके मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में कोई भी हिस्सा ले सकता है और कोई भी निमंत्रित हो सकता है। उन्होंने कहा कि मैं सभी नेताओं को बताना चाहती हूं कि इसे राजनीति के चश्मे से मत देखिए। उन्होंने सभी विपक्षी नेताओं से इसमें हिस्सा लेने की अपील की। इसके साथ ही उन्होंने खास कर बीजेपी सदस्यों से कहा कि आप अपने इस अहंकार से छुटकारा हासिल कर लीजिए कि केवल आप राम की भक्ति कर सकते हैं। 

अपने इस बयान के साथ ही उमा भारती ने मंदिर मुद्दे पर बीजेपी-संघ के रवैये पर अपने तरीके से हमला बोला है। जिस तरह से बीजेपी और संघ ने पूरे आयोजन पर कब्जा कर लिया है और खुद मेजबान की भूमिका में खड़ा होकर पूरे देश को मेहमान बना दिया है उससे उमा भारती खुश नजर नहीं आ रही हैं। इसके साथ ही उन्होंने मामले का राजनीतिकरण करने से भी परहेज करने की बात कही।

इसके पहले इसी तरह से पूर्व फायरब्रांड सांसद और बजरंग दल के नेता रहे विनय कटियार ने भी इसी तरह की बात कही थी। अपने बयान के जरिये उन्होंने सीधे तौर पर पीएम मोदी पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा था कि राम मंदिर का श्रेय आडवाणी समेत सभी स्वयंसेवकों को जाता है। इसका श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता है। इस तरह से उन्होंने अयोध्या में होने वाले आयोजन को लेकर चलने वाली पूरी प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर दिया था।

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद ने भी सीधे पीएम मोदी को अपना निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि यह पूरा राजनीतिक आयोजन है। जिसमें एक राजनेता मंदिर का उद्घाटन करेगा और साधु-संत सामने खड़े होकर ताली बजाएंगे। लिहाजा उन्होंने कहा कि वह ताली बजाने के लिए अयोध्या नहीं जाएंगे। यह न केवल संत समाज का अपमान है बल्कि धर्म की भी हानि है।

चंपत राय के बयान के बाद नया बखेड़ा शुरू हो गया है। जगत गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि अगर यह मंदिर रामानंद समुदाय का है तो फिर चंपत राय वहां पर क्या कर रहे हैं? फिर ये लोग हटें और हटकर मंदिर को रामानंद संप्रदाय के लोगों को सौंप दें।और यह काम उन्हें प्राण प्रतिष्ठा के पहले कर देना चाहिए। रामानंद संप्रदाय के लोग ही वहां प्राण प्रतिष्ठा करें यह हमें मंजूर है।

उन्होंने कहा कि हम एंटी नहीं है लेकिन हम एंटी धर्मशास्त्र भी नहीं होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्य वहां पर नहीं जा रहे हैं। कारण क्या है क्यों नहीं जा रहे हैं? किसी राग द्वेष के कारण नहीं। बल्कि शंकराचार्यों का यह दायित्व है कि वो शास्त्र विधि का पालन करें और दूसरों से करवाएं। और वहां पर शास्त्र विधि की उपेक्षा हो रही है। सबसे पहली उपेक्षा क्या है कि मंदिर अभी पूरा बना नहीं और प्रतिष्ठा की जा रही है। कोई ऐसी परिस्थिति नहीं है कि अचानक कर देना पड़े। देखिए किसी समय 22 दिसंबर की रात को वहां पर मूर्तियां रख दी गयी थीं। वो एक परिस्थिति थी। रात को 12 बजे जाकर कुछ करके रख दिया। 1992 में भी जब ढांचा ढहाया गया तो उस समय कोई मुहूर्त थोड़े ही देखा जा रहा था। उसके बाद मूर्ति गायब हो गयी। फिर राजा के घर से उनकी दादी की मूर्ति रख दी गयी किसी ने प्रश्न उठाया?

किसी शंकराचार्य ने प्रश्न नहीं उठाया। भाई ये क्यों किया जा रहा है मुहूर्त नहीं है। क्योंकि उस समय परिस्थिति ही ऐसी थी। लेकिन आज ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है कि हमको जरूरी हो गया कि 22 तारीख को ही कर लें। आज तो हमारे पास पूरा मौका है हम अच्छे से बनाकर प्रतिष्ठा कर सकते हैं। लेकिन फिर भी अधूरे मंदिर में प्रतिष्ठा कर दी जा रही है। तो ये हम कैसे स्वीकार कर लें। ये हमको कहना ही पड़ेगा पूछे जाने पर कि ये ठीक नहीं है। अब यही हम कह रहे हैं तो हमको कहा जा रहा है कि ये लोग तो विरोधी हैं। एंटी मोदी हैं। इसमें एंटी मोदी की क्या बात है। हम एंटी मोदी नहीं हैं लेकिन हम एंटी धर्मशास्त्र भी नहीं होना चाहते हैं। धर्मशास्त्र के तहत ही हम स्वयं चलना चाहेंगे और अपनी जनता को भी चलाना चाहेंगे। क्योंकि हमको धर्मशास्त्र से पुण्य-पाप का बोध होता है।

राम हैं ये किसने हमको बताया? हमारे धर्मशास्त्र ने हमको बताया। उन्होंने कहा कि जब शंकराचार्यों ने वहां नहीं जाने का फैसला लिया। तब चंपत राय ने कहा कि यहां शंकराचार्यों की जरूरत नहीं है। क्योंकि यह मंदिर रामानंद संप्रदाय का है। तो सवाल यह है कि अगर रामानंद संप्रदाय का यह मंदिर है तो फिर चंपत राय वहां पर क्यों हैं? फिर नृपेंद्र मिश्रा क्यों हैं? फिर वहां पर राजा साहब क्यों हैं? फिर भाजपा का पटना का चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति वहां पर क्यों है? वहां पर और दूसरे लोग क्यों हैं? फिर ये लोग हटें और हटकर सब कुछ रामानंद संप्रदाय को सौंपे। प्रतिष्ठा के पहले सौंप दें। ट्रस्ट से सारे लोग इस्तीफा दें और रामानंद संप्रदाय के जो साधु-संत हैं उनके लोगों को ट्रस्ट की जिम्मेदारी सौंपी जाए। और वो लोग फिर प्रतिष्ठा करें। तब हम स्वागत करेंगे चंपत राय जी की इस बात का। 

उन्होंने कहा कि हमें दिक्कत इस बात की है कि साधु संतों को हटा कर के ये कार्यकर्ता लोग वहां पर बैठे हैं। और साधु-संतों में भेद डालने की बात कर रहे हैं। जब चंदा ले रहे थे उस समय क्यों नहीं ये घोषित किए कि रामानंद संप्रदाय का मंदिर है तो रामानंद संप्रदाय के लोग देते। उस समय तो आपने पूरे देश के सनातनधर्मियों से चंदा लिया। उस समय हम लोगों से भी चंदा लिया। जब शंकराचार्य जी का मंदिर नहीं है तो शंकराचार्य से चंदा क्यों स्वीकार किए आप? उस समय ये स्पष्टता क्यों नहीं की? आपने पूरे देश से हर राम भक्त से वह किसी भी संप्रदाय का क्यों न हो उन सभी से चंदा लिया।

और उस चंदे के ऊपर आप ट्रस्टी बनकर बैठे और बैठने के बाद अब कह रहे हैं कि ये रामानंद संप्रदाय का मंदिर है। ये अनैतिक है। चंपत राय जी अगर आपमें थोड़ी भी नैतिकता बची हुई है तो त्याग पत्र दीजिए और रामानंद संप्रदाय के साधुओं को ट्रस्ट सौंपिये। हम बहुत खुश होंगे। हम उनका भी धन्यवाद करेंगे और रामानंद संप्रदाय का तो है ही उसकी कोई बात ही नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तरफ आप कहते हैं कि ये राष्ट्र का मंदिर बन रहा है एक तरफ आप कह रहे हैं कि केवल रामानंद संप्रदाय का मंदिर है। कहां गयी हृदय की विशालता? अब आप सनातन धर्म के अंदर, हिंदू धर्म के अंदर भेदभाव डालने की कोशिश कर रहे हैं। नहीं ये गलत है ये मंदिर समस्त सनातनधर्मियों का है।

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