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फिर झंझट में फंसेंगे रामदेव:फर्जी कंपनियों के सहारे बने रियल स्टेट मुगल

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बाबा रामदेव और पतंजली फूड प्राइवेट लिमिटेड, दोनों ही अस्तित्व में आने के बाद विवादों में हैं. ऊट-पटांग बयान तो कभी अपनी डींग हांकने की आदत से रामदेव खाने के कंकड़ की तरह किरकिराते रहे हैं. हेराफेरी के मामले में भी रामदेव कम नहीं है.

हाल ही में मेडिकल संस्थान के साथ झंझट में फंसे रामदेव ने सुप्रीम कोर्ट में कई राउण्ड माफी मांगी. इसके बाद उनकी कंपनियों के 14 प्रोडक्टों पर बैन लगा. कल, पर्सों में घटिया सोन पापड़ी बनाने के केस में पतंजली के तीन अफसरों को जेल भेजा गया.

अब फिर से एक बार बाबा के सामने उड़ता तीर पड़ गया है. ये तीर छोड़ा है मौजूदा समय शानदार खोजी पत्रकारिता कर रहे, “द रिपोर्टर्स कलेक्टिव” नाम के प्लेटफॉर्म ने. महिला रिपोर्टर ‘तपस्या’ ने ये रिपोर्ट कर बाबा के फर्जीवाड़े को कहीं का ना छोड़ने की प्लानिंग तो जरूर कर ली है.

इस संस्थान ने, बाबा का पूरा का पूरा फर्जीवाड़ा बेनकाब कर दिया है. कैसे रामदेव और उसके सहयोगियों ने कर-मुक्त धर्मार्थ ट्रस्ट खोलकर रुपया इनवेस्ट किया. कैसे, 2016 में, पतंजलि समूह से जुड़े लोगों ने योग और आयुर्वेद केंद्रों की स्थापना और प्रचार के लिए योगक्षेम संस्थान नामक एक गैर-लाभकारी चैरिटी कंपनी की स्थापना की, जिससे इसे कर-मुक्त दर्जा प्राप्त हुआ. देनदाताओं के मामले में ये गैर लाभकारी संस्थान सुपरप्रॉफिट में रहा. बालकृष्ण ने एकमुश्त बड़ी रकम दान की है.

जबकि इस गैर-लाभकारी संस्था ने छह वर्षों तक एक रुपये का दान नहीं किया, इसका उपयोग केवल करोड़ों रुपये के निवेश को पार्क करने के लिए किया गया था, जिसमें रुचि सोया में रामदेव के करीबी सहयोगियों द्वारा किया गया निवेश भी शामिल था, जांच के दौरान प्राप्त कंपनी के रिकॉर्ड से पता चलता है.

रिपोर्ट में कांग्रेस के समय से लेकर भाजपा सरकार बनने तक बाबा रामदेव ने कब-कैसे और कितनी बार कलर बदला है उसका भी जिक्र किया गया है. कैसे बाबा एक कुशर व्यापारी की तरह रणनीति बनाने वाली टीम को हैंडल व हायर करते हैं… आपको पढ़, जानकर ताज्जुब होगा.

आखिर कैसे पतंजलि समूह से जुड़े चार लोग – आचार्य प्रद्युम्न, फूल चंद्र, सुमन देवी और सविता आर्य ने 2016 में समूह की स्थापना की. कैसे फूल चंद्र अब स्वामी परमार्थदेव बना जबकि सुमन देवी.. साध्वी देवप्रिया बना दी गई.

स्वामी रामदेव को लेकर आज एक रिपोर्ट चर्चा में है। रिपोर्ट में सिलसिलेवार ढंग से बाबा रामदेव द्वारा संपत्ति बनाने के तरीके को बताया गया है। साथ ही यह भी कि दिल्ली की सीमा से लगे अरावली रेंज के जंगली गांव मंगर में, रामदेव को रियल एस्टेट मुगल के रूप में क्यों जाना जाता है? The Reporters Collective नामक वेबसाइट में Shrigireesh Jalihal और Tapasya की इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट है, जिसकी तारीफ हो रही है।

रिपोर्ट के अनुसार, एक स्थानीय रियल्टी डीलर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘बाबाजी ने अपनी कंपनियों के माध्यम से मंगर में जमीन के टुकड़े खरीदे।’ ‘यहां अलग-अलग कंपनियां हैं जिन्होंने जमीन खरीदी है। हम जानते हैं कि वे सभी बाबाजी के हैं क्योंकि खरीदारी में शामिल डीलर स्थानीय रूप से उनके लिए काम करने वाले माने जाते हैं।’ पड़ताल में रियल्टी डीलर की बात सही निकली, जांच में पाया गया कि पतंजलि समूह से जुड़ी कई फर्जी और अस्पष्ट कंपनियां, और ज्यादातर रामदेव के छोटे भाई और करीबी व्यापारिक सहयोगियों द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित हैं, हरियाणा के फरीदाबाद में स्थित मंगर में पिछले दस वर्षों से जमीन खरीद और बेच रही हैं।

रिपोर्ट के हवाले से लिखा गया है, ‘कॉर्पोरेट समूह और अमीर व्यक्ति मुखौटा कंपनियों को तैनात करने के लिए जाने जाते हैं- खोखली कंपनियाँ जो केवल कागजों पर मौजूद होती हैं- कुछ वैध और कई अवैध उद्देश्यों के लिए। शेल कंपनियां अपने द्वारा किए गए लेनदेन के वास्तविक लाभार्थियों को छिपाने और करों का भुगतान करने से बचने में मदद कर सकती हैं। इनका उपयोग अक्सर अमीरों द्वारा नागरिकों और सरकारों से अपनी वास्तविक संपत्ति छिपाने के लिए किया जाता है। यह तब है जब, भारत सरकार ने इस साल फरवरी में संसद में कहा था कि पिछले तीन वर्षों में उसने 1.2 लाख से अधिक ऐसी फर्जी कंपनियों को खत्म कर दिया है, जिन्होंने सरकार के पास अपने वित्तीय विवरण दाखिल नहीं किए थे।

इसके बावजूद, जांच में पता चला कि पतंजलि समूह से जुड़े लोग सरकार के रडार से बच गए। पतंजलि समूह से जुड़ी इनमें से कुछ कंपनियों ने कोई भी सामान बनाने या बेचने का व्यवसाय नहीं किया, बावजूद इसके पतंजलि समूह ने इन फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल अरावली पर्वत श्रृंखला के गांव मंगर में जमीन के बड़े हिस्से को खरीदने के लिए किया, जो दिल्ली के लिए फेफड़ों का काम करता है। इन शेल कंपनियों ने मंगर में जमीनों की बिक्री से प्राप्त आय को पतंजलि के साम्राज्य की अन्य कंपनियों को वापस भेज दिया, जिन्होंने अरावली पहाड़ियों के अन्य हिस्सों में अधिक जमीनें खरीदीं।

रिपोर्टरों ने डेढ़ दशक से अधिक समय के कॉर्पोरेट और भूमि रिकॉर्ड खंगालकर पड़ताल की। इन दस्तावेजों ने संदिग्ध शेल कंपनियों के जाल के स्वामित्व और निवेशकों को उजागर करने और जमीन के वास्तविक खरीदारों- पतंजलि साम्राज्य- से जुड़ने में मदद की। रामदेव ने काले धन को समाप्त करने के नरेंद्र मोदी के वादे का जोरदार समर्थन करते हुए, उनके लिए भारी प्रचार किया और 2011-14 के बीच अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करते हुए साम्राज्य का निर्माण किया।

फ़रीदाबाद, जहां मंगर स्थित है, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहे जाने वाले उभरते शहरों का एक हिस्सा है, जो इसे बिल्डरों के लिए मुफीद बनाता है। फ़रीदाबाद में वनभूमि के बड़े हिस्से को संरक्षण कानूनों से बाहर रखा गया है, जिससे रामदेव के पतंजलि समूह जैसे रियल-एस्टेट खिलाड़ियों के लिए अवसर पैदा हो रहे हैं। बीते कई सालों से, मंगर और दिल्ली के निकट अरावली के असुरक्षित हिस्से की वन भूमि को हड़पने के लिए व्यापारी, चूहे-बिल्ली का खेल खेलते रहे हैं।

पतंजलि ने हरियाणा और केंद्र में भाजपा के सत्ता में आने से पहले मंगर में जमीन खरीदी थी, गहनता से समीक्षा किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि 2014 के बाद की सरकारों ने अरावली पर्वतमाला में समूह की व्यावसायिक संभावनाओं के लिए इसे बेहतर बना दिया है। योग गुरु को हाल ही में केंद्र सरकार से भी अच्छी खबर मिली, जैसे ‘अगस्त 2023 में, केंद्र ने शीर्ष अदालत के सुरक्षा उपायों को प्रभावी ढंग से कमजोर कर दिया। इसने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन किया जिससे मंगर और अरावली के अन्य हिस्सों की वनभूमि के लिए कानूनी संरक्षण खत्म कर दिया।

हरियाणा के नवीनतम उपलब्ध डिजिटल भूमि रिकॉर्ड और कॉर्पोरेट फाइलिंग की समीक्षा से पता चलता है कि पतंजलि समूह ने एक दर्जन कंपनियों और एक ट्रस्ट के माध्यम से मंगर गांव में 123 एकड़ से अधिक जमीन पर कब्जा कर लिया है। यह संख्या और भी अधिक हो सकती है।

रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया है कि, उनके द्वारा, कंपनियों के वेब के पंजीकृत ईमेल पर विस्तृत प्रश्नावली भेजी गई, जिन्हें कॉपी करके पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) को भेज दिया। रिपोर्टर्स ने बाबा रामदेव के प्रवक्ता और आस्था टीवी के नेशनल हेड एस के तिजारावाला समेत आचार्य बालकृष्ण को कई प्रश्न मेल किए। जिसके बाद उन्हें, मंगर भूमि व्यापार में शामिल एक-तिहाई संस्थाओं से एक जैसी, कॉपी-पेस्ट प्रतिक्रियाएँ मिलीं। अन्य लोगों ने अनुस्मारक के बावजूद जवाब नहीं दिया।

इसके अलावा रिपोर्ट में पतंजली कोर्रूपैक पर खुलासा है. बताया गया है कि, बाबा रामदेव के भाई राम भरत और निकटतम व्यापारिक सहयोगी आचार्य बालकृष्ण, जो पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं, ने 2009 में कोर्रुपैक नामक एक कंपनी की स्थापना की। दोनों ने दावा किया कि कंपनी की स्थापना पैकेजिंग सामग्री के निर्माण के लिए की गई थी। शेयरों के एवज में उन्होंने मिलकर कंपनी में पूंजी के रूप में 1 लाख रुपये लगाए। कंपनी का पंजीकरण रामदेव के गृह क्षेत्र हरिद्वार, उत्तराखंड में किया गया था। नवीनतम कॉर्पोरेट फाइलिंग के अनुसार बालकृष्ण के पास कंपनी का 92% और भरत के पास बाकी हिस्सा है।

हालांकि, अस्तित्व में आने के बाद पिछले 12 वर्षों में, कंपनी ने एक रुपये का भी व्यवसाय नहीं किया है जिसके लिए इसकी स्थापना की गई थी। इसके बजाय, यह फर्म में लगाए गए पैसे के माध्यम से मंगर में जमीन खरीद और बेच रहा है। साल 2010 में आचार्य बालकृष्ण ने कंपनी को 2.99 करोड़ रुपये दिए थे। जल्द ही गंगोत्री आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड से 2.42 करोड़ रुपये और आरोग्य हर्ब्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड से 5.6 लाख रुपये की एक और किश्त आ गई। दोनों कंपनियों में बालकृष्ण के पास बहुमत शेयर हैं। आरोग्य जड़ी-बूटी के नाम ही मंगर में 28 एकड़ जमीन है।

रिपोर्ट में, Corrupack समेत अन्य पतंजलि समूह की कंपनियों, संस्कार इंफो टीवी प्राइवेट लिमिटेड के शेयर, आस्था भजन ब्रॉडकास्टिंग प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया एडवांस पैसा इत्यादि मामले को विस्तृत तौर पर बताया गया है।

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