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नेहरू नगर के 408 जर्जर मकानों के लिए भी री-डेवलपमेंट पॉलिसी तैयार

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इंदौर। पिछले दिनों शासन ने हाउसिंग बोर्ड के लिए जो री-डेवलपमेंट पॉलिसी बनाई है, उसमें पुराने और जर्जर निर्माणों को तोडक़र उनकी जगह अत्याधुनिक बिल्डिंगें निर्मित कराई जाना हैं। पिछले दिनों एलआईजी के जर्जर फ्लैटों के लिए भी यही प्रक्रिया शुरू की तो दूसरी तरफ 50 साल से भी अधिक पुराने हो चुके नेहरू नगर के 408 डुप्लेक्स मकानों को भी री-डवपलमेंट पॉलिसी के तहत लिया गया है। भोपाल मुख्यालय को इसका प्रस्ताव भेजा गया है। दरअसल नेहरू नगर के मकान भी अत्यंत खस्ता-जर्जर हो गए हैं और नगर निगम कुछ वर्ष पूर्व इन्हें खतरनाक भी घोषित कर चुका है। अभी तीन दिन पहले ही 13 फीट वॉल गिर गई थी। गनीमत रही कि कोई उसकी चपेट में नहीं आया। अब यहां के रहवासियों को एकजुटता दिखाते हुए री-डवलपमेंट प्रोजेक्ट के लिए सहमति देना चाहिए, ताकि उन्हें भी सुविधायुक्त नए मकान मिल सकें।

नगर निगम हर साल मानसून से पहले शहरभर में मौजूद खतरनाक मकानों की सूची जारी करता है। इस बार भी 150 ऐसे मकानों को झोनवार चिन्हित किया गया है, जिनमें से कुछ मकानों को अभी तोड़ा भी गया। दूसरी तरफ हाउसिंग बोर्ड की कॉलोनियों में भी वर्षों पहले बने मकान, फ्लेट अब जर्जर हो चुके हैं। सुखलिया से लेकर नंदानगर, नेहरू नगर, एलआईजी सहित अन्य स्थानों पर बने मकानों की यही स्थिति है। एमओजी लाइन के मकानों को तो स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के चलते निगम ने जमींदोज भी कर दिया है। नेहरू नगर के मकान भी 50 साल पहले निर्मित किए गए थे। तब यह क्षेत्र एक तरह से शहर से बाहर ही था। मगर अब तो बीच शहर में और अत्यंत मौके पर मौजूद है, जिसके चलते री-डवलपमेंट पॉलिसी सफलतापूर्वक अमल में लाई जा सकती है। अभी पिछले दिनों हाउसिंग बोर्ड आयुक्त चंद्रमौली शुक्ल ने एलआईजी के जर्जर फ्लेटों को री-डवलपमेंट पॉलिसी में शामिल करवाया और बोर्ड ने भी इसकी मंजूरी दे दी।

अब इसी कड़ी में नेहरू नगर के 408 जर्जर मकानों को भी इस पॉलिसी के तहत लिया गया है। इसके साथ ही रहवासियों से सहमति भी ली जाएगी। री-डवलपमेंट पॉलिसी के तहत खतरनाक घोषित किए गए जर्जर मकानों को जमींदोज कर उनकी जगह 20 फीसदी अधिक बड़े और सुविधाजनक फ्लेट या मकान बनाकर रहवासियों को दिए जाते हैं। इतना ही नहीं, जब तक नया प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो जाता तब तक का किराया भी हाउसिंग बोर्ड द्वारा ही दिया जाता है, ताकि रहवासी जब कहीं और किराए का मकान लें तो उसका आर्थिक भार भी उन पर ना पड़ें। इतना ही नहीं, बदले में रजिस्ट्री से लेकर अन्य कोई शुल्क भी रहवासियों को नहीं चुकाना पड़ेगा, बल्कि निजी क्षेत्र के बिल्डर-डवलपरों के माध्यम से इन री-डवलपमेंट प्रोजेक्टों को अमल में लाया जाएगा। अभी पिछले दिनों इंदौर के साथ-साथ जबलपुर-भोपाल में भी इस तरह के प्रोजेक्टों को मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली साधिकार समिति ने मंजूरी दी है।

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