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शासक चाहते हैं आजादी का अतीत नहीं, विभाजन की विभाषिका याद रखें-श्रवण गर्ग

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भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर व्याख्यान आयोजित हुआ

  इंदौर।शासकों और नागरिकों के अतीत अब अलग-अलग हो गए हैं। हमारा अतीत भारत छोड़ो आंदोलन है लेकिन शासकों का नहीं है। शासकों के अतीत में आजादी की लड़ाई खत्म होकर विभाजन की विभाषिका ने ले लिया है। उस अतीत में गांधी-नेहरु रहे हैं लेकिन इस अतीत को 14 अगस्त की विभीषिका से हटाना चाहते हैं। अब पाठ्यक्रम से संविधान की आत्मा को, गांधी-विभाजन को हटा रहे हैं। खादी को हटा कर हैंडलूम को बढ़ा रहे हैं। यही मिश्रण हमारे भविष्य में कर रहे हैं।

अभिनव कला समाज के सभागृह में डॉ राम मनोहर लोहिया सामाजिक समिति द्वारा आयोजित भारत छोड़ो आंदोलन स्मृति व्याख्यान ‘स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्य और वर्तमान चुनौतियाँ’ विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने कहा उस दौर में आजादी के पहले के तीन साल में करो या मरो में जाने कितनों ने जीवन होम दिया। उस त्याग-बलिदान पर अब नहीं सोच पाते। तब इस आंदोलन का हिंदू महासभा, सावरकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध किया था। जो तब विरोध कर रहे थे उस विचारधारा को मानने वाले आज सत्ता में हैं।

हमारे पड़ोस बांग्लादेश में जो चल रहा है यह भी अतीत को भुलाने का काम है। वहां के आजादी आंदोलन में शहीद

हुए लोगों के बच्चों को न्यायालय ने आरक्षण दिया तो इसका वहां के युवाओं ने विरोध किया। आंदोलनकारियों को रजाकार (गद्दार) कह कर शेख हसीना ने भी गलती की है। हमारे शासकों के भक्त भी अतीत को नहीं चाहते हैं। अब अतीत और भविष्य को बांटने का संघर्ष ही बड़ा संकट है। भारत छोड़ो आंदोलन हमारा अतीत है और वर्तमान में उन अतीत के प्रतीकों को तोड़ा जा रहा है। अब गांधी के पुतले पर गोली चलाई जाती है और गोड़से का मंदिर बनाया जाता है। ये सोच खतरनाक रास्ते पर ले जा रही है।

भारत के 50 लाख नागरिक अमेरिका में हैं और जाना चाहते हैं। सरकार इनके जाने से खुश है क्योंकि ये लोग वहां बसने के बाद जो पैसा भेजते हैं उस बढ़ते फॉरेन एक्सचेंज से सरकार खुश है। सरकार को चिंता उन करोड़ों लोगों की है जो पांच किलो अनाज मिलने से खुश हैं और सरकार बनाने में सहयोगी हैं।

इंदौर को संघ-भाजपा की बड़ी लेबोरेटरी

गर्ग ने कहा शासक वैचारिक दासता में जकड़ कर भारत को धार्मिक राष्ट्र में बदलने का एजेंडा पूरा करना चाहते हैं। इंदौर को संघ-भाजपा की बड़ी लेबोरेटरी माना जाता है। इसलिये यहां कोई बोलता नहीं। जाम का डर, हमले का डर, सारा मीडिया गुलाम है। दंगे-साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने में हमारा मीडिया सबसे आगे है। असहमति में कोई आवाज नहीं उठाना चाहता। अखबारों में जो छप रहा हो उससे असहमत हों तो अखबार को चिट्ठी लिख दीजिये। संपादकों की रीढ़ ही नहीं है वो हजार किलो ओवरवेट हैं। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता करते हुए श्रमिक नेता श्याम सुंदर यादव ने कहा मामा बालेश्वरदयाल मजदूरों-किसानों की बात करते थे। मैं कहना चाहता हूं किसी भी मुल्क की तरक्की तभी होती है जब अनाज पैदा करने वाला किसान और नवनिर्माण करने वाला मजदूर खुश रहता है। अब तो जो लाल किले से जो कहा जाता है वह पूर्ण सत्य मान लिया जाता है। समारोह का संचालन समाजवादी शशिकांत गुप्ते ने किया। स्व किशोर भाई (विसर्जन आश्रम) के पुत्र समन्वयक गुप्ता व स्कूली बच्चों ने रुके ना जो, झुके ना जो..’ गीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की रुपरेखा सुभाष रानाडे ने पेश की।आभार माना रामस्वरूप मंत्री ने ।

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