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*पंजाब के जज्बे को सलाम

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रजनीश भारती

हिन्दुस्तान के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश का प्रधानमंत्री, जो अमेरिका में बड़ी-बड़ी रैलियां करता हो, वह अपने देश के भीतर जनता के प्रतिरोध के चलते रैली नहीं कर पा रहा हो। 
पंजाब के फिरोजपुर में पांच जनवरी 2022 को भाजपा की रैली आयोजित की गयी थी। परन्तु जनता की उपस्थिति एकदम नगण्य थी।
कुछ लोगों का कहना है कि रैली में 700 लोग आये थे मगर सच्चाई यह है कि भाजपा जैसी पार्टी की रैली हो जिसमें प्रधानमंत्री मुख्यातिथि हो तो 700 लोग तो आयोजक टीम के ही हो जाते हैं। मतलब यह कि रैली में जनता की उपस्थिति 100 से भी कम थी। 
कुछ लोग कह रहे हैं कि रैली में भीड़ कम होने के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद जाना नहीं चाहते थे, इसीलिये मौसम का बहाना बनाकर सड़क मार्ग से गये और जान को खतरा बताकर वापस आ गये। 
कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधान मंत्री का यह कहना कि ‘अपने मुख्यमंत्री को शुक्रिया कहना कि मैं आज जिंदा बचकर आ गया।’, चुनाव में सहानुभूति बटोरने का एक हथकण्डा है। ये सच हो सकता है कि यह हथकण्डा ही हो।
मगर सच्चाई का एक पहलू यह भी है कि शोषक और शोषितों के बीच एक जंग चल रही है, जिसका ऐलान तो नहीं हुआ है मगर शोषकवर्ग की ओर से एकतरफा हमले जारी हैं। 
इस जंग में शोषक वर्ग की सरकार के हमले का तरीका देखिये वह मंहगाई बढ़ाकर गरीबों की हत्या कर रही है, बेरोजगारी बढ़ाकर नौजवानों की जिन्दगी बर्बाद कर रही है, भ्रष्टाचार के जरिये उनका ख़ून निचोड़ रही है, ऊपर से कर्ज पर भारी सूद, बढ़ते टैक्स, बढ़ते अंधविस्वास, एक प्लान के तहत बढ़ाई जा रही साम्प्रदायिक नफरत आदि हमलों से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। 
जनता पर ये सारे हमले देशी विदेशी पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिये किये जा रहे हैं। ऊपर से किसानों के सारे खेत छीन कर देशी विदेशी पूंजीपतियों के हवाले करके किसानों की फसलों और नस्लों को बरबाद करने के लिये तीन काले कानून थोपा जा रहा था। जिसके खिलाफ किसानों ने शान्तिपूर्ण प्रतिरोध किया।
पूरे साल भर तक खुले आसमान के नीचे रहकर जाड़ा, गर्मी, बरसात सब झेला, कड़ाके की ठंड में किसानों रोकने के लिए उनके ऊपर ठंडे पानी की बौछार किया, लाठीचार्ज किया, गोली चलायी गयी, सड़क पर खाईं खोदी गयी, कीलें गाड़ दी गयीं, बैरिकेड लगाये, आरसीसी की चार-पांच फुट चौड़ी दीवारें बना दिया, कंटीले तार लगा दिया। बर्बरता की सारी हदें पार करके किसानों को गाड़ियों से रौंद कर मार डाला, सात सौ से अधिक किसान शहीद हो गये। फिर भी किसानों की मांग मानने की बजाय उनको बदनाम करने की साजिशें की जाती रहीं।
कानून वापसी तो किसानों ने करवा लिया। मगर अन्त में सरकार धोखाधड़ी पर इस तरह उतर आयी कि प्रदर्शनकारी किसानों की सारी मांगे मानने का आश्वासन देकर किसानों को मोर्चे से हटने के लिये राजी कर लिया और अभी तक एक भी मांग नहीं माना। 
अब बताईये ये गरीब जनता कितने हमले झेलेगी? कितना बर्दाश्त करेगी? उसके सब्र का बांध तो टूटना ही चाहिये। दब जाने पर चींटी भी मुड़कर काट लेती है, तो सदियों से दबा-कुचला मजदूर किसान, बुनकर, दस्तकार कब तक बर्दाश्त करेगा? क्या वह सड़क पर भी न उतरे?
पूरे देश की उत्पीड़ित जनता मौजूदा प्रधानमंत्री से इतना खफा हैं कि देश के किसी भी कोने में प्रधानमंत्री मोदी को बिना सिक्योरिटी के खड़ा कर दीजिये तो आमजनता पीट-पीटकर कचूमर निकाल देगी। 
पंजाब हरियाणा तो सबसे ज्यादा गर्म है। जनता के अन्दर इतना गुस्सा तो अंग्रेजों के जमाने में भी नहीं देखा गया था। मगर इस गुस्से का फायदा विपक्षी पूंजीवादी पार्टियों को ही मिलने जा रहा है। 
जनता का गुस्सा क्रान्तिकारी दिशा में नहीं बढ़ पा रहा है। क्योंकि यह गुस्सा सिर्फ एक पार्टी और उसके नेता के प्रति दिख रहा है। यह गुस्सा उस व्यवस्था के खिलाफ नहीं बन पा रहा है जिस व्यवस्था में से ऐसी तमाम जनविरोधी पार्टियां और उनके नेता पैदा होते रहते हैं। 
जिस व्यवस्था में विदेशी पूंजी खुले आम लूट पाट कर रही हो और उस विदेशी पूंजी की दलाली करने वाले अपने ही देश के बड़े पूंजीपति और अर्धसामन्ती ताकतें मिलकर देश की जनता को लूट रही हों। उस व्यवस्था के खिलाफ जनता का गुस्सा तो होना ही चाहिये। 
जब तक इस अर्धसामन्ती-अर्धऔपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ जनता का गुस्सा नहीं भड़केगा तब तक जनता को फुटबाल की तरह बारी-बारी से कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस जैसी पार्टियों के जूतों की ठोकर खाते रहना होगा। 75 साल से यही हो रहा है।
अगर लाठी-गोली के सहारे टिकी मौजूदा सरकार को हटाना है तो लाठी-गोली पर टिकी मौजूदा व्यवस्था को पलटकर भगतसिंह के सपनों के अनुसार भारत को धर्मनिरपेक्ष समाजवादी लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना होगा।
अत: जनता के इस गुस्से को एक धक्का और देकर सरकार की खिलाफत के साथ ही पूरी व्यवस्था की खिलाफत तक ले जाना होगा। मगर उसके लिये जरूरी है नयी व्यवस्था का मुकम्मल नक्शा और पुरानी व्यवस्था को ढहाने का तरीका। 
अब पंजाब हरियाणा जाग रहा है, उनके जज्बे को सलाम। अब वह व्यवस्था के खिलाफ खड़े होने के लिये भूमिका तैयार कर रहा है एक दिन पूरे देश की पूरी जनता जाग उठेगी। वह वक्त आ गया है। फ़ैज़ के शब्दों में-
*ऐ खाक नशींनों उठ बैठो अब वक्त करीब आ पहुंचा है।**जब तख्त उखाड़े जायेंगे, जब ताज उछाले जायेंगे ।।*
*रजनीश भारती**जनवादी किसान सभा*

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