विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A में सीटों का फॉर्मूला क्या होगा, इसे लेकर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। जिन चार राज्यों में गठबंधन की सीटों को लेकर मामला फंस रहा है, उसमें उत्तर प्रदेश समेत पश्चिम बंगाल, पंजाब और दिल्ली शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच में “फॉर्मूला 21” का इस्तेमाल किया जा सकता है। गठबंधन की बैठक से पहले ही इस तरह की कवायद शुरू हो गई है। दरअसल उत्तर प्रदेश में गठबंधन के दलों के बीच में यह वह फार्मूला है, जिसमें उत्तर प्रदेश की तकरीबन ऐसी 21 सीटें हैं, जिसमें समाजवादी पार्टी कभी चुनाव नहीं जीती है। सूत्रों की मानें अगर सब कुछ पहले से तय योजना के आधार पर चला तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी गठबंधन के हिस्से में तकरीबन 21 सीटें दे सकती है।
बैठक में शामिल सूत्रों का कहना है कि पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे चार प्रमुख राज्यों में सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई है। हालांकि इस बैठक में सीट बंटवारे पर किसी भी तरीके की तल्खी और कड़ा रुख नहीं देखा गया…
गठबंधन की बैठक के दौरान चार अहम राज्यों पर सीट बंटवारे के फॉर्मूले को लेकर चर्चा हुई। इसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और पश्चिम बंगाल शामिल रहे। सूत्रों की मानें तो सीटों के बंटवारे को लेकर दिल्ली के अशोका होटल में गठबंधन की बड़ी बैठक में हुई चर्चा में जल्द ही सीटों के बंटवारे के आधार पर तैयारियां शुरू कर दी जाएंगी। बैठक में शामिल सूत्रों का कहना है कि पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे चार प्रमुख राज्यों में सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चा हुई है। हालांकि इस बैठक में सीट बंटवारे पर किसी भी तरीके की तल्खी और कड़ा रुख नहीं देखा गया। गठबंधन में शामिल एक प्रमुख दल से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि ज्यादातर राज्यों में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला पहले से ही तय हो गया है। इस फॉर्मूले के आधार पर सोमवार को प्रमुख नेताओं के बीच में चर्चा हुई।
सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में सीटों के “फॉर्मूला 21” के तहत समाजवादी पार्टी उन सीटों को गठबंधन को दे सकती है, जहां पर पार्टी आज तक कभी चुनाव नहीं जीती। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य और पूर्वांचल की भी कुछ सीटें शामिल हैं। इसलिए अनुमान यही लगाया जा रहा है कि समाजवादी पार्टी इन 21 सीटों पर गठबंधन के तहत सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लागू कर सकती है। यानी INDIA गठबंधन में समाजवादी पार्टी कांग्रेस और अन्य गठबंधन के दलों के लिए तकरीबन दो दर्जन सीटों के आसपास सीटें छोड़ सकती है।
समाजवादी पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है की सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस पार्टी या अन्य दलों के साथ ना कोई तल्खी है और न ही कोई अडिगता है। यही वजह है की सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर किसी भी तरीके का कोई विवाद नहीं होने वाला है। सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में सीटों के फॉर्मूले को लेकर लखनऊ से लेकर दिल्ली तक तकरीबन सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर सहमति बन चुकी है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि उनकी ओर से भी कोई ऐसी नाजायज सीट शेयरिंग की डिमांड नहीं की जा रही है, जिस पर समाजवादी पार्टी को कोई आपत्ति हो। समाजवादी पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस किसी भी तरीके का नाजायज दबाव डालकर सीट बंटवारे की बात नहीं करेगी। पार्टी से जुड़े सूत्र मानते हैं कि जो सीट शेयरिंग का “फॉर्मूला 21” चर्चा में आया है। अगर सब कुछ सही रहा तो इसी पैटर्न पर सीटों का बंटवारा हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश के अलावा सीटों में पंजाब, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में भी शेयरिंग के फॉर्मूले पर पेंच फंसा हुआ है। सूत्रों की मानें तो दिल्ली में मौजूद पार्टी के प्रमुख नेताओं की तरफ से सबसे पहले राज्य स्तर पर सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को समझकर आगे बढ़ने का मसौदा पेश किया गया। तय यही हुआ कि सभी राज्य अपने-अपने स्तर पर पहले सीटों के फॉर्मूले को राज्य स्तर पर ही आगे बढ़ाएं। उसके बाद 31 दिसंबर तक सीटों के शेयरिंग फॉर्मूले को लागू कर दिया जाए। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे कहते हैं कि जिन राज्यों में सीट शेयरिंग को लेकर कुछ पेचीदगियां हैं उन पर चर्चा हुई है। जो भी समस्याएं हैं उनको दूर कर जल्द ही चुनाव में जाने की तैयारी की जाएगी।
बैठक में शामिल सूत्रों के मुताबिक सोमवार को हुई बैठक में चार महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई है। इसमें प्रमुख और महत्वपूर्ण मुद्दा संसद के भीतर हुई सुरक्षा की चूक का रहा। इसके अलावा इस बैठक में सांसदों की लगातार निलंबन की प्रक्रिया पर गहरी नाराजगी भी जताई गई, उस पर भी चर्चा हुई। बैठक के दौरान तय हुआ कि गठबंधन में शामिल सभी दल केंद्र सरकार की नाकामियों और उनके रवैये का राष्ट्रीय स्तर पर विरोध करेंगे। इसके लिए बाकायदा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियों और नेताओं को जिम्मेदारियां भी दी गई हैं। इसके अलावा महत्वपूर्ण मुद्दा प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर के भी रहा। सूत्रों की मानें तो टीएमसी ने प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर खरगे के नाम की चर्चा की। हालांकि आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री के चेहरे पर कोई फैसला नहीं लिया गया।