अग्नि आलोक

घोटालेबाज हुए रिटायर्ड,अफसर जांच में देते रहे क्लीनचिट

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भोपाल। सूबे के तमाम विभागों में अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा बाली कहावत पूरी तरह से फिट बैठती है। तमाम घपले और घोटालेबाजों को बचाने में पूरा महकमा लग जाता है। इसका उदाहरण है महिला बाल विकास विभाग। विभाग के अफसरों ने मिलकर 26 करोड़ रुपए का घोटाला कर डाला। इस मामले में लगातार हुई शिकायतों के बाद विभाग ने हर बार जांच तो कराई लेकिन आरोपियों को क्लीनचिट देने में कोई कोताही नहीं बरती।

 मामले ने तूल पकड़ा तो मुख्यमंत्री ने पूरे मामले में कैफियत मांग ली जब कहीं जाकर आनन फानन में आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। लेकिन इस मामले में पुलिस ने भी चालान पेश करने की जहमत नहीं उठाई। कार्रवाई के दौरान आरोपियों को न्यायालय से स्थगन लेने का भरपूर मौका दिया गया , जिसकी वजह से तीन आरोपी तो अपनी पूरी सेवा करने के बाद अब सेवानिवृत्त हो गए हैं। यही नहीं बाकी कई आरोपी भी कोर्ट से कार्रवाई के खिलाफ स्ट्रे लेकर मजे से अब भी नौकरी कर रहे हैं। इस मानदेय घोटाले में लिप्त राजधानी के आठ में से तीन बाल विकास अधिकारी राहुल संधीर, मीना मिंज और कृष्णा बैरागी सेवानिवृत्त हो गए हैं, यह तीनों ही सवा साल से हाई कोर्ट के स्थगन पर चल रहे थे।  दरअसल यह पूरा मामला वर्ष 2017 में सामने आया था। इस मामले के सामने आने के बाद जब जांच हुई तो इसी तरह का घोटाला 14 अन्य जिलों में सामने आया। इस मामले में कई बड़े अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध रही। इस पूरे घोटाले को करीब तीन साल से लगातार अंजाम दिया जा रहा था। इसके लिए अधिकारियों द्वारा एक माह में दो बार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय जारी कर दिया जाता था। इसमें से एक बार की राशि का भुगतान चपरासी, कंप्यूटर आपरेटर और अपने परिचितों के बैंक खातों में जमा करा दिया जाता था। इसके खुलासे के बाद भोपाल में पदस्थ बाल विकास परियोजना अधिकारी राहुल संधीर, कीर्ति अग्रवाल, सुमेधा त्रिपाठी, कृष्णा बैरागी, मीना मिंज, बबीता मेहरा, नईम खान और अर्चना भटनागर को निलंबित कर पांच लिपिकों की सेवाएं भी समाप्त कर दी गई थीं। इसके बाद सरकार ने राहुल संधीर, कीर्ति अग्रवाल, कृष्णा बैरागी सहित चार अधिकारियों की बर्खास्तगी का प्रस्ताव लोक सेवा आयोग को भेजा था, जिसकी मंजूरी मिलने के बाद भी कोर्ट के स्थगन की वजह से उन्हें बर्खास्त नहीं किया जा सका। दरअसल आरोपियों द्वारा निलंबित अधिकारियों ने एक मामले के लिए एक साथ दो जांच कराने पर आपत्ति उठाते हुए हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। जिस पर स्थगन मिला है। इन अधिकारियों का तर्क है कि एक ही मामले में दो कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। जबकि विभाग का मानना है कि विभाग में रहते हुए आर्थिक गड़बड़ी करने के कारण विभागीय जांच होनी चाहिए और मामला अमानत में खयानत का भी बनता है इसलिए पुलिस कार्रवाई भी होनी चाहिए।
आधा दर्जन बार दी गई क्लीनचिट
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में घोटाला सामने आए 4 साल का समय बीत गया है, लेकिन अभी तक भी इस मामले में जांच पूरी नहीं हो पाई है। खास बात यह है कि इस मामले में 6 बार अलग-अलग टीमों ने जांच की, लेकिन सभी टीमों ने हर बार अपनी जांच में आरोपियों को क्लीन चिट दे डाली थी। इस टीम में बतौर मुख्य अधिकारी जांच तत्कालीन कलेक्टर निशांत वरवड़े, संभागीय संयुक्त संचालक स्वर्णिमा शुक्ला, उप संचालक ज्योति श्रीवास्तव और वित्त सलाहकार राजकुमार त्रिपाठी ने की थी. इन सभी ने आरोपियों को क्लीनचिट दे दी थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की जांच में यह घोटाला सामने आया था, तब शुरूआती दौर में सिर्फ भोपाल और रायसेन जिले में 9 बाल विकास परियोजना अधिकारियों और 5 लिपिकों पर 6 करोड़ रुपए के गबन का आरोप लगा था। इसके जांच आगे बढ़ी तो 14 और जिलों में घोटाला होने के सबूत मिले, लेकिन आरोपियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस मामले में जब मुख्यमंत्री कार्यालय ने पिछले साल सितंबर में जांच रिपोर्ट तलब की तो आनन-फानन में 94 अफसरों और  महिला एवं बाल विकास विभाग ने घोटाले के समय राजधानी में जिला परियोजना अधिकारी रहीं उपासना राय पर 14 लाख की रिकवरी निकली थी। राय ने यह राशि सरकारी खजाने में जमा करा दी और विभाग ने उन्हें निर्दोष मान लिया। पहले उन्हें सागर पदस्थ किया और कुछ दिन बाद उन्हें मुरैना में जिला कार्यक्रम अधिकारी बना दिया था।

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