Site icon अग्नि आलोक

लघु~कहानी : जन्मजात गधा

Share

 जूली सचदेवा 

       _एक दिन गधा बोलने लगा।उसने लोगों से कहा – ये जो तुम लोग बोलते हो, ये भाषा ही नहीं है।मैं जो बोलता हूं वही भाषा है।_

        कुछ लोगों ने कहा- लेकिन हम लोग आपकी भाषा नहीं समझते।

गधे ने कहा –  मेरी भाषा समझने के लिए तुम्हें गधा बनना पड़ेगा।

लोगों ने कहा- हम कैसे गधे बन सकते हैं।

गधे ने कहा-  गधा बनना बहुत आसान है।लोग बहुत आसानी से गधे बन जाते हैं । मैंने तो करोड़ों को गधा बनता देखा है।

   _लोगों ने कहा-  हमें बताओ न कि हम कैसे गधे बन सकते है!_

  गधे ने कहा-  रोज़  टीवी देखा करो।

      लोगों ने कहा-  तो क्या तुम यह कहना चाहते हो कि टीवी पर जो एंकर आते हैं वे गधे हैं?

गधे ने कहा- मैं इतना बड़ा सम्मान सारे टीवी एंकरों को नहीं देना चाहता। पर उनमें से अधिकतर सम्मानित और धनवान गधे ही है ।

लोगों ने कहा-  उन एंकरों की क्या पहचान है?

     गधे ने कहा-  वे सदा गुस्से में रहते हैं, बहुत ऊंची आवाज में बोलते हैं, हाथ पैर चलाते हैं, उनके मुंह से झाग निकलता है, उनकी आंखें और  चेहरे लाल हो जाते हैं। वे बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें देखकर कभी यह लगता है कि वे अभिनेता है और कभी यह लगता है कि वे नेता हैं।

लोगों ने कहा –  तो क्या सिर्फ उन्हें देख और सुनकर लोग गधे बन जाते हैं? 

गधा बोला – हां उन्होंने करोड़ों लोगों को गधा बना दिया है।

     लोगों ने कहा-  खैर यह सब छोड़िए, यह बताइए कि आप कैसे गधे बने?

    _गधे ने कहा-  आप लोग मेरा क्यों अपमान कर रहे हैं। मैं पैदाइशी गधा हूं।_

     (चेतना विकास मिशन)

Exit mobile version