इन्दौर । आश्चर्यान्वित कर देने वाला सिरिभूवलय यंत्रात्मक ग्रन्थ, ताडपत्र एवं ताम्रपत्र विश्व की अमूल्य धरोहर हैं। सिरि भूवलय में इसमें अनेकों ग्रन्थ, पांच तरह की भगवत गीता, अप्राप्त प्राचीन ग्रन्थ गर्भित हैं और जो केवल अंकों में ही लिखा गया है ऐसा ग्रन्थ तो अद्भुत ही है, इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसादजी ने इसे देखकर आठवां आश्चर्य कहा था, यह अपने आप में अनूठा व केवल जैनागम ही नहीं अपितु समस्त धर्मों यहां तक कि 363 दर्शनों को, चौसठ कलाओं को आत्मसात् किये हुए है। ये विचार जैन संस्कृति शोध संस्थान जिंसी- इन्दौर में श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत् परिषद् के तत्वावधान में आयोजित एक कार्यक्रम में बुधवार को पहुंचे आचार्य श्री विमदसागर जी मुनिराज ने व्यक्त किये। उन्होंने आगे कहा सिरिभूवलय की आधार भाषा और लिपि हलेय कन्नड है, उपरान्त अठारह महाभाषाएं तथा 700 लघुभाषाएं निर्गत होती हैं। यह ग्रन्थ आज के वैज्ञानिकों को चुनौती है।
विगत बीस वर्षों से सिरिभूवलय पर अनुसंधान, डिकोडिंग कर रहे डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ ने आचार्यश्री विमदसागर जी व संघ और उपस्थित विद्वानों तथा जन समुदाय को इसको डिकोड करने की विशेष विधि और अब तक किये कार्य का अवलोकन कराया। सिरिभूवलय अन्वेषण परियोजना की परियोजनाधिकारी श्रीमती आशा जैन जैन संस्कृति शोध संस्थान में चल रहे शोध, ताडपत्रों व ताम्रपत्रों का परिचय दिया। कार्यक्रम में श्री दिगम्बर जैन पंचबालयति मंदिर शोध संस्थान के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी जिनेश मलैया, प्रतिष्ठाचार्य श्री सनतकुमार विनोद कुमार, डॉ. भरत जैन, महेन्द्रकुमार जैन एल आई सी, उत्तमचंद्र जैन, जैन विभव के संपादक अनुभव जैन, बबन कदम, बिक्की दा जिन्सी, हेमन्त जैन मल्हारगंज, आकांक्षा जैन, सानु जैन, सारांश जैन, पारस जैन, नैनकी, अनुष्का जैन आदि विशिष्ट महानुभाव सम्मिलित हुए।
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज