कोलकाता: चिटफंड घोटाले की जांच चल रही थी। केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) की टीम कोलकाता में पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से पूछताछ करने जाती है। कुमार के घर के बाहर ऊनी शॉल ओढ़े पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ जाती हैं। इसके बाद कोलकाता पुलिस ने सीबीआई के कुछ अधिकारियों को हिरासत में ले लिया। देश के इतिहास में ये एक अभूतपूर्व घटना थी। ये बानगी मात्र थी कि ममता केंद्रीय जांच ऐजसियों क विरोध किस हद तक करती हैं। लेकिन अपने मंत्री पार्थ चटर्जी को लेकर उनकी खामोशी सबको हैरान कर रही है। जबकि ईडी (ED) ने पार्टी के एक और विधायक माणिक भट्टाचार्य को भी पूछताछ के लिए बुलाया है।
इसम मामले पर ममता ने अभी तक कुछ बोला तो वह मात्र इतना कि अगर पार्थ चटर्जी दोषी हैं तो उन्हें आजीवनन उम्र कैद हो। ममता के पुराने रिकॉर्ड को देखते हुए ऐसे बयान की उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। लेकिन इस बदालव की वजह क्या है? इस खामोशी की वजह क्या है? ममता ने उप राष्ट्रपति चुनाव में भी विपक्ष के प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया। जबकि बीजेपी उम्मीदवार और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ उनकी तल्खी जगजाहिर है। ऐसे में क्या ममता बैकफुट पर हैं? बात तो यहां तक हो रही कि उनके और बीजेपी के बीच कुछ पक जरूर रहा।
मई 2021 में जब नारद रिश्वत मामले में फिरहाद हकीम, मदन मित्रा, सुब्रत मुखर्जी और शोवन चटर्जी को सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (CBI) ने गिरफ्तार किया था, तब कई टीएमसी कार्यकर्ताओं ने कोलकाता में निजाम पैलेस में सीबीआई के मुख्यालय और भाजपा मुख्यालय का घेराव किया था। बनर्जी ने भी सीबीआई कार्यालय पर धावा बोल दिया और करीब छह घंटे तक धरना दिया और मामले में चार नेताओं की बिना शर्त रिहाई या उन्हें भी गिरफ्तार करने की मांग की।
इससे पहले वह कोलकाता के एस्प्लेनेड में दो दिवसीय धरने पर बैठी थीं जब सीबीआई ने 2019 में शारदा चिट-फंड मामले के संबंध में कोलकाता के तत्कालीन पुलिस आयुक्त राजीव कुमार को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी। उन्होंने 2017 में भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा था जब टीएमसी सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को रोज वैली चिटफंड मामले में गिरफ्तार किया गया था।
पार्थ के फोन का जवाब तक नहीं दिया
23 जुलाई की रात जब राज्य के उद्योग, वाणिज्य और उद्यम मंत्री पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार किया गया तो बताया गया कि उन्होंने टीएमसी सुप्रीमो को तीन फोन किए। लेकिन उनकी कॉल का कोई जवाब नहीं आया। चटर्जी के अरेस्ट मेमो से पता चला कि 69 वर्षीय नेता ने अपने बॉस ममता को फोन करने का विकल्प चुना। गिरफ्तारी के बाद उन्हें पहली बार 2.33 बजे फोन किया। फिर उन्होंने सुबह 3.37 बजे और 9.35 बजे फिर से कोशिश की। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि पार्टी नेता फिरहाद हाकिम ने इस बात से इनकार किया कि चटर्जी ने टीएमसी प्रमुख को फोन किया था।
दबाव में क्यों है टीएमसी?
शिक्षम भर्ती घोटाले में ममता के नजदीकी और राज्य के वाणिज्य मंत्री पार्थ चटर्जी और उनकी सहयोगी अर्पिता मुखर्जी को ईडी ने गिरफ्तार किया है। अर्पिता के घर से 21 करोड़ रुपए कैश और लाखों रुपए के गहने बरामद हुए हैं। राज्य में जब ये घोटाला हुआ था, तब पार्थ शिक्षा मंत्री थे।
कई लोगों का मानना है कि पार्थ चटर्जी के मामले में अगर टीएमसी उनका पूरा समर्थन करती है तो वे एसएससी के उन हजारों उम्मीदवारों को और नाराज कर देंगे जो शायद खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और लगभग 500 दिनों से विरोध कर रहे हैं।
इस बारे में हमने बंगाल के बड़े हिंदी अखबार के संपादक और राजनीतिक मामलों की समझ रखने वाले केडी पार्थ से बात की। वे कहते हैं, ‘भले ही यह पता नहीं चल पाया है कि अर्पिता के घर मिले पैसे किसके हैं। लेकिन इतनी बड़ी रकम मिलने और उसमें पार्थ चटर्जी का नाम आने के बाद टीएमसी बैकफुट पर है। एक दिन पहले शहीद दिवस रैली में अभिषेक बनर्जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि टीएमसी में भ्रष्ट नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है। उसके 48 घंटों बाद ही पार्टी एक ऐसे नेता के साथ कैसे खड़ी हो सकती थी जिसके करीबी सहयोगी के फ्लैट से 20 करोड़ रुपए कैश मिला हो। अंदर की खबर यह भी है कि टीएमसी के दूसरे नेता चटर्जी के खिलाफ हैं। ममता इसलिए भी खामोश हैं।’
हालांकि केडी पार्थ यह भी कहते हैं कि गेंद अब ममता के पाले में नहीं है। वे एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘ममता बनर्जी बैटिंग कर रही हैं और बॉलर खतरनाक है। उसके पास स्पीड है और स्विंग भी। दूसरी ओर से टीम का साथ देन वाले दूसरे खिलाड़ी भी बेहाल है। ऐसे में ममता अपना विकेट बचाने और लंबी पारी खेलने के लिए डिफेंसिव मूड में हैं। उन्हें पता है कि फिलहाल विकेट बचाने का एक अच्छा तरीका है। आक्रामक शैली उनके लिए नुकसान दायक साबित हो सकता है।’
क्या भतीजे-बहू को लेकर भी दबाव में हैं ममता?
ममता के सामने बस एक परेशानी नहीं है। पश्चिम बंगाल के कोयला खनन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनके भतीजे और बहू पहले से ही ईडी के निशाने पर हैं। सीबीआई ने 28 नवंबर 2021 को पश्चिम बंगाल में 45 जगहों पर छापा मारा। टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के करीबी विनय मिश्रा ये यहां भी छापा पड़ा। इसके बाद कुछ गवाहों ने उनकी पत्नी रुजिरा का भी नाम लिया। दोनों को कई बार पूछताछ के लिए बुलाया जा चुका है। इनके कई करीबियों के भी नाम इस घोटाले में हैं।
इस मामले को लेकर ममता पहले से ही दबाव में हैं। जानकारों का मानना है कि हो सकता है कि बीजेपी और टीएमसी के बीच कोई बातचीत हुई हो। राजनीतिक पत्रकारिता कर रहे जिवानंद बसु इससे इनकार करत हैं। वे कहते हैं, ‘ये बातें हो तो रही हैं है। लेकिन इसकी प्रमाणिकता कितनी है, यह भी समझना होगा। क्योंकि कोयला घोटाला मामला आज का नहीं है। बावजूद इसके ममता का बीजेपी के खिलाफ आक्रामक रवैया तो रहा ही है।’
‘हां, ये बात सही है कि ममता इस बार ज्यादा दबाव में हैं। कोयला घोटाला को लेकर पार्टी में बगावत की आहट थी। अब एक और घोटाले की वजह से ममता को यह भी डर है कि कहीं पार्टी में ये बगावत ज्यादा मुखर ना हो जाए। बात अब पार्टी की अस्मिता को लेकर भी है। ऐसे में ममता अब जरा भी रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं।’ वे आगे कहते हैं।
लेकिन अगर टीएमसी और बीजेपी के बीच किसी मुद्दे पर कोई बात बनी है तो इसमें बीजेपी का क्या फायदा होगा? इस पर केडी पार्थ कहते हैं कि उप राष्ट्रपति चुनाव को लेकर ममता एक तरह से बीजेपी के साथ ही थीं। वह भी तब जब उनके उम्मीदवार से उनकी कभी पटी नहीं। अंदर की बात तो यह है कि उप राष्ट्रपति को समर्थन देने वाली बैठक से पहले ममता दार्जिलिंग भी थीं। वहां असम के सीएम की उनसे मुलाकात होती है। हालांकि ये बैठक गुप्त थी।
उसके बाद ही ये खबर आई कि ममता विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को अपना समर्थन नहीं देंगी। इससे यह भी समझना होगा कि इधर के दिनों में कांग्रेस से ममता का संबंध भी ठीक नहीं लगा। ऐसे में ममता बीजेपी के खिलाफ एक दूसरा विकल्प भी बनाकर चलना चाह रही हैं। उधर बीजेपी की नजर कहीं न कहीं अगले लोकसभा चुनाव पर है। उसे शायद इसका एहसास है कि ममता के खिलाफ रुख बदलने पर उसे आगे अधिक फायदा हो सकता है