श्रीकृष्ण गमन पथ: संदीपनी आश्रम से लेकर नारायणा तक
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भोपाल प्रदेश में श्री राम पथ गमन की तरह ही भगवान श्री कृष्ण गमन पथ का विकास किये जाने की परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण से संबंधित प्रदेश के विशेष स्थलों जैसे जानापांव (जिला इंदौर), अमझेरा (जिला धार), नारायणा (जिला उज्जैन), व आदि स्थलों को श्रीकृष्ण पाथेय के रूप में विकसित किए जाने की योजना तैयार की गई है। इसकी घोषणा पहले ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के द्वारा की जा चुकी है।
उज्जैन के मंगलनाथ रोड पर स्थित महर्षि सांदीपनि आश्रम भगवान श्रीकृष्ण की विद्यास्थली के रूप में विश्वविख्यात है। यह वही स्थान है, जहां जगद्गुरु भगवान श्रीकृष्ण को उनके गुरु मिले थे। महर्षि सांदीपनि व्यास के आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा ग्रहण की थी। यह स्थल श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता जो सम्पूर्ण विश्व में मित्रता की मिसाल के रूप में जानी जाती है, उसका साक्षी भी है। यहीं पर श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई थी। भगवान श्रीकृष्ण के गुरु महर्षि सांदीपनि व्यास एक महान तपस्वी सौलह कलाओं में पारंगत विद्वान ब्राहमण के पुत्र थे। वे मूल रूप से काशी के रहने वाले थे। जब वे उज्जयिनी आए तो यहां भयंकार अकाल पड़ा था। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उज्जैन नगरी को आशीर्वाद दिया कि यहां कभी अकाल नहीं पड़ेगा और यह क्षेत्र मालवांचल के नाम से जाना जाएगा। महर्षि सांदिपनी ने इसके पश्चात उस समय चंदन वन के नाम से विख्यात स्थल पर अपने आश्रम की स्थापना की। भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा जब कंस का वध किया गया, उसके पश्चात श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव को उनके पठन-पाठन की चिंता सताने लगी। यह निर्णय लिया गया कि उन्हें शिक्षा के लिए अवंतिका नगरी भेजना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण ने जब जब सांदीपनि आश्रम में प्रवेश किया था, उस समय उनकी आयु मात्र 11 वर्ष और सात दिन की थी। उन्होंने मात्र 64 दिनों में सोलह विद्याओं और चौंसठ कलाओं का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सांदीपनि आश्रम में महर्षि सांदीपनि व्यास की तपस्थली, सर्वेश्वर महादेव मंदिर, गोमती कुण्ड, विद्यास्थली, कुण्डेश्वर महादेव मंदिर, अंकपाद क्षेत्र तो पहले से थे। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर गोमती कुण्ड के आस-पास चौसठ कला दीर्घा का निर्माण किया गया है। यहां श्रद्धालुओं को भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा सीखी गई चौंसठ कलाओं के आकर्षक चित्रों के माध्यम से दर्शन होते हैं।
मित्रता का साक्षी है नारायणा धाम
उज्जैन से कुछ दूरी पर महिदपुर तहसील में ग्राम नारायणा स्थित है। यह स्थल भी उतना ही प्राचीन है जितना महर्षि सांदीपनि आश्रम। नारायणा धाम पर भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा ने रात्रि विश्राम किया था। इसलिए यह स्थल उनकी मित्रता का साक्षी भी है। इससे एक अत्यंत रोचक प्रसंग जुड़ा हुआ है। भगवान श्रीकृष्ण जब यहां विद्या अध्ययन कर रहे थे, तब एक दिन वर्षा की संभावना को देखकर गुरुमाता शुश्रुसा ने लकड़ी लाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा को वन में भेजा। उन्होंने दोनों के लिए दो मु_ी चने एक पोटली में रख दिये, ताकि वे भूख लगने पर खा सकें। चलते चलते दोनों घने वन में पहुंच गये। कुछ समय पश्चात बहुत तेज वर्षा होने लगी, इसके बावजूद दोनों ने सूखी लकडिय़ों का एक-एक ग_र बनाकर अपनी पीठ पर रख लिया। लेकिन अधिक रात्रि हो जाने के कारण वे आश्रम लौटकर न आ सके। बारिश अत्यधिक होने के कारण उन्होंने अपने-अपने ग_र एक पेड़ के नीचे रख दिये और रात्रि विश्राम किया। यही स्थान वर्तमान में नारायणाधाम के रूप में प्रसिद्ध है। यही पर सुदामा ने भगवान श्रीकृष्ण के हिस्से के चने भी खा लिये थे। आज नारायणा में अत्यंत बड़ा और सुंदर मंदिर का निर्माण किया गया है। जिसमें श्रीकृष्ण और सुदामा की सुंदर प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा के ग_र आज भी यहां मौजूद हैं जो अब हरे-भरे वृक्ष बन चुके हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने नवाचार करते हुए प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर्व पर इस्कॉन मंदिर से नारायणा धाम की यात्रा प्रारंभ की थी। सरकार द्वारा नारायणा तक पहुंच मार्ग का दुरूस्तीकरण करवाया गया है, ताकी अत्यंत कम समय में श्रद्धालु वहां की यात्रा सुगमतापूर्वक कर सकें। उल्लेखनीय है की बहुत से श्रद्धालु महर्षि सांदिपनी आश्रम में दर्शन करने के पश्चात नारायणाधाम की यात्रा करते हैं। प्रतिवर्ष जन्माष्टमी पर्व पर नारायणा में मेला लगता है और काफी संख्या में श्रद्धालु यहां भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा के दर्शन के लिए पहुचते हैं।